स्वाधीनता का सरकारी अमृत महोत्सव और नेहरू का बहिष्कार!

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) की ओर से आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ पर जारी पोस्टर में पहले प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत के शिल्पी जवाहरलाल नेहरू का नाम ग़ायब है और अंग्रेज़ों से छह बार लिखित माफ़ी माँगकर जेल से छूटने वाले, अंग्रेज़ों से साठ रुपये महीना पेंशन पाने वाले, सांप्रदायिक विद्वेष को राजनीतिक सिद्धांत बनाकर और द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत गढ़कर जिन्ना के पाकिस्तान प्रोजेक्ट को बल देने वाले विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर लगायी गयी है जिस पर बड़ा विवाद हो रहा है। पूर्व आईपीएस विजय शंकर सिंह ने इस पर टिप्पणी की है, पढ़िये-

सरकार चाहती है कि नेहरू और सावरकर बराबर चर्चा में बने रहें। लोग यह याद करते रहें कि नेहरू के ही सभापतित्व में पूर्ण आज़ादी का प्रस्ताव कांग्रेस ने 1930 में पारित किया था और  स्वाधीनता संग्राम में उनकी क्या भूमिका थी। लोग नेहरू की भूमिका को जानें। उनके योगदान का मूल्यांकन करें। उनकी खूबियों और खामियों पर भी चर्चा करें। नयी पीढ़ी देश के उंस गौरवशाली संघर्ष को याद करे जब क्रांतिकारी आंदोलन से लेकर आज़ाद हिंद फौज तक, आज़ादी की अलख जल रही थी तो, आरएसएस उंस समय उस महान संघर्ष से अलग, क्या कर रहा था।
साथ ही लोग यह भी याद करते रहे कि, सावरकर ₹ 60 की मासिक पेंशन पर, अंगेजो की मुखबिरी कर के जिन्ना के हमख़याल बने रहे, और आज जब संघ के मानस पुत्रों की सरकार सत्ता में आयी है तो वे उसके अमृत महोत्सव के पोस्टर में ‘आड मैन आउट’ की तरह दिख रहे हैं। सावरकर की ज़िंदगी के इस पक्ष को बार बार याद करें। सावरकर माफी मांग कर जेल से बाहर आये। हो सकता है वे यातना सह नही पाए हों। हर व्यक्ति की यातना सहन करने की क्षमता अलग अलग होती है। पर अंग्रेजों की पेशन क्यों उन्होंने स्वीकार की और उनका स्वाभिमान तब कहाँ खो गया था, यह उनके मन और दिशा परिवर्तन का, एक जटिल पक्ष है, जिसपर, अध्ययन किया जा सकता है। इसे पढा जाना चाहिए।
गांधी को केंद्र में रखना तो इनकी मजबूरी हैं। इन्होंने गांधी को मारा, हत्या की, पर गांधी की ही ताकत है कि, वह इनको बार बार, अपने सामने शीश नवाने को, मजबूरी में ही सही, बाध्य कर देते हैं। स्वाधीनता संग्राम के दौरान, गांधी को यह रावण के रूप में देखते थे। आज भी हत्या के कारणों का निर्लज्जता के साथ समर्थन करते हैं। आज इस सरकारी पोस्टर में जिन महानुभावों के फोटो आप देख रहे हैं, उनमे से, अधिकांश, कभी रावण के दस शिर हुआ करते थे !
1925 से लेकर 1947 तक आरएसएस ने किसी भी स्वाधीनता संग्राम में भाग नहीं लिया है। न ही, अंग्रेजों के खिलाफ, अपना ही कोई आंदोलन छेड़ा। जिस हिंदुत्व की बात करते यह थकते नहीं है, उसी हिन्दू धर्म की कुरीतियों के खिलाफ इन्होंने कोई जागरूकता आंदोलन नही किया। गांधी के अस्पृश्यता विरोधी अभियान और अंबेडकर के दलितोत्थान से जुड़े कदमो से यह दूर ही बने रहे। इन सारे तथ्यों से यह अनजान नहीं है, और यही इनकी हीन भावना का एक बड़ा कारण है। अमृत महोत्सव के इस पावन वर्ष में आप सब स्वाधीनता संग्राम का इतिहास तो पढ़े ही, साथ ही सावरकर, डॉ मुखर्जी और संघ के नेताओ ने क्या कहा और लिखा है, उसे भी पढ़े।

लेखक भारतीय पुलिस सेवा से अवकाशप्राप्त अधिकारी हैं।

 नोट- सबसे ऊपर वह पोस्टर है जो आईसीएचआर की वेबसाइट से लिया गया। इसमें सावरकर के विषय में लिखी गयी बातें मीडिया विजिल की ओर से जोड़ी गयी हैं ताकि लोग सच जान सकें।

First Published on:
Exit mobile version