कोविड कुप्रबंधन: क्या इस पूरे मामले की संसदीय जाँच नहीं होनी चाहिए?

इस बात में आश्चर्य नहीं जान पड़ता कि जहां तक कोविड का सवाल है,ट्रंप की अगुआई में अमेरिका और मोदी की अगुआई में भारत – जो दोनों अपने ‘असमावेशी’, ‘ लोकरंजकवादी’ / पॉप्युलिस्ट या ‘दक्षिणपंथी’ नज़रिये के लिए जाने जाते हैं और बकौल मीडिया जिन दोनों के बीच ‘उत्साहित करनेवाले दोस्ताना संबंध थे’ – उस मामले में एक ही नाव के यात्री कहे जा सकते है।ं

जनाब जेईल बोलसोनारो, जो दक्षिणी अमेरिकी मुल्क ब्राजिल के दक्षिणपंथी विचारों के राष्ट्रपति हैं, इन दिनों बेहद चिंतित दिखते हैं।

वजह साफ है, अगले साल राष्टपति चुनाव होंगे और यह बहुत मुमकिन दिख रहा है कि उनके राजनीतिक प्रतिद्धंदी लुला, जिन्होंने वर्ष 1980 में वर्कर्स पार्टी की स्थापना की थी- जो 2003 से 2011 तक ब्राजिल के राष्टपति रह चुके हैं और जो आज भी काफी लोकप्रिय हैं – वह उनके खिलाफ प्रत्याशी हो सकते हैं। मालूम हो कि महज दो माह पहले ब्राजील की आला अदालत ने लुला पर लगे घुसखोरी के दो आरोपों को – जिसकी वजह से उन्हें जेल की सज़ा हुई थी- सिरे से खारिज किया और इस तरह चुनाव में खड़े होने के उनके रास्ते को सुगम किया। (https://www.opendemocracy.net/en/democraciaabierta/lulu-brazil-returns-to-political-arena-en/)

वैसे फौरी तौर पर अधिक चिन्ता की बात है वह संसदीय जांच, जिसके जरिए ब्राजिल की हुकूमत ने किस तरह कोविड की महामारी से निपटने की कोशिश की इसकी पड़ताल का मसला, उनके सामने आ खड़ा हुआ है। अपने राजनीतिक विरोधियों के बढ़ते दबाव और ब्राजील में जनजीवन में मची तबाही आदि के चलते उन्हें मजबूरन इस जांच को मंजूरी देनी पड़ी है। (https://www.theguardian.com/world/2021/apr/27/brazil-begins-parliamentary-inquiry-into-bolsonaros-covid-response)  याद रहे इस महामारी में ब्राजिल में चार लाख से अधिक लोग मारे गए हैं और त्रासदी अभी जारी है। इस महामारी को लेकर ब्राजिल सरकार की प्रतिक्रिया को ‘विनाशकारी और आपराधिक’ कहा गया है।

यह जांच महज कोई औपचारिकता नहीं होगी इसका संकेत इस कमेटी के एक महत्वपूर्ण सदस्य सीनेटर हुम्बर्टो कोस्टा के बयान से भी मिलता है, जो ब्राजिल के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं : ‘ वास्तव में यह एक बड़ी स्वास्थ्य, आर्थिक और राजनीतिक त्रासदी है और इसकी मुख्य जिम्मेदारी राष्टपति पर आती है।’ और वह मानते हैं कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि बोलसोनारो ने ‘‘मानवता के खिलाफ अपराध’’ को अंजाम दिया है।(https://theintercept.com/2021/05/01/covid-brazil-deaths-bolsonaro-investigation/) इस तरह का आकलन रखनेवालों मे कोस्टा अकेले नहीं हैं, कई अन्य विश्लेषकों ने, सीनेटरों ने इसी किस्म की बात उनके संदर्भ में इस्तेमाल की है।

इस बात पर विस्तार से लिखा जा चुका है कि बोलसोनारो – जिन्होंने महामारी के खतरे को तथा उससे संभावित तबाही को हमेशा ही कम करके आंका है- के चलते ही आज उनकी मुल्क कोविड के मामले में इस तरह गर्त में जा धंसा है। कोविड से बचाव के लिए जरूरी आचरण के तौर पर जिन उपायों को बताया जाता रहा है -फिर चाहे मास्क पहनना हो, नियमित हाथ धोने हों या भौतिक दूरी बनाए रखनी हों – उनके प्रति उन्होंने असहमति को आचरण में बार बार प्रगट किया है और यह भी कहा जाता है कि उन्होंने ऐसी आम सभाओं को भी संबोधित किया है, जिसमें न केवल वे बल्कि उनके कोई समर्थक भी मास्क नहीं पहने थे।

 

 

जांच आयोग न केवल इस मुददे पर गौर करेगा कि बोलसोनारो सरकार ने हाइडरोक्लोरोक्विन जैसे अप्रभावी इलाज को बढ़ावा दिया, कोरोना के बढ़ते फैलाव के बावजूद उन्होंने लॉकडाउन लगाने से इन्कार किया या शारीरिक दूरी को बनाए रखने की बात को आगे नहीं बढ़ाया बल्कि इस बात की भी पड़ताल करेगा कि आखिर साल भर के इस अंतराल में ब्राजिल को तीन बार स्वास्थ्य मंत्री को क्यों बदलना पड़ा या आखिर जनवरी माह में एमेजॉन के जंगलों में स्वास्थ्य सेवाओं के चरमरा जाने की क्या वजह थी कि वहां के अस्पतालों में ऑक्सिजन खतम हुई और तमाम मरीज इसके चलते मर गए।   (https://www.theguardian.com/world/2021/jan/24/brazil-covid-coronavirus-deaths-cases-amazonas-statehttps://www.reuters.com/business/healthcare-pharmaceuticals/coronavirus-stalks-brazils-amazon-many-die-untreated-home-2021-01-13/https://www.doctorswithoutborders.org/what-we-do/news-stories/news/brazil-covid-19-disaster-unfolding-amazon)

वैसे गार्डियन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इस जांच का अहम पहलू वैक्सिनेशन की आपूर्ति का होगा जो बोलसोनारो हुकूमत के लिए काफी नुकसानदेह हो सकता है, जहां यह तथ्य उजागर हो चुके हैं कि वैक्सिन आपूर्ति को लेकर उसे अलग अलग 11 ऑफर मिलने के बावजूद बोलसोनारो सरकार ने अपनी 21 करोड़ से अधिक आबादी के टीकाकरण को लेकर कोई सार्थक कदम नहीं उठाया।

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का स्पष्ट मानना है कि अगर इसे गंभीरता से किया गया होता तो हजारों जानों को बचाया जा सकता था। उनके मुताबिक टीकाकरण में हुई गंभीर लापरवाही की जड़ इसी समझदारी में दिखती है कि सरकार शायद ‘हर्ड इम्युनिटी’ के खयाल में खोयी रही और उसे लगा कि संक्रमण का सिलसिला अपने आप रूक जाएगा।

दक्षिणपंथी विचारों के हिमायती बोलसोनारो – जो ब्राजिल में साठ के दशक के मध्य में कायम तानाशाही, जो अस्सी के दशक की शुरूआत तक चलती रही, तथा जिसमें हजारों लोग मारे गए तथा तमाम लोगों को प्रताडनाएं झेलनी पड़ी, की आज भी तारीफ करते हैं – की अगुआई में जहां कोविड की चुनौती से ठीक से निपट न पाने के कारण उनके मुल्क ब्राजिल में तबाही मची, वहीं राष्टपति ट्रंप की अगुआई में अमेरिका ने तो नए रसातल को ही छू लिया।

दुनिया के सबसे मजबूत मुल्कों में से अमेरिका, जिसका संक्रमणकारी रोगों से निपटने का लंबा इतिहास रहा है, और उसके पास भी पर्याप्त वक्त़ था कि जिन दिनों एशिया और यूरोप में यह संक्रमण फैला था, उन्हीं दिनों वह उससे निपटने के गंभीर उपाय करता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और अमेरिका में तबाही का आलम बना और 6 लाख अमेरिकी इसमें मर गए।

आज हम पीछे मुड़ कर इस बात को समझ सकते हैं कि किस तरह ‘लगभग हर सरकारी स्तर पर नेतृत्व के गहरे शून्य के चलते, तथा व्हाइट हाउस के इस संदेश के बाद कि वायरस को लेकर कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए, अमेरिकियों ने जाने अनजाने इस प्राणघातक वायरस को अपने प्रियजनों और अजनबियों तक फैलाया।’ (https://www.usatoday.com/in-depth/news/2020/12/10/how-u-s-failed-meet-coronavirus-pandemic-challenge/3507121001/)

हम ऐसे तमाम मौकों को याद कर सकते हैं कि किस तरह राष्टपति टंप ने कोविड चुनौती को कम करके आंका, कोविड अनुकूल आचरण करने में हमेशा लापरवाही बरती – यहां तक मास्क पहनने या भौतिक दूरी बनाए रखने से भी भी बचते रहे, इस मामले में संक्रामक रोगों के राष्टीय विशेषज्ञों की सलाहों की अनदेखी की, अप्रभावी दवाओं को बढ़ावा दिया यहां कि दक्षिणपंथी समूहों में कोविड को चीन से जोड़ने के – षडयंत्रा के सिद्धांतों की बात करते रहे – और कोविड वायरस को चायना वायरस कहा और इस तरह कोविड संक्रमण के विरूद्ध लड़ाई को कमजोर ही किया।  (https://timesofindia.indiatimes.com/world/us/its-china-virus-not-coronavirus-which-sounds-like-beautiful-place-in-italy-trump/articleshow/78268506.cms)

निःस्सन्देह ट्रम्प की अगुआई में अमेरिका ने वायरस को लेकर उसे जो पूर्वसूचना मिली थी, जब वह चीन तथा यूरोप के कुछ हिस्सों में तबाही मचा रहा था, कोई सीख नहीं ली, जिसने गैरजरूरी मौतें हुईं और अनगिनत त्रासदियां सामने आयीं।

ट्रम्प की बिदाई और बाइडेन के राष्टपति पद पर पहुंचने के बाद से – जिन्होंने महामारी की चुनौती को कभी कम करके नहीं आंका था, उस वक्त भी जब ट्रंप मुल्क की कमान संभाले थे- अब अमेरिका की अंदरूनी स्थिति में काफी फरक आया है। बाइडेन प्रशासन द्वारा हाथ में लिए गए प्रचंड टीकाकरण कार्यक्रम से – जिसमें युवाओं को भी शामिल किया गया है – अब यह आसार दिख रहे हैं कि ट्रंप की अगुआई में अमेरिका जिस गर्त में गिरा था, उससे वह उबर जाएगा।

इस बात में आश्चर्य नहीं जान पड़ता कि जहां तक कोविड का सवाल है,ट्रंप की अगुआई में अमेरिका और मोदी की अगुआई में भारत – जो दोनों अपने ‘असमावेशी’, ‘ लोकरंजकवादी’ / पॉप्युलिस्ट या ‘दक्षिणपंथी’ नज़रिये के लिए जाने जाते हैं और बकौल मीडिया जिन दोनों के बीच ‘उत्साहित करनेवाले दोस्ताना संबंध थे’  (https://www.theguardian.com/world/2020/feb/24/namaste-donald-trump-india-welcomes-us-president-narendra-modi-rally) – उस मामले में एक ही नाव के यात्री कहे जा सकते है।ं

फिलवक्त़ यह बात इतिहास हो चुकी है कि भारत में कोविड के पहले मामले की रिपोर्ट केरल से मिली थी / 27 जनवरी 2020/ और इस बात को मददेनज़र रखते हुए कि यह वायरस किस तरह वुहान, चीन में तथा यूरोप में अन्य स्थानों पर तबाही मचा रहा है, अग्रणी स्वास्थ्य विशेषज्ञों /कार्यकर्ताओं तथा राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेताओं की तरफ से यह मांग की गयी थी कि सरकार इसे काबू में करने के लिए तत्काल कदम उठाए। यह भी सुझाव दिया गया था कि ऐसे ‘संक्रमित’ इलाकों से आने वाली हवाई उड़ाने या तो रोक दी जाएं। न केवल उन तमाम चेतावनियों की अनदेखी की गयी बल्कि फरवरी के तीसरे सप्ताह के अंत में /20 फरवरी/ को अमेरिकी राष्टपति ट्रम्प का भव्य स्वागत अहमदाबाद में किया गया जिसमें लाखों लोग शामिल हुए।

हम कल्पना ही कर सकते हैं कि कोविड प्रभावित मुल्कों से हवाई यात्रा पर किसी तरह का प्रतिबंध न लगाने के चलते किस तरह विदेशों से यहां आने वाले लोगों के जरिए यहां वायरस पहुंचने दिया गया और फिर किस तरह अचानक मार्च के तीसरे सप्ताह में – जबकि कोविड के मामले अधिक नहीं थे – महज चार घंटे की नोटिस पर विश्व का सबसे सख्त लॉकडाउन लगाया गया; न राज्यों को इसके लिए विश्वास में लिया गया और न ही इसके लिए कोई तैयारी की गयी। जैसे कि उम्मीद की जा सकती है इस आकस्मिक कदम ने व्यापक जनता के जीवन में प्रचंड तबाही को जनम दिया, लाखों लोगों को भुखमरी से बचने के लिए शहरों या नगरों से पैदल अपने घरां को लौटना पड़ा, सैकड़ों लोग इस त्रासदी में कालकवलित हुए।

दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन – जिसे कुछ माह बाद उठा लिया गया था – के एक साल बाद भारत की स्थिति अधिक ख़राब दिखती है। इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त भारत में कोविड के लगभग 22 मिलियन मामले आ चुके थे – जो संख्या अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है और 2,38,000 मौतें हो चुकी थीं। रोजाना कोविड प्रभावितों की संख्या चार लाख पार कर चुकी है और महामारीविदों ने यह अनुमान लगाया है कि स्थिति में सुधार के पहले उसके अभी और खराब होने की संभावना है।

यह एक कड़वी सच्चाई है कि न अपने यहां पर्याप्त मात्रा में जीवनरक्षक दवाएं हैं और न ही वैक्सिन के डोज़ ही उपलब्ध हैं। अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या भी कम पड़ गयी है और एक एक बिस्तर पर पड़े दो तीन मरीजों की तस्वीरें भी वायरल हो चुकी हैं। ऑक्सिजन की आपूर्ति भी सीमित मात्रा में है। इस हक़ीकत के बावजूद कि तैयारी के लिए सरकार को एक साल से अधिक वक्त़ मिला, उसने बुरी तरह चीज़ों का प्रबंधन किया है। अस्पताल के बाहर बिना इलाज के ही बिस्तर के इंतज़ार में मरनेवाले मरीजों की ख़बरें अब आम हो चली हैं।

भारत को लंबे समय से दुनिया की फार्मसी कहा जाता रहा है क्योंकि यहां से बाकी दुनिया को सस्ती दवाएं और वैक्सिन मिलते रहे हैं, अब उसका आलम यह है कि उसे खुद पड़ोसी मुल्कों से जरूरी दवाओं और अस्पताल के जरूरी सामानों का फिलवक्त़ इंतज़ार है। (https://www.hindustantimes.com/india-news/why-is-india-called-the-world-s-pharmacy-here-are-160-million-reasons-101612087163627.html)

जमीनी हक़ीकत और भाजपा के अग्रणियों के बीच बढ़ते अंतराल को इस आधार पर भी नापा जा सकता है कि विशेषज्ञों द्वारा बार बार आगाह करते रहने के बावजूद, या संसदीय कमेटी द्वारा उसे दी गयी चेतावनी के बावजूद – उसने दूसरी लहर से निपटने के लिए कोई जबरदस्त तैयारी नहीं की गयी। न केवल सरकार को जनता के व्यापक टीकाकरण की अहमियत समझ में आयी और न ही उसने टीका निर्माण करनेवाली कंपनियों से पहले से बुकिंग करवायी, न इस बात पर गौर किया कि अलग अलग राज्यों में ऑक्सिजन प्लैंट बने तथा जहां पहले से बने हैं तथा बंद पड़े हैं, उन्हें फिर शुरू किया जाए।

इन तैयारियों को भूल जाइए, वह जनवरी माह में ही कोविड पर अपनी ‘जीत’ को लेकर अपनी खुद की पीठ थपथपाने में मुब्तिला थी, जब विश्व मंच पर खुद जनाब मोदी इस बात का ऐलान कर रहे थे। फरवरी 21 में उनकी पार्टी ने भी बाकायदा प्रस्ताव पारित कर कोविड को हराने के लिए ‘ प्रधानमंत्रा के काबिल, संवेदनशील, प्रतिबद्ध और दूरद्रष्टिवाले नेतृत्व ’ की तारीफ भी की।

जैसे कि उम्मीद की जा सकती है कि महामारी की दूसरी लहर की तीव्रता और उसका सामना करने को लेकर सरकारी तैयारी के अभाव ने मोदी की ‘मजबूत और निर्णायक नेतृत्व’ को बेपर्द किया है और उन्हें आज़ाद भारत के अब तक के सबसे ‘नाकाबिल प्रशासक’ के तौर पर संबोधित किया जा रहा है। (https://www.theindiacable.com/p/the-india-cable-from-gujarat-to-up)

दुनिया के अग्रणी अख़बारों ने अपने लंबे आलेखों और संपादकीयों के जरिए कोविड के इस दूसरे उभार के लिए मोदी सरकार की बेरूखी, बदइंतज़ामी और असम्प्रक्तता को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने ‘मानवता के खिलाफ हो रहे इन अपराधों’ के बारे में जिनका शिकार भारत के लोगों को बनाया गया है, मजबूती से लिखा है  (https://www.theguardian.com/news/2021/apr/28/crime-against-humanity-arundhati-roy-india-covid-catastrophe)   और ‘नीतिनिर्धारण की जबरदस्त असफलता’  (https://www.washingtonpost.com/outlook/modis-pandemic-choice-protect-his-image-or-protect-india-he-chose-himself/2021/04/28/44cc0d22-a79e-11eb-bca5-048b2759a489_story.html) को बेपर्द किया है।

कोविड से होने वाली मौतों में जबरदस्त उछाल / एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली जो कोविड से जबरदस्त प्रभावित शहरों में से एक है वहां अप्रैल माह में आम तौर होने वाली मौतों की तुलना में पांच गुना मौतें हुई हैं / आया है, जो इस बात से भी उजागर हो रहा है कि पुराने स्थापित स्थानों पर ही नहीं बल्कि नए नए स्थानों पर लोगों के अंतिम संस्कार करने पड़ रहे हैं, कब्रगाहों के लिए नयी जमीन ढूंढनी पड़ रही है। अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशानों पर लंबी लाइनें लगी हैं।

इन अत्यधिक मौतों ने- जो उनकी बदइंतजामी, उनकी बेरूखी, उनकी नीतिनिर्धारण की असफलता को उजागर करती हैं – केंद्र में सत्तासीन हुक्मरानों में, जो देश के तमाम सूबों पर भी काबिज हैं, जबरदस्त बेचैनी पैदा की है। उसकी प्रमुख वजह जिस तरह इन मौतों ने और इस जबरदस्त हाहाकार ने मोदी सरकार की इमेज को जबरदस्त धक्का लगा है और दुनिया भर में उसकी छी थू हो रही है और पहली दफा यह संभावना बनी है कि मोदी सरकार ने अपने बारे में जो ‘अजेयता का आख्यान’ तैयार किया है वह बदले। मोदी सरकार के गोदी मीडिया में बैठे चारण जो भी कहें लेकिन देश को इस गर्त में पहुंचाने के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

और अपनी छवि बचाने के लिए इन हुक्मरानों एवं उनके ‘परिवारजनों’ ने बहुविध रणनीति अख्तियार की है।

पहली है कि कोविड से होने वाली इन मौतों के बारे में असली हक़ीकत को स्वीकार न करना, आंकड़ों में अपारदर्शिता बरतना। हालांकि इसके लिए उसकी जबरदस्त आलोचना भी हो रही है।

अंतरराष्टीय मेडिकल जर्नल ‘लान्सेट’ के ताज़ा आलेख में नरेंद्र मोदी सरकार से यह मांग की गयी है कि वह अपनी गलतियों को कबूल करे, जिम्मेदार नेतृत्व का परिचय दे और भारत को कोविड 19 के संकट से उबारने और ‘अपनी आधीअधूरी टीकाकरण मुहिम’ से उसे उबारने के लिए विज्ञान आधारित प्रतिक्रिया दे। गौरतलब है कि लान्सेट के इस आलेख के तत्काल बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन – जो देश के डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था है – मोदी सरकार पर यह आरोप लगाया है कि वह कोविड से निपटने के लिए गैरवाजिब आचरण कर रही है, तथ्य छिपा रही है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी को वैक्सिन उपलब्ध को अभी भी कोई रोडमैप नहीं बना पायी है।

सरकार की छवि बचाने की इस कवायद की इस मुहिम में – भले ही आम लोगों की जिंदगियाँ न बच सकें – संघ के दूसरे नंबर के नेता दत्तात्रोय होसबले भी कूद गए हैं, जिन्होंने कहा है कि जितना हम इन मौतों की बात करेंगे और उससे जुड़ी त्रासदियों की बात करेंगे उससे भारत विरोधी ताकतों को भारत का नाम बदनाम करने का मौका मिलेगा।

भारत के विदेश मंत्रा जनाब ए जयशंकर इस मामले में एक कदम आगे बढ़ गए हैं जिन्होंने भारत के राजदूतों और दुनिया भर में फैले उसके हाईकमीशनरों के साथ एक जूम मीटिंग में बाकायदा कहा कि मोदी सरकार की नाकामी को लेकर तथा महामारी को निपटने में उसकी कथित असफलता को लेकर जो ‘‘एक तरफा’’ प्रचार चल रहा है उसका वह प्रतिकार करें।

इसमें कोई दोराय नहीं कि जितनी यह सरकार और उसके नुमाइंदे उसकी छवि सुधारने की बदहवास कोशिश में इस ‘एक तरफा आख्यान’ का मुकाबला करने की कोशिश करेंगे उतनी ही भारत की भदद दुनिया में पीटेगी। आप को याद होगा कि ऑस्ट्रेलिया के एक अख़बार में कोविड से निपटने को लेकर मोदी सरकार की नाकामियों पर छपा एक आलेख और एक कार्टून जो दुनिया भर में वायरल हुआ था और उसके विरोध में ऑस्ट्रेलिया में भारत के हाईकमीशनर द्वारा लिखा गया पत्र, जिससे भारत की और बदनामी हुई थी कि वह किस तरह प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करता है।

अब जनाब एस जयशंकर जो भी दावा करें या ‘युगपुरूष’ / जैसा कि उनके अनुयायी उन्हें समझते हैं / मोदी हमें यह यकीन दिलाएं कि सब ठीक है, लेकिन आज हक़ीकत यही है कि यह जलती चिताएं – जिनके लिए जमीन कम पड़ रही है और स्मशानों के इर्दगिर्द बड़ी बड़ी बाड़ें लगाने से उन्हें अब छिपाया नहीं जा सकता – मौजूदा हुकूमत की वास्तविकता को बयां कर रही हैं कि उसने मुल्क को किस मुहाने पर ला खड़ा किया है।

आप को याद होगा कि 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में प्रचार में जनाब मोदी ने निवर्तमान मुख्यमंत्रा अखिलेश यादव के विरोध में बोलते हुए बार बार यह कहा था कि किस तरह उनकी सरकार ने श्मशानों की उपेक्षा की और कब्रगाहों को बढ़ावा दिया। अब उनकी यही तकरीर को लेकर उनके आलोचक उनसे पूछ रहे हैं क्या समूचे देश के लिए यही नक्शा उन्होंने देखा था ?

हम यह भी देख रहे हैं कि श्मशान में एक साथ जल रही चिताओं की तस्वीरों से भी इन दिनों हुक्मरान बचना चाह रहे हैं, उत्तर प्रदेश में तो बाकायदा यह निर्देश दिया गया है। वजह साफ है कि यह चिताएं इस सरकार को जीताने वाले उन लोगों को भी यह सोचने के लिए मजबूर करती है कि हिन्दु राष्ट का नक्शा दिखानेवाले पूरी अवाम को कहां ले आए हैं !

सवाल उठता है कि कोविड के खिलाफ जारी संघर्ष में अब आगे क्या होगा ?

क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि किसी अलसुबह जनाब प्रधानमंत्रा और उनके करीबी सलाहकारों का हदयपरिवर्तन होगा और वह महामारी को राष्टीय आपदा घोषित करेंगे – जैसा कि तमाम विपक्षी पार्टियों ने मांग की है – कोविड से निपटने में अपनी भूलों की समीक्षा करेंगे और सभी को इस मुहिम में जोड़ने की कोशिश करेंगे ? क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि इन दिनों जब लोग ऑक्सिजन की कमी से देश में मर रहे हैं, करोड़ों श्रमिक अपने रोजगारों को खो चुके हैं और आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी टीकाकरण से वंचित है, जनाब प्रधानमंत्रा यह ऐलान करेंगे कि सेन्टल विस्टा के नाम पर देश की राजधानी में नयी संसद, प्रधानमंत्रा के लिए नया मकान बनाने के लिए हजारों करोड़ रूपए लगा कर निर्माण कार्य चल रहा है, उस परियोजना को तत्काल रोक दें और ऐलान कर दें कि इसका सारा पैसा जनता को मुफत वैक्सिन देने के लिए इस्तेमाल होगा। याद रहे जब तक अधिकतर आबादी को टीका नहीं लगता तब तक मुल्क कोविड से सुरक्षित नहीं हो सकता, जैसा कि अब अमेरिका में चल रहा है।

निश्चित ही विगत सात साल के शासन में हुई अपनी गलतियों को लेकर- चाहे नोटबंदी का निर्णय हो, या जीसटी को बिना तैयारी के लागू किया जाना हो या महज चार घंटे की नोटिस पर पिछले साल लागू किया लॉकडाउन हो – कभी भी खेद तक प्रगट न करनेवाले जनाब मोदी या उनके करीबियों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती।

तो क्या इस पूरे प्रसंग की जांच के लिए हमें किसी नागरिक कमीशन कायम करने की दिशा में बढ़ना चाहिए – जैसी बात पूर्वग्रहसचिव माधव गोडबोले ने द प्रिंट के अपने आलेख में बतायी है – या भारत की संसद को ही राष्टीय आपदा की इस स्थिति की जांच के लिए एक कमेटी कायम करनी चाहिए और निष्पक्ष ढंग से अपनी बात प्रस्तुत करनी चाहिए और भविष्य के लिए जरूरी सबक निकालने चाहिए ताकि महामारी के जिस दौर को हम औपनिवेशिक काल में ही पीछे छोड़ आए थे, अब उसे याद दिलाने का कोई नया प्रसंग न उभरे।

 

लेखक  प्रसिद्ध एक्टिविस्ट और  लेखक-पत्रकार हैं।

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