मुस्लिमों में होने वाले एकतरफा तलाक को लेकर एक महिला ने हाई कोर्ट का रुख किया है। 28 वर्षीय महिला ने मुस्लिम समुदाय में बिना कोई कारण बताए और बिना पूर्व सूचना दिए अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के पति के एकतरफा अधिकार के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जिसमे उसने पति को दिए गए इस अधिकार को मनमाना, शरिया विरोधी, असंवैधानिक और बर्बर बताया है।
मुस्लिम विवाह केवल अनुबंध नहीं है एक दर्जा है..
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा को अवैध और असंवैधानिक घोषित का दिया था सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले का हवाला देते हुए महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि मुस्लिम विवाह केवल एक अनुबंध नहीं है बल्कि महिलाओं में मिला एक दर्जा है। अपनी याचिका में महिला ने बताया कि उसके पति ने उसे इसी साल आठ अगस्त को तीन तलाक देने के बाद छोड़ दिया और उसके बाद उसने अपने पति को कानूनी नोटिस जारी किया है।
इस मामले में HC से दिशा-निर्देश बनाने का आदेश देने की मांग..
याचिकाकर्ता महिला की ओर से पेश अधिवक्ता बजरंग वत्स ने अदालत से इस बात का आग्रह किया कि वह पति के अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को असंवैधानिक और अवैध घोषित करे। साथ ही उन्होंने अदालत से इस मामले में उचित दिशा-निर्देश बनाने का आदेश देने की भी मांग की है।
याचिका HC की जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए अधिकृत पीठ के समक्ष रखे..
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने गुरुवार को महिला की याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद कहा कि याचिका प्रकृति में जनहित की है। चूंकि याचिका में उठाए गए मुद्दे जनहित के हैं, इसलिए इस मामले को उच्च न्यायालय की जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए अधिकृत पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए।
तीन तलाक अधिनियम क्या है?
मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) एक्ट की धारा 3 में मुस्लिम पुरुष का एक बार मे तीन तलाक लेना अपराध है। अधिनियम, 2019 के तहत तीन बार तालक, तलाक, तलाक बोलना अपराध माना गया है। धारा 4 में कहा गया है इस कानून के तहत दर्ज मामलों में दोषी पाए जाने वाले पति पर तीन साल तक कैद की सज़ा का प्रावधान है।साथ ही पीड़ित महिला अपने और आश्रित बच्चों के लिए पति से भरण-पोषण लेने की भी हकदार है। बता दें कि इस्लाम में तलाक देने का अधिकार केवल पति के पास है। पत्नी तलाक मांग सकती है।