जिस वक़्त प्रधानमंत्री, तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय कैबिनेट इस विचार-विमर्श में लगा था कि देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि कितनी और बढ़ाई जानी चाहिए और कैसे लोगों को फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग की अहमियत और ढंग से समझाई जा सकती है – उत्तर प्रदेश की पुलिस दिल्ली में एक संपादक को उसी लॉकडाउन के दौरान ये बता रही थी कि उनको, 14 अप्रैल को इसी दौरान, अयोध्या पुलिस के सामने पेश होना होगा। उत्तर प्रदेश के ये कर्तव्यपरायण पुलिसकर्मी, 700 किलोमीटर दूर, न्यूज़ वेबसाइट द वायर के संपादक को सिर्फ ये नोटिस देने के लिए आए थे। ज़ाहिर है इस तत्परता पर यूपी पुलिस को शायद गर्व भी हो, लेकिन बात बेहद चिंताजनक है।
लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर पिछले 6 साल में जताई गई सारी चिंताएं, न केवल लगातार सच साबित हुई हैं, बल्कि देश भर में सरकारी अमला भी एक राजनैतिक पार्टी विशेष के कार्यकर्ता की तरह बर्ताव करता दिखने लगा है। द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को दिए गए, यूपी पुलिस के नोटिस के मुताबिक, उन पर फाइल की गई एफआईआर में प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक ट्वीट करने और जनता के बीच अफ़वाह और शत्रुता फैलाने के मामले में फ़ैज़ाबाद के दो निवासियों द्वारा एफआईआर दर्ज करवाई गई है। इन शिकायतों के आधार पर ये नोटिस, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 (ए) के तहत सिद्धार्थ वरदराजन को भेजा गया है।
ये ट्वीट पूरी तरह तथ्यों पर आधारित थी। नोटिस के मुताबिक, जिस बयान को अफ़वाह और नफ़रत फैलाने वाला बताया गया है, वह ये है –
‘जिस दिन तब्लीगी जमात का आयोजन हुआ था, उस दिन योगी आदित्यनाथ ने जोर देकर कहा था कि 25 मार्च से 2 अप्रैल तक रामनवमी के अवसर पर अयोध्या में आयोजित होने वाला एक बड़ा मेला पहले की तरह आयोजित होगा. जबकि आचार्य परमहंस ने कहा था कि भगवान राम भक्तों की कोरोना वायरस से रक्षा करेंगे. 24 मार्च को मोदी द्वारा कर्फ्यू जैसा देशव्यापी लॉकडाउन लागू किए जाने के एक दिन बाद आदित्यनाथ ने आधिकारिक आदेशों का उल्लंघन करते हुए दर्जनों अन्य लोगों के साथ अयोध्या में धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया.’
On the day the Tablighi Jamaat event was held, Adityanath insisted a large Ram Navami fair planned for Ayodhya from March 25 to April 2 would proceed as usual and that ‘Lord Ram would protect devotees from the coronavirus”. https://t.co/rO09bSkHSe via @TheWire_in
— Siddharth (@svaradarajan) March 30, 2020
झूठ फैलाने का प्रयास ना करे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कभी ऐसी कोई बात नहीं कही है। इसे फ़ौरन डिलीट करे अन्यथा इस पर कार्यवाही की जाएगी तथा डिफ़ेमेशन का केस भी लगाया जाएगा। वेबसाईट के साथ-साथ केस लड़ने के लिए भी डोनेशन माँगना पड़ेगा फिर। https://t.co/2rEJmToLIh
— Mrityunjay Kumar (@MrityunjayUP) April 1, 2020
शुक्रवार दोपहर, जब यूपी पुलिस सिद्धार्थ वरदराजन को ये नोटिस देने उनके घर पहुंची तो, वहां उनकी मुलाकात वरदराजन की पत्नी और दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर से हुई। नंदिनी सुंदर के ट्वीट्स के मुताबिक,
‘10 अप्रैल को दो बजे सादी वर्दी में दो लोग हमारे घर आए कहा कि वे सिद्धार्थ वरदराजन को नोटिस देने के लिए अयोध्या प्रशासन से आए हैं। उन्होंने अपना नाम नहीं बताया। मैंने उसे नोटिस मेलबॉक्स में छोड़ने को कहा तो उसने मना कर दिया. 3:20 बजे वह 7-8 वर्दीधारी लोगों के साथ आया जिसमें से दो लोगों ने मास्क नहीं लगाए थे.. वे काले रंग की एसयूवी में आए जिस पर कोई नंबर प्लेट नहीं था। बहुत जोर देने पर सादी वर्दी वाले शख्स का नाम चंद्रभान यादव बताया गया लेकिन उनका पद नहीं बताया गया। उन्होंने कहा कि वे इस अति आवश्यक काम के लिए अयोध्या से आए हैं। उन्होंने मुझे यह कहते हुए नोटिस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया कि महिलाओं और नाबालिगों से हस्ताक्षर कराने का हमारा नियम नहीं है। हालांकि जब नियम दिखाने का कहा गया तब उन्होंने फोन पर बात करने के बाद मुझे हस्ताक्षर करने दिया। इसके बाद उन्होंने अपने बॉस को फोन कर कहा कि नोटिस ले लिया गया है।’
Today, April 10, at 2 pm a plainclothes man came to our home and said he had come from the Ayodhya ‘prashasan’ to serve notice on @svaradarajan. He would not give his name. I told him to leave it in the mailbox. He refused. 2/5
— N S (@nandinisundar) April 10, 2020
3 अप्रैल को इस एफआईआर के दर्ज होने के बाद, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस कार्रवाई को अनावश्यक और धमकी करार दिया था। इसके अलावा न्यूयॉर्क स्थित कमेटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ जर्नलिस्ट, साउथ एशिया मीडिया डिफेंडर्स नेटवर्क और दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) ने इस मामले की निंदा करते हुए बयान जारी कर के एफआईआर वापस लेने की मांग की है।
ऐसे वक़्त में जब देश और पूरी दुनिया, एक बड़े मानवीय संकट से गुज़र रहे हैं, यूपी पुलिस और सरकार द्वारा ज़िम्मेदार और साहसी मीडिया की आज़ादी को कुचलने की इस कोशिश की हम मीडिया विजिल की ओर से भी भर्त्सना करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की इस अलोकतांत्रिक कार्रवाई के ख़िलाफ़ मीडिया विजिल, द वायर के साथ एकजुटता में खड़ा है और आगे भी खड़ा रहेगा।