Special Report: केंद्र-राज्य की रस्साक़शी भी सच है और आरएमएल अस्पताल की ढिलाई भी..

कोरोना का संकट, दुनिया के तमाम देशों मे मानव-जगत पर सबसे बड़े ख़तरे के तौर पर देखा जा रहा है। तमाम देशों के लोग और सरकारें, इस समय अधिक से अधिक संवेदनशीलता दिखाते हुए – पीड़ितों के साथ खड़े हैं। लेकिन भारत में राजनीति और राजनैतिक मल्लयुद्ध को आदर्श अखाड़ा मिल गया है। राज्य आपस में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में लगे हैं, तो केंद्र और राज्य की सरकारों की कुश्ती में जनता बलि का बकरा बन रही है। दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से राम मनोहर लोहिया अस्पताल को लेकर चल रहे विवाद को भी देखने पर ऐसा ही कुछ लगता है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल को लेकर चल रहे विवाद में अंततः आम आदमी पिस रहा है।

आम आदमी पार्टी के आरोप

AAP विधायक राघव चड्ढा

दिल्ली का राम मनोहर लोहिया अस्पताल, केंद्र सरकार के अधीन है और ऐसे में दिल्ली सरकार का इस अस्पताल पर आरोप लगाना ज़्यादातर लोगों के लिए ख़बर तो थी – लेकिन आश्चर्य नहीं। आरोपों की शुरुआत 3 जून को तब हुई, जब आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली के विधायक राघव चड्ढा ने आरएमएल अस्पताल पर जांच में गड़बड़ी करने और रिपोर्ट समय पर न देने के आरोप लगाए। राघव चड्ढा ने कहा कि दिल्ली सरकार की जांच में, राम मनोहर लोहिया अस्पताल के 30 कोरोना पॉज़िटिव नमूनों में से, 12 दोबारा जांच में नेगेटिव निकले। इसके अलावा राघव चड्ढा ने कहा, “केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली हाई कोर्ट ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि कोविड जांच की रिपोर्ट अगले 48 घंटे के भीतर हर हालत में देनी है। प्रयास करना है कि 24 घंटे के अंदर ही दे दिया जाए। लेकिन आरएमएल ने इन प्रोटोकॉल का पूरी तरह से उल्लंघन किया है। आईसीएमआर डेटा के अनुसार, आरएमएल कभी 72 घंटे, कभी 6 दिन या 7 दिन या 10 दिन और कभी 31 दिनों के बाद रिपोर्ट दे रहा है। जिन लोगों को तीन दिन बाद रिपोर्ट मिली, उनकी संख्या 281 है। चार दिन बाद 210 लोगों को रिपोर्ट मिली, एक हफ्ते बाद 50 लोगों को रिपोर्ट मिली। चार लोगों को 9 दिनों के बाद रिपोर्ट मिली और कुछ लोगों को 31 दिनों के बाद रिपोर्ट मिली।”

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन

इसके बाद अगले दिन दोपहर में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी ये ही आरोप दोहरा दिए। उन्होंने कहा, “हाल में ही आरएमएल अस्पताल की 94 फीसद सैंपल की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है। जबकि हमने इनमें से 45 रिपोर्ट को निगेटिव पाया।” उन्होंने ये भी कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल (RML) कोरोना जांच की रिपोर्ट पर समय पर नहीं दे रहा है। मंत्री ने कहा कि कोरोना से मरने वाले ऐसे 70 फीसद लोग हैं उनकी जांच रिपोर्ट 5-7 दिनों में आ रही है। जोकि बिल्कुल गलत है। कोरोना की रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट आनी चाहिए। 

ज़ाहिर है इसको ख़बर बनना था, लेकिन इसमें सच कितना है और कितनी राजनीति – ये आपको बताने से पहले, हम चाहते हैं कि आप इस पर अस्पताल का जवाब भी सुन लें। राम मनोहर लोहिया अस्पताल की मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. मीनाक्षी भारद्वाज ने इन आरोपों के जवाब में कहा कि आरएमएल अस्पताल में जिन मरीजों की जांच हो रही है, उनकी रिपोर्ट पूरी तरह सही है। उन्होंने कहा, “जिन लोगों का सैंपल दोबारा चेक किया गया, वो पुराना वाला सैंपल नहीं था। यह सैंपल बाद में लिया गया। दिल्ली सरकार की जांच, हमारी जांच के कई दिनों के बाद कराई गई है। इस दौरान कुछ मरीज ठीक हो गए थे और इसलिए जांच निगेटिव आई। हम जांच के सभी मापदंड को पूरी तरह अपना रहे हैं। हमारी तरफ से कोई गलती नहीं हो रही है।”

आरोपों में कितना सच – कहानी विवेक गुप्ता की

दरअसल आम आदमी पार्टी या दिल्ली सरकार के आरोप पूरी तरह ग़लत नहीं हैं। यही वजह है कि डॉ. मीनाक्षी भारद्वाज ने भी पूरे आरोपों को खारिज करने की जगह, केवल जांच के ग़लत होने के आरोपों को खारिज किया है। हालांकि सोचने वाली बात ये है कि क्या इतनी संख्या और आंकड़ों के साथ – आम आदमी पार्टी अस्पताल पर ग़लत आरोप लगाएगी। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस मामले में आरएमएल अस्पताल की सुपरिटेंडेंट की बात अतार्किक है। जो वे कह रही हैं, वे स्थिति भी संभव है लेकिन उसका सच फिलहाल सामने नहीं है।

लेकिन ये भी सच है कि आरएमएल हॉस्पिटल में कोरोना टेस्टिंग की रिपोर्ट्स को लेकर अनियमितता लगातार सामने आ रही है। इसको अगर अस्पताल नकार भी दे, तो भी इसके प्रमाण मौजूद हैं। लगातार कई लोगों ने इस मामले में शिकायत की है और लोग रिपोर्ट्स को लेकर होने वाली देर को लेकर सामने भी आए हैं। इस संबंध में ज़्यादा शिक़ायतों का सिलसिला मई के चौथे सप्ताह से शुरु हुआ तो अब तक जारी है। मीडिया विजिल का संपर्क अस्पताल की लापरवाही के भुक्तभोगियों से भी हुआ। इनमें से दिल्ली के ही रहने वाले विवेक गुप्ता से हमारी हुई बातचीत को हम साझा करना चाहेंगे। विवेक, उन लोगों में से हैं – जिनके परिवार इस अव्यवस्था के शिकार हुए।

इसी तरह, विवेक के पिता की रिपोर्ट भी उनको 3 जून को मिली, जबकि वह टेस्ट के लिए सैंपल 29 मई को दे चुके थे। हमारे उनसे बात करने तक उनके पास रिपोर्ट की हार्ड कॉपी नहीं आई थी। उनको फोन कर के बताया गया था कि उनके पिता की रिपोर्ट कोरोना पॉज़िटिव है। ये ही नहीं, पिता की स्थिति बिगड़ने पर, जब उन्होंने अस्पताल से संपर्क किया, तो उनको यह कह कर, अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया गया कि सर्वर पर उनके पिता का डाटा अपडेट नहीं हुआ है। ये परिस्थिति, उनके टेस्ट के 5 दिन बाद की थी। इसके बाद, आम आदमी पार्टी के विधायक दिलीप पांडे की पहल पर – विवेक गुप्ता के पिता को अस्पताल में भर्ती किया गया।

विवेक की मदद को तो विधायक आ गए पर..

दरअसल हमारे इस सवाल का, विवेक ने भी ये ही जवाब दिया कि उनकी मदद को तो विधायक आगे आ गए – लेकिन ज़्यादातर लोग, इसी लापरवाही से जूझते हुए – धक्के खा रहे हैं। सोच कर देखिए कि कितने लोग होंगे, जो बिना किसी सपोर्ट सिस्टम या प्रभावशाली व्यक्ति की मदद के, अपना टेस्ट तक भी करा पा रहे होंगे। ऐसा भी नहीं है कि ये स्थिति केवल केंद्र सरकार के अस्पतालों के साथ है। कमोबेश, दिल्ली सरकार के अस्पतालों की स्थिति भी यही है। हमने कई लोगों से बात की और इस स्थिति में राज्य और केंद्र के स्तर पर ज़्यादा अंतर नहीं है। हां, ये सच है कि विलंब की स्थिति सर्वाधिक खराब राम मनोहर लोहिया अस्पताल में है।

आरएमएल में लापरवाही का हाल

हालांकि हम इस समय ये तथ्य लिखना नहीं चाहते थे, लेकिन सच ये है कि आरएमएल अस्पताल की ये घटना – एक अंदाज़ा दे सकती है कि वहां लापरवाही किस हाल में है। अस्पताल में पिछले ही सप्ताल, कैथ लैब से 20 लाख रुपए की कीमत के चिकित्सा उपकरणों की चोरी हो गई। किसी को नहीं पता कि ये उपकरण कैसे गायब हुए और किसी को इस पर हैरानी भी नहीं है। एक जांच कमेटी गठित कर दी गई है और मामले को समय पर छो़ड़ दिया गया है। इसी अस्पताल में ये कुछ ही महीनों में चोरी की ये तीसरी घटना है। क्या इससे आपको कुछ अंदाज़ा लगता है कि इस अस्पताल का हाल क्या है?

आख़िर केंद्र और राज्य में रस्साक़शी किस बात की है?

अंदरूनी सूत्रों से बात करने पर हम अभी तक जो आकलन कर सके हैं, उसके मुताबिक राज्य और केंद्र दोनों के बीच जद्दोजहद एक ही बात की है। लापरवाही अपनी जगह है, लेकिन राज्य और केंद्र दोनों की दरअसल कोरोना के आंकड़ों को कृत्रिम तरीके से, यानी कि कम टेस्ट, अस्पताल में मरीज़ भर्ती न कर के और जल्दी डिस्चार्ज के ज़रिए नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी जद्दोजहद में अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार के अंतर्गत काम करने वाले अस्पताल और नेता भी आमने-सामने आ गए हैं। ज़ाहिर है कि किसी भी सरकार के हाथ से परिस्थिति फिसलती दिखाई दे रही है।

देश की केंद्र में सत्ता में बैठी पार्टी और केंद्रीय गृह मंत्री, रविवार से बिहार में ऑनलाइन रैली कर के चुनावी अभियान शुरु कर रहे हैं, गुजरात में विधायक तोड़कर राज्यसभा सीटों को बढ़ाने की क़वायद चल रही है। और जनता जिनको मसीहा मान कर बैठी थी, उनके सामने लक्ष्य ये है कि कैसे कुर्सी के पाए चार से छः कर लिए जाएं, क्योंकि जनता बस वोटर है – जिसका चुनाव में इस्तेमाल होता है और उसके बाद कुछ भी नहीं…

 

मयंक सक्सेना, मीडिया विजिल संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। टीवी पत्रकारिता के एक दशक के बाद अब मुंबई में फिल्म लेखन करते हैं।

 


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