कोरोना काल: ‘उत्तर’ प्रदेश के अनुत्तरित ‘प्रश्न’ और अपनी तारीफ़ में प्रेस कांफ्रेंस!

हालांकि ये पहली बार नहीं है, लेकिन कम से कम सरकारों से इस संकट के समय में आंकड़ों में पारदर्शिता की उम्मीद की जा सकती थी। देश की सबसे अधिक आबादी वाला प्रदेश, न केवल अपने कोरोना डाटा को लेकर अपारदर्शी है। इस डेटा को लेकर सवाल उठने के बाद, एक प्रेस कांफ्रेंस तो करता है – लेकिन उसमें सवालों के जवाब नहीं देता। राज्य के सचिव प्रेस कांफ्रेंस में सरकार की तारीफ़ करते हैं, लोगों को सलाह देते हैं – घोषणाएं करते हैं। यानी कि कुल मिला कर, अपनी वाहावाही करने के बाद, इशारों-इशारों में सवाल उठाने वालों को क़ानूनी कार्रवाई की धमकी भी दे देते हैं।

हाल देश का

देशभर में कोरोना के आँकडे 5 लाख के ऊपर चले गए हैं।प्रतिदिन नए आँकड़ो के हिसाब से भारत सिर्फ़ अमेरिका और ब्राज़ील से पीछे है। देश में लगतार चार दिन से 18,000 से ज़्यादा नए कोरोना संक्रमण के केसेज़ आ रहे हैं। पिछले दस दिनों में देश में डेढ़ लाख से अधिक नए संक्रमित केसेज़ दर्ज हुए हैं, जबकि पहले डेड़ लाख केसेज़ की संख्या तक पहुँचने में 120 दिन लगे थे। हर दिन भारत में 300 से ज़्यादा कोरोना पीड़ितों के मृत्यु की ख़बर आ रही है और अब तक 16 हज़ार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। विश्व की मशहूर यूनिवर्सिटी हॉर्वर्ड के विशेषज्ञों के मुताबिक़ अगस्त की शुरुआत में भारत में दिन के 2 लाख से भी ज़्यादा नए केसेज़ आने लगेंगे।

अगर हमने अपनी टेस्टिंग और ट्रेसिंग के तरीक़ों में बदलाव और सुधार नहीं किया तो कोरोना संक्रमण की दर को ना तो हम ढंग से रिकॉर्ड कर पाएँगे ना रोक पाएँगे। ऐसे हालात में स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रबंध के लिए, प्रशासन की तैयारी के लिए, विशेषज्ञों की राय के लिए और इस महामारी से बचने के लिए, ये बहुत ज़रूरी है की कोरोना के टेस्ट्स, केसेज़, मृत्यु और रिकवेरी का डेटा नियमित, पारदर्शी और त्रुटिरहित तौर से एकत्रित और रिकॉर्ड किया जाए। लेकिन एक राज्य है, जहां कोरोना पर नियंत्रण के दावों का प्रचार-प्रसार कॉरपोरेट शैली में हो रहा है – जबकि वहां आंकड़ों को लेकर कोई पारदर्शिता नहीं दिख रही है।

डेटा पारदर्शी न हो तो क्या फ़ायदा?

“द हिंदू” में छपी एक ख़बर के मुताबिक़ सारे राज्यों से मिल रही कोरोना संबधित जानकारी में बहुत अंतर है। अधिकतर राज्य सिर्फ़ नए केसेज़ और मृत्यु की संख्याओं को रिपोर्ट कर रहे हैं, जबकि सिर्फ़ कुछ ही राज्य ऐसे हैं जो मरीज़ों और पीड़ितों के बारे में विस्तृत जानकारी मुहैया कर रहे हैं। नीचे दी गयी टेबल में देश के 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कोरोना के डेटा संबंधित जानकारी की उपलब्धता का लेखा जोखा है।

इस टेबल में नौ पैमानों पर जानकारी की उपलब्धता को मापा गया है। Yes” या “no”का मतलब है कि या तो डेटा मौजूद है या नहीं, “okay” का मतलब है कि जानकारी अनियमित और अधूरे ढंग से रिपोर्ट हो रही है।

नौ पैमानों में अंग्रेज़ी या क्षेत्रीय भाषाओं में नियमित बुलेटिन, मृत्यु और केस दर पर डेटा, टेस्टिंग सैम्पल्ज़, ज़िला स्तर पर डेटा, मरीज़ों के बारें में और मृत्यु के कारणों पर विस्तृत जानकारी शामिल है।उदाहरण के तौर पर “patient demographics “ वाले कॉलम में “yes” का अर्थ है कि क्या वो राज्य मरीज़ के बारें में उसके उम्र, लिंग, ट्रैवल हिस्ट्री, भर्ती होने की तारीख़ इत्यादि उपलब्ध कर रहा है।

इस टेबल के अनुसार सिर्फ़ तमिल नाडु और कर्नाटक ऐसे दो राज्य हैं जो हर जानकारी नियमित और त्रुटिरहित तरीक़े से उपलब्ध कराते हैं। वहीं उत्तर प्रदेश हर जानकारी के पैमाने पर खरा नहीं उतरता। ऐसी परिस्थ्तियों में इस राज्य के प्रशासन, स्वास्थ्य सुविधाओं और सरकार पर कई प्रश्न उभर कर आते हैं। हालांकि राज्य को लेकर, जैसे ही इस डेटा के साथ सवाल आए – न केवल तत्काल प्रभाव से सरकार ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर दी, बल्कि इशारों-इशारों में सवाल उठाने वालों पर क़ानूनी कार्रवाई की धमकी भी दे दी गई है।

प्रश्नों में घिरा ”उत्तर” प्रदेश 

उत्तर प्रदेश की वर्तमान आबादी 23 करोड़ है। ये वो राज्य है जहाँ पर लोक सभा की सर्वाधिक सीट हैं यानी कि देश की राजनीति में इस राज्य का सबसे प्रबल किरदार रहता है। 4 दिन पहले ही, देश के प्रधान मंत्री ने इस राज्य के बारें में नौ से ज़्यादा ट्वीट किए हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में प्रति हज़ार व्यक्ति पूरे तीन टेस्ट्स भी नहीं हो रहे हैं। इसके बावजूद प्रतिदिन केसेज़ की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश में 15 जून को कन्फ़र्म्ड केसेज़ 14,091 थे  और 16 जून को  14598 थे। लेकिन 27 जून को इस राज्य में ठीक हुए मरीज़ों की संख्या 14,215 हो गयी है। अर्थात 15 जून और 16 जून के बीच जो नए 507 मामले आए थे उनमें से 124 लोग मात्र दस से ग्यारह दिन में ठीक हो गए हैं। जहाँ लगातार विशेषज्ञों के बीच में असहमति है कि मरीज़ कितने दिन में ठीक हो सकते हैं, और अगर सिम्प्टम्ज़ ना भी दिखें तो वो कब तक बीमारी के कैरीअर हो सकते हैं? ऐसे हालात में रिकवरी का ये गणित वाकायी अभूतपूर्व है।  इस राज्य का डेटा भी नहीं बताया जा रहा खुल कर? क्यों ऐसे राज्य जिसकी तारीफ़ें करते और उसको आत्मनिर्भर कहते हमारे प्रधानमंत्री थक नहीं रहे वहाँ पर क्यों मृत्यु दर और संक्रमण दर में लगतार इज़ाफ़ा हो रहा है? आख़िर डेटा और राज्य सरकार से जवाबों  के अभाव में इस राज्य की परिस्थिति का सही आंकलन लगभग नामुमकिन है। शायद उत्तर प्रदेश की बजाए वक़्त आ गया है इस राज्य के मुख्यमंत्री से सीखकर हम इस राज्य का नाम बदल कर प्रश्न”उत्तर” प्रदेश रख दें।


सौम्या गुप्ता, डेटा विश्लेषण एक्सपर्ट हैं। उन्होंने भारत से इंजीनीयरिंग करने के बाद शिकागो यूनिवर्सिटी से एंथ्रोपोलॉजी उच्च शिक्षा हासिल की है। यूएसए और यूके में डेटा एनालिस्ट के तौर पर काम करने के बाद, अब भारत में , इसके सामाजिक अनुप्रयोग पर काम कर रही हैं।

 


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