SC-ST कानून : सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना पुराना फैसला, गिरफ्तारी का पुराना कानून लागू

सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में अपना पुराना फैसला वापस ले लिया है. अब इस एक्ट के तहत बिना जांच के एफआईआर दर्ज की जा सकेगी.जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम.आर.शाह और जस्टिस बी.आर.गवई की पीठ ने मंगलवार को केंद्र की याचिका को अनुमति देते हुए यह कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों को कानून के खिलाफ निर्देश पारित करने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की पीठ ने मंगलवार को कहा कि समानता के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का संघर्ष देश में अभी खत्म नहीं हुआ है. कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी वर्ग के लोग अब भी छुआछूत, दुर्व्यवहार का सामना कर रहे हैं और उन्हें बहिष्कृत जीवन गुजारना पड़ता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत एससी-एसटी वर्ग के लोगों को संरक्षण प्राप्त है, इसके बावजूद उनके साथ भेदभाव हो रहा है. इस कानून के प्रावधानों के दुरुपयोग और झूठे मामले दायर करने के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि यह जाति व्यवस्था की वजह से नहीं, बल्कि मानवीय विफलता का नतीजा है.

अदालत ने कहा कि 2 जजों की बेंच को दिशा-निर्देश तैयार नहीं करने चाहिए थे, क्योंकि ऐसा करना विधायिका के दायरे में है. आगे यह कहा गया था कि हाशिए के समुदायों के लोगों को प्रताड़ना के अधीन किया जा रहा है, जिसके मद्देनजर अधिनियम की सुरक्षात्मक प्रकृति आवश्यक थी. पीठ ने आगे ये भी कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के दुरुपयोग के एकाध उदाहरणों के तहत अदालत द्वारा इसे कमजोर करने के निर्देश सही नहीं ठहराए जा सकते हैं. दरअसल 18 सितंबर को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस बी. आर. गवई की पीठ ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान मानवीय तरीके से सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों पर सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. जस्टिस मिश्रा ने अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपालन को कहा था कि सीवर सफाई में रोजाना लोगों की जान जा रही है. इन लोगों को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर तक नहीं दिए जाते. सरकार क्या कर रही है? उन्होंने कहा था, “ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 70 साल बाद भी जातिगत भेदभाव को दूर करने का प्रयास नहीं किया गया है. इस तरह लोगों को मरने नहीं दिया जा सकता है.” पीठ ने अटॉर्नी जनरल को इस संबंध में उठाए जाने वाले कदमों व उपायों पर एक नोट दाखिल करने को कहा था.

वहीं अटॉर्नी जनरल ने इसपर कहा था कि वो जानते हैं कि सीवर सफाई में कैसे लोगों की जान जा रही है। वहीं याचिकाकर्ता की ओर ये गोपाल शंकरनारायण ने पीठ को बताया था कि हर साल सीवर सफाई के दौरान करीब 300 लोगों की मौत हो जाती है। इससे पहले 13 सितंबर को 2 जजों की पीठ ने बड़ी बेंच के गठन के लिए मामले को CJI रंजन गोगोई के पास भेज दिया था। अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यू. यू. ललित की पीठ ने कहा था, “यह मामला महत्वपूर्ण है और इसे देखते हुए हम लगता है कि इसकी सुनवाई 3 जजों की पीठ को करनी चाहिए. इसे अगले सप्ताह सुनवाई के लिए लगाया जाए.”
पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल की दलीलों को सुनने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रखा था.

पिछले वर्ष शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत आरोपी को सीधे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. इस आदेश के मुताबिक, मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जांच करनी थी. इस फैसले के विरोध में देशभर में एससी/एसटी समुदाय के लोगों द्वारा देशभर में व्यापक प्रदर्शन किया गया था.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले के खिलाफ दलित संगठनों के विरोध के बाद मोदी सरकार ने अगस्त 2018 में ही संसद के जरिए कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. एससी/एसटी संशोधन विधेयक 2018 के तहत मूल कानून में धारा 18A को जोड़ते हुए पुराने कानून को फिर से लागू कर दिया गया.

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