“सुशांत ने ख़ुदकुशी नहीं की, उन्हें लॉकडाउन और बॉलीवुड के नेपोटिज़्म ने मारा”

 

युवा दिल की धड़कन और ज़िदगी  से लबरेज़ दिखने वाले एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की ख़ुदकुशी पर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार और इंडिया टीवी के डिप्टी एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर राजशेखर त्रिपाठी ने ट्विटर पर  इस ख़ुदकुशी को लेकर बॉलीवुड की रीत-नीति पर कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं। पढ़िये–

सुशांत राजपूत ने खुदकुशी कर ली। मीडिया को कॉन्सपिरेसी थियरी तलाशने दीजिए। लेकिन जो बेचारे इस लॉकडाउन में रोज तिल – तिल मर रहे हैं उनकी सोचिए। रहा नेपोटिज्म, तो इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि करन जौहर ने अफसोस करते हुए ही सही बता दिया कि एक साल से उन्होंने सुशांत से बात तक नहीं की थी।

सुशांत राजपूत ने खुदकुशी नहीं की। उन्हें लॉकडाउन और बॉलीवुड के नेपोटिज्म ने मारा। शेखर कपूर ने उन्हें लेकर ‘पानी’ बनाने का फैसला किया। भाई ने इंटरनैशनल निर्देशक बन चुके शेखर के चक्कर में 11-12 बड़ी फिल्में छोड़ दीं। मगर कपूर ने पहले प्रोजेक्ट बंद किया फिर दूसरी ओर रणवीर सिंह के साथ बात शुरू कर दी ।

सुशांत इस चक्कर में काफी कुछ गंवा चुके थे। वक्त भी फिल्में भी। हालांकि वो प्रतिभाशाली अभिनेता थे, मगर ‘बॉलीवुड होमी’ तो कतई नहीं थे। कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था। उनकी मात्र 12 फिल्मों में 2 ही सुपर हिट हैं। ‘काय पो चे’ और ‘धोनी’। दो और फिल्मों की कमाई ठीक ही हुई थी। तो यही कुल जमा पूंजी थी।

इस वैक्यूम ने अचानक भाई को डिप्रेशन में धकेल दिया। होता भी है,जब मूलत: आप पटना/लखनऊ/भोपाल से आए हों, सपना बड़ा हो और पाली हिल के घर का किराया 4 लाख। पहले सुशांत खुद डिप्रेशन में आए फिर लॉकडाउन से पूरा देश। लॉकडाउन उठ भी जाता तो नयी फिल्मों के फ्लोर पर आने की उम्मीद अभी सपना है।

जी हां, मल्टीप्लेक्स अभी लंबे वक्त तक नहीं खुल पाएंगे ये हम नहीं सिने ट्रेड के एक्सपर्ट ही कह रहे हैं। तो इस लॉकडाउन के डिप्रेशन ने आशंकाएं और बढ़ा दीं। डिप्रेशन और बढ़ गया।

अब लगे हाथ, बॉलीवुड के ट्रेड का ककहरा और समझिए। एक चीज़ होती है साइनिंग अमाउंट। आम फहम ज़बान में बयाना।

इस साइनिंग अमाउंट रूपी बयाने की बड़ी चर्चा होती है। जितना बड़ा स्टार, जितना बड़ा फिल्म का बजट, उतना बड़ा बयाना। मगर ठहरिए ये बयाना ही एक्टर की ठोस कमाई है वो चाहे जिस शक्ल में दी गयी। इसके बाद की रकम फिल्म के चलने पर निर्भर है या ‘सलमानी रसूख’ पर। जैसी चली-वैसी मिली।

सुशांत का रसूख कितना था इसी से समझ लें कि आन रेकॉर्ड उनकी फीस ही 5 करोड़ से ज्यादा नहीं थी। इस लिहाज़ से देखिए तो बॉलीवुड ग्लैमरस दिहाड़ी मजदूरों के पड़ाव से ज्यादा कुछ भी नहीं, और ये भ्रम भी दूर कर लीजिए कि सुशांत जैसों ने कमा कर रखा तो होगा ही।

खर्च हर जगह कमाई के हिसाब से होता है। कम ही होते हैं जो कंट्रोल कर के चादर फैलाएं या भविष्य का बड़ा प्लैन कर लें। मजदूर चाहे बड़ा हो या छोटा। हाल सबका वही है। टीवी एपीसोड वाइज़ कमाने वालों का हाल भी मीडिया में आ ही रहा है, बताने की जरूरत नहीं कि लॉकडाउन ने उनका क्या कर रखा है।

अफसोस तो शेखर कपूर को भी है जिसे लोगों ने उनके घड़ियाली आंसू तक कह दिया। मगर यही सुशांत ‘बॉलीवुड होमी’ होते या ठीक से किसी कैम्प में होते तो शायद हाथ से निकली दर्जन भर फिल्मों में से एक आध लौट ही आतीं। फिलहाल हम इस बहस में नहीं जाते कि लॉकडाउन सही था या गलत। तरीका सही था या नहीं ।

मगर सुशांत की मौत के पीछे ये भी एक बड़ी वजह थी। पुलिस कोई और भी वजह निकाल ले हो सकता है। मगर इस डिप्रेशन में पोस्ट लॉकडाउन डर भी वजह है। अंत में एक तथ्य जो सुशांत के नौकर ने पुलिस को बताया….

नौकर ने सुशांत को संभवतः उसी दिन उदास न रहने को कहा। सुशांत ने उसे कहा- सबका पैसा दे दिया है। आगे आप लोगों का दे पाऊंगा या नहीं पता नहीं। सुशांत की ये बात कुछ तो कहती ही है, वो भी तब जब 4 दिन पहले उनकी मैनेजर की खुदकुशी को भी कामबंदी से जोड़ कर ही देखा जा रहा है… और सुनिए..

सुशांत ने खुदकुशी क्यों की? के नाम पर उनकी 12 फिल्मों की फिल्मोग्राफी या फिल्म ‘छिछोरे’ के उनके डायलॉग याद दिलाना बेमानी है। खुदकुशी होती हो या की जाती हो ये बहसें अब बेमतलब हैँ। नीर-क्षीर के फेर में फंसा हंस अंतरिक्ष की अनंत उड़ान पर निकल चुका है।



क़लम और आवाज़ के धनी राजशेखर कई अख़बारों और टी.वी.चैनलों में काम कर चुके हैं। पत्रकारिता का लंबा अनुभव है, गोकि शुरुआत रंगमंच और साहित्य से हुई थी जो उनके हाव-भाव और बतरस में आज भी झलकता है।

 

 



 

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