आज की राजनीति में विरोध और समर्थन वैचारिक स्तर पर नहीं रहा, अब वह वोट के गणित और जन अवधारणा पर किया जाता है। यह कहावत लोगों के बीच आम है कि अगर काम निकलना हो तो नेता “किसी” के भी चरणागत होने में संकोच नहीं करेंगे। पिछले कई दिनों से महाराष्ट्र में MNS (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना), महाराष्ट्र भर में लाउडस्पीकरों को बंद करवाने का अभियान चला रही है। MNS अध्यक्ष राज ठाकरे का कहना है कि उनका यह अभियान 90 प्रतिशत सफल भी है। इस पर अब महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि यह अभियान “मुसलमानों से ज़्यादा हिन्दुओं को प्रभावित करेगा”। क्या महाराष्ट्र सरकार को सच में लोगों की धार्मिक आज़ादी की चिंता है? या यह डर की कहीं भावनात्मक वोटर MNS के न हो जाएं ? यह महज़ सवाल है कारण कुछ भी हो सकता है, जान यह लेते हैं कि यह सवाल आया कहाँ से ?
NCP नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने राज ठाकरे को नसीहत भरे तीखे लहजे में कहा “यह किसी की दी गई कुछ समय सीमा के आधार पर नहीं बल्कि कानून और संविधान पर चलने वाला राज्य है। वे चाहें तो अपने घरों में इस तरह के ‘अल्टीमेटम’ दे सकते हैं।” यह बात वे राज ठाकरे के उस बयां पर बोले जिसमे राज कह रहे हैं कि यह अभियान तब तक बंद नहीं होगा जब तक राज्य के सारे लाउडस्पीकर हटा नहीं लिए जाते। अजीत पवार आगे कहते हैं कि जो भी जन संवाद कानून को तोड़ता नज़र आएगा उसके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी।
वहीं महाराष्ट्र सरकार में तीसरी सहयोगी पार्टी कांग्रेस के महसचिर सचिन संवत एक संख्या की बात करते हैं “2400”, यह संख्या है मुंबई के उन मंदिरों की जो आरती और अन्य अनुष्ठानों के लिए लाउडस्पीकरों का इस्तमाल करते हैं। इन में से ज़्यादातर ऐसे हैं जिनपर इस अभियान का असर पड़ेगा।
क्यों पड़ेगा मंदिरों पर ज़्यादा असर?
संवत बताते हैं की मुंबई में 2404 मंदिर और 1140 मस्जिद हैं, जिनमें से 922 मस्जिदों ने स्थानीय पुलिस से लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने की अनुमति ले ली है। वहीं महज 22 मंदिरों ने लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने की अनुमति ली है। कुल मिला कर करीब 2300 मंदिर और 200 मस्जिद ऐसे होंगे जिन पर MNS के इस अभियान का असर पड़ने वाला है। मुंबई का श्री सिद्धिविनायक मंदिर, राज्य भर के कई और प्रमुख मंदिर, आने वाले गणेश उत्सव और नवरात्रि पर भी इस लाउडस्पीकर प्रतिबंध का भारी असर पड़ेगा।
शिव सेना के नेता किशोर तिवारी ने कहा कि “MNS के इस अभियान के चलते शादियों और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजक शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें DJ और लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने में डर लग रहा है कि कहीं MNS के कार्यकर्ता उनका कार्यक्रम खराब करने न पहुँच जाएं” सचिन संवत और किशोर तिवारी इसे एक “स्वार्थी” आंदोलन बताते हैं जिस से मुसलमानों की तुलना में हिन्दुओं का ज़्यादा नुकसान हो रहा है और आने वाले समय में MNS को इसके परिणामों का सामना करना होगा। मानों अगर इस में हिन्दुओं का नुकसान न होता तो, मुसलमानों के नुकसान से इन्हे कोई आपत्ति नहीं थी? यह सवाल इस लिए हैं क्योंकि इनके दिए हर बयान में एक समाज की तुलना दूसरे समाज से की गई है, अगर यह तुलना न होती तो यह सवाल भी न होते।
मीडिया ने ने दिखाया झूठ, साईबाबा मंदिर में बंद नहीं हुआ लाउडस्पीकर
श्री साईबाबा संस्थान ट्रस्ट, शिरडी की CEO भाग्यश्री बनायत-धिवारे ने बताया कि जो मीडिया संस्थान यह बता रहे हैं कि शिरडी साईबाबा मंदिर में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल बंद हो गया है वे गलत हैं। हमने रात व सुबह की आरती में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल बंद नहीं किया है। बुधवार की रात और गुरुवार की सुबह को साईंबाबा मंदिर की रात्रि आरती जो रात 10 बजे शुरू होती है और सुबह सवा 5 बजे से आयोजित की जाने वाली काकड़ आरती पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर आयोजित की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार डेसिबल स्तर 45 डीबी तक कम किया गया था।
MNS का यह अभियान “पागलपन” है: कांग्रेस नेता
पुलिस प्रशासन के साथ एक बैठक में सभी समाजों के प्रतिनिधियों में MNS के इस रुख का विरोध किया है, BJP के समर्थन से मनसे का यह पागलपन और स्वार्थी रुख लेता जा रहा है। जो न सर्व बहुसंख्यक बल्कि समाज के हर हिस्से के साथ महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य की छवि के लिए भी हानिकारक है। यह समाज में मौजूद हिंदू मंदिरों के अलावा, ईसाई चर्चों, सिख गुरुद्वारों, बौद्ध विहारों, जैन संस्थानों आदि में दूसरे समुदायों के धार्मिक प्रार्थनाओं, प्रवचनों, कथाओं या कार्यक्रमों को भी प्रभावित करेगा। अपनी बात के अंत में सचिन संवत ने यह कहा।
राज ठाकरे का बयान
आपने अभियान के पहले दिन राज ठाकरे ने बुधवार को यह दावा किया की उनका अभियान 90 प्रतिशत सफल रहा है। जिन भी मस्जिदों में लाउडस्पीकर नहीं हटाए हैं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया है, और उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। हालांकि राज्य में शांति बनी रही, लेकिन मनसे ने लंबे समय तक अपना आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है और कहा है कि यह एक सामाजिक मुद्दा है न कि धार्मिक।
अंतिम सवाल
इस पूरी बात में राज महज़ मस्जिदों में इस्तेमाल हो रहे लाउडस्पीकरों का ज़िक्र करते हैं और किसी भी अन्य धर्म स्थल या कार्यक्रम का नाम नहीं लेते जहाँ लाउडस्पीकरों का इस्तमाल अभी भी हो रहा है, उनकी खुद की रैली में लाउडस्पीकरों का इस्तमाल होता है। तो क्या यह न मान लिया जाए कि यह महज़ मुस्लिम विरोधी अभियान के सिवा कुछ नहीं ? और जिस वोट बैंक को लुभाने के लिए यह किया जा रहा है अधिक असर उन ही के धर्म स्थलों पर पद रहा है। राज ठाकरे की ख़ुद की रैली में भले ही अभी भी हज़ारों या लाखों लोग जुट जाएं लेकिन उनकी पार्टी को वोट के नाम पर अभी तक शायद उनके कार्यकर्ताओं के अलावा किसी का वोट नहीं मिला है। राज ठाकरे के राजनैतिक करियर का ये नया और संभवतः आख़िरी दांव है और दांव वही है, जो उनके राजनैतिक गुरू और चाचा का था…सांप्रदायिकता!