उर्दू सहाफियों के ‘अब्बू साहब’नहीं रहे

हफीज़ नोमानी

लखनऊ में उर्दू पत्रकारिता (सहाफत) के मजबूत स्तम्भ कहे जाने वाले मशहूर सहाफी हफीज़ नोमानी का रविवार देर रात इंतेक़ाल (देहांत)हो गया। अपनी नब्बे बरस की जिंदगी में तकरीबन साठ बरस उर्दू सहाफत को देने वाले हफीज़ नोमानी साहब ने अपनी अंतिम सांस लखनऊ स्थित सहारा हॉस्पिटल मे ली। सांस लेने में तकलीफ और तमाम मर्ज़ (बीमारियों) का यहां इनका इलाज चल रहा था।
सोमवार को दारुल उलूम नदवा में मरहूम नोमानी का नमाज़े जनाज़ा हुई, जिसके बाद लखनऊ के ऐशबाग स्थित क़ब्रिस्तान में इन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया। ये इत्तेला उनके बेटे मंजुल आज़ाद ने दी।
हफ़ीज़ साहब लम्बे अर्से तक उर्दू सहाफत की ख़िदमत करते रहे। उम्र के आख़िरी पड़ाव तक उन्होंने देश के मशहूर अखबारों में कॉलम्स लिखे। सियासी, सामाजिक और अदबी मौज़ू पर लिखने में उन्हें महारत हासिल थी।
लखनऊ के वरिष्ठ उर्दू पत्रकार उबैद नासिर साहब ने बताया कि नोमानी साहब ने सहाफत की आगे की पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए बड़ा योगदान दिया। नोमानी साहब के जूनियर्स उर्दू सहाफी उन्हें प्यार से अब्बू साहब कहते थे।

पत्रकार नवेद शिकोह की रिपोर्ट 

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