सरदार सरोवर बांध से विस्थापितों द्वारा दायर याचिका पर देश की सर्वोच्च अदालत ने गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को नोटिस जारी किया है और बिना पुनर्वास डूब के मुद्दे पर तीनों राज्य सरकारों से जवाब मांगा है. 18 सितंबर के सरदार सरोवर के विस्थापितों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति एन.वी.रमना और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी जी की खंडपीठ अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि पुनर्विचार के लिए नर्मदा ट्रिब्यूनल के तहत गठित उच्चस्तरीय समिति की बैठक हो और उसमें जलस्तर व पुनर्वास,दोनों मुददों पर निर्णय लिए जायें.
अप्रैल, 2019 में ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार पुनर्वास की बात करने के बावजूद, सभी राज्यों को प्रभावितों को हटाने की योजना प्रस्तुत करने को कहा गया और 15 अक्टूबर, 2019 तक 138.68 मीटर यानी पूर्ण जलाशय स्तर तक पानी सरदार सरोवर में भरने की मंजूरी दी गई थी लेकिन अब जबकि 15 अक्टूबर के लगभग एक माह पूर्व ही जलाशय को भर कर राज्य सरकार ने देश की सर्वाच्च अदालत के फैसलों का सीधा उल्लंघन किया है.
अधिवक्ता पारिख ने अदालत को बतया कि बाद में इस समय पत्रक को भी बदलकर 17 सितंबर 2019 कर दिया गया और इसी तारीख को लक्ष्य बनाकर सरदार सरोवर बांध में पूर्ण जलस्तर तक पानी भरा गया. अब इस समय में बांध की ऊंचाई 138.68 मीटर के बराबर पानी भरा हुआ है.
नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसलों में इस अंतरराज्य परियोजना के लिए एक पुनर्विचार समिति गठित की है.जिसमें मध्य प्रदेश,गुजरात और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सदस्य हैं और केंद्रीय जलशक्ति मंत्री अध्यक्ष हैं. इन्हें किसी भी मुद्दे पर परियोजना संबंधी निर्णय एवम विवाद का निपटारा करने का अधिकार है. अगर कोई विवाद कायम रहा तो मध्यस्थ और पंचो की स्थापना भी ट्रिब्यूनल के फैसलों में प्रस्तावित है.
इससे तीनों राज्यों के हजारों परिवारों के घर, गांव, खेत के साथ हजारों पेड़ आदि डूब गए हैं. बिना पुनर्वास हजारों परिवारों की आजीविका छिन गई है.
2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार भी पुनर्वास को अधूरा रखकर ही जल भराव हुआ. सर्वोच्च अदालत ने इस पर गुजरात, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश को नोटिस जारी कर उनसे इस मुद्दे पर जवाब मांगा है. अगली सुनवाई 26 सितंबर को है.
NAPM द्वारा जारी विज्ञप्ति के आधार पर प्रकाशित