देश में आम आदमी से जहां तमाम तरह की सावधानियां बरतने की अपील की जा रही है – लगातार हम राजनेताओं की कोरोना संक्रमण के प्रति लापरवाही के दसियों उदाहरण देख रहे हैं। इस सिलसिले में अब तक की सबसे बड़ी लापरवाही और बुरी ख़बर आई है, उत्तराखंड से। ये ख़बर उत्तराखंड से है, जहां राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ही नहीं, उनके परिवार और स्टाफ के ज़्यादातर मेंबर्स, कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।
इसके पहले शनिवार को सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत, सबसे पहले कोरोना पॉजिटिव पाई गईं। रविवार को उनको एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया। इसके बाद सतपाल महाराज, उनके बाकी परिवार और स्टाफ की भी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट भी आ गई और सतपाल महाराज समेत उनके परिजन और स्टाफ को भी कोरोना संक्रमित पाया गया। इसके बाद जिला प्रशासन ने उनके म्युनिसिपल रोड स्थित आवास वाले पूरे इलाके को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया है।
मामला सामने कैसे आया?
दरअसल 24 मई के आसपास, सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत की सेहत बिगड़ने के बाद, उनके सैंपल एक प्राइवेट लैब में भेजे गए। उनके टेस्ट की रिपोर्ट कोरोना पॉज़िटिव आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सतपाल महाराज और उनके परिवार तथा स्टाफ 41 लोगों के सैंपल लिए थे। जिसमें स्टाफ के 35 लोग भी शामिल थे। उनकी पत्नी के अलाव और सतपाल महाराज समेत परिवार के 5 लोगों के अलावा उनके स्टाफ में भी 17 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। सतपाल महाराज, उनके दो बेटे और बहुएं कोरोना पॉजिटिव हैं, जबकि एक बेटे को लेकर अभी कोई जानकारी स्पष्ट नहीं है। बताया जा रहा है कि उनके बेटे का फिर से सैंपल लेकर, टेस्ट किया जाएगा। उनके कर्मचारियों में भी 6 लोगों का टेस्ट दोबारा से होना है।
सतपाल महाराज और उनके परिवार के संक्रमण की ज़द में और कौन
दरअसल सच ये है कि अब सतपाल महाराज के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद सीएम समेत उत्तराखंड सरकार के सभी मंत्रियों और चीफ सेक्रेटरी समेत और अधिकारियों भी संक्रमण की ज़द में आ गए हैं। क्योंकि बुधवार को ही सतपाल महाराज ने कैबिनेट की बैठक में हिस्सा लिया था। इसललिए अब सरकार के सभी मंत्रियों, बैठक में मौजूद अधिकारियों समेत सीएम भी संक्रमण की ज़द में हैं।
इसके अलावा – सोशल डिस्टेंसिंग लागू होने के बावजूद, 22 मई को ही सतपाल महाराज, अपने विधानसभा क्षेत्र में भी राशन वितरित करने गए थे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के लिए ये अलग चिंता का विषय है, क्योंकि उनकी पत्नी भी यहां भी उनके साथ गई थी।
इसके सतपाल महाराज ही नहीं, उनकी पत्नी अमृता रावत भी धर्मगुरु हैं। ये दोनों मिलकर एक धार्मिक संगठन मानव सेवा उत्थान समिति चलाते हैं। सतपाल महाराज के मंत्री बनने के बाद से, इस संस्था का काम अमृता रावत देखती हैं। इस वजह से भी अमृता रावत का लगातार लोगों से मिलना जुलना लगा रहता है। ऐसे में ये भी बड़ी चुनौती होगी कि स्वास्थ्य विभाग ये पता लगाए कि इस बीच अमृता रावत, कितने और किन लोगों से मिली हैं।
दरअसल इन तीन हालात से समझा जा सकता है कि सतपाल महाराज, उनकी पत्नी या परिवार के ज़रिए कोरोना संक्रमण कितने लोगों तक पहुंचने की संभावना है – इसका तत्काल कोई निश्चित आकलन ही नहीं हो सकता है। ये संक्रमण, देहरादून से लेकर उनकी विधानसभा सीट चौबट्टाखाल तक पहुंच जाने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। ये भी पता लगाने की कोशिश की ही जाएगी कि उनके परिवार तक ये संक्रमण कहां से पहुंचा।
क्या हुआ रिपोर्ट सामने आने के बाद
इस रिपोर्ट के आने के बाद, स्वास्थ्य विभाग ने तत्काल प्रभाव से सतपाल महाराज के घर काम करने वाले सभी लोगों को इंस्टिट्यूशनल क्वारेंटीन कर दिया और सतपाल महाराज के परिवार को देहरादून के ही एक होटल में। हालांकि सूत्रों के मुताबिक, परिवार के सभी लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता है।
क्या बोली सरकार?
इस मामले के सामने आते ही, उत्तराखंड सरकार में हड़कंप मचा हुआ है। स्वास्थ्य विभाग की नींद उड़ी है और सबसे पहला काम ये किया गया है कि सतपाल महाराज के घर के आसपास के सारे इलाके को ही कंटेनमेंट ज़ोन घोषित कर के सील कर दिया गया है। सरकार के प्रवक्ता-मंत्री मदन कौशिक के मुताबिक, “आईसीएमआर की गाइड लाइन के अनुसार फर्स्ट कान्टेक्ट में आने वाले लोगों को ही क्वारंटीन किया जाता है। ऐसे में सभी कैबिनेट मंत्रियों और अधिकारियों को क्वारेंटीन करने की कोई ज़रूरत नहीं है। स्वास्थ्य विभाग नियमानुसार काम कर रहा है और इस मामले में पूरी सावधानी बरतते हुए स्थिति के अनुसार से अधिकारी एक्शन ले रहे हैं।”
इस मामले में ये समझना बहुत ज़रूरी है कि अगर उत्तराखंड सरकार या वहां पर सत्ता में बैठी पार्टी ये कहती है कि ये लापरवाही का मामला नहीं है, तो ये सौ फीसदी लापरवाही का ही मामला हो सकता है। क्योंकि दरअसल अगर अमृता रावत सबसे पहले संक्रमित हुई या कोई और – अगर लापरवाही न बरती जाती, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाता – तो इस तरह से 22 लोग कोरोना संक्रमित नहीं हो सकते थे। ये सवाल भी किया जाना चाहिए कि आख़िर इस वक़्त में भी जान जोख़िम में डाल कर 35 से भी अधिक कर्मचारियों को काम पर क्यों बुलाया जा रहा था? ये भी कि क्या ये सभी लोग लक्षणहीन कोरोना संक्रमित थे और अगर थे, तो फिर पता कैसे चला कि इनके टेस्ट होने हैं? उम्मीद है कि राज्य सरकार ईमानदारी से इन सवालों का जवाब देगी, क्योंकि महामारी एक्ट लागू रहने के दौरान – आम जनता पर ऐसे मामलों में केस दर्ज हो जाता है।