गाँधी और स्वतंत्रता आंदोलन के विभन्न पक्षों पर लोकप्रिय किताबें लिखने वाले इतिहासकार रामचंद्र गुहा अब अहदाबाद विश्वविद्यालय से नहीं जुड़ेंगे। उन्होंने ट्विटर पर इसका ऐलान किय है। आरएसएस के छात्रसंगठन एबीवीपी ने उनकी नियुक्ति के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था। उन्हें देशद्रोही बताया था।
‘इंडिया ऑफ्टर गाँधी’ के लेखक गुहा ने यह नहीं बताया कि परिस्थितयाँ क्या हैं जिनसे वे यह क़दम उठाने को मजबूर हुए। 16 अक्टूबर को विश्वविद्यालय ने ऐलान किया था कि गुहा स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंसेज़ के गाँधी विंटर स्कूल मे बतौर डायरेक्टर ज्वाइन करेंगे। कुलपति पंकज चंद्रा ने उसी दिन ट्वीट करके कहा था कि “राम गुहा के युनिवर्सिटी की विकासगाथा का हिस्सा बनने पर हमें ख़ुशी है क्योंकि हमने भारतीय उच्च शिक्षा में नए मानदंड स्थापित किए हैं।”
रामचंद्र गुहा ने भी ट्विटर पर इसकी जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि वे अहमदाबाद को तब से पसंद करते हैं जब 40 साल पहले वहाँ गए थे। अब फिर वहाँ पढ़ाएँगे जहाँ महात्मा गाँधी ने अपना घर बनाया था और स्वतंत्रता आंदोलन को विकसित किया था। यह बात उन्हें बहुत उत्साहित कर रही है।
लेकिन सिर्फ़ 15 दिन बाद वे फ़ैसला बदलने को मजबूर हो गए।
दरअसल, आरएसएस के छात्रसंगठन एबीवीपी ने उनकी नियुक्ति का तीखा विरोध किया। 19 अक्टूबर को विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने उसने मांग रखी कि वह गुहा की नियुक्ति का प्रस्ताव रद्द करे। इंडियन एक्स्प्रेस में एबीवीपी के अहमदाबाद शहर के सचिव प्रवीण देसाई के हवाले से बताया गया कि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार बी.एम.शाह को इस सिलसिले में ज्ञापन दिया गया। अख़बार के मुताबिक देसाई ने कहा कि “हमें विश्विविद्यालय में बुद्धिजीवी चाहिए देशविरोधी नहीं, जिन्हें अर्बन नक्सल भी कजा जा सकता है। हमने गुहा की किताबों से देशद्रोही बातें निकालकर दिखाईं। हमने कहा कि आप जिसे बुला रहे हैं वो कम्युनिस्ट है। अगर उन्हें गुजरात बुलाया गया तो यहाँ भी जेएनयू की तरह देशद्रोही भावनाएँ फैलेंगी।”
एबीवीपी की ओर से कुलपति को संबोधित ज्ञापन मे कहा गया था कि ‘गुहा भारतीय संस्कृति के आलोचक हैं। उनका लेखन विभाजनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है। अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अलगाव बढ़ाता है, आतंकवादियों को छोड़ने और जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ से अलग होने की वकालत करता है।’
कहा जा रहा है कि एबीवीपी के रुख को देखते हुए रामचंद्र गुहा की सुरक्षा का सवाल भी खड़ा हो रहा था। विश्वविद्यालय प्रशासन पर जबरदस्त राजनीतिक दबाव था। गुहा को 1 फरवरी को विश्वविद्यालय ज्वाइन करना था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनसे बात की और उन्होंने ट्विटर पर ज्वाइन न करने का ऐलान कर दिया।
अहमदाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है। लेकिन इससे सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या विशवविद्यालयों में नियुक्ति के पहले अब आरएसएस या उसके आनुषंगिक संगठनो ंसे अनुमति लेनी होगी? क्या एबीवीपी बताएगी कि किसी बतौर शिक्षक नियुक्ति दी जाए और किसे नहीं! आख़िर विश्वविद्यालयों की स्वायत्ततता का क्या होगा?
क्या यह विश्वविद्यालयों को शिशुमंदिर बनाने की कोशिश नहीं है?