आज, 8 दिसम्बर को दिल्ली के रफी मार्ग स्थित मावलंकर हॉल में रेलवे के विभिन्न संगठनों ने भारतीय रेल के निजीकरण और मोदी सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ कन्वेंशन में हिस्सा लिया। कन्वेंशन का आयोजन ‘रेल बचाओ संघर्ष कमिटी’ द्वारा किया गया था जिसमें, इंडियन रेलवेज़ एम्प्लाइज फेडरेशन (IREF), एन.एफ.आई.आर, ए. आई.आर.एफ, एन. एम.ओ.पी.एस समेत ऐक्टू, सीटू, एटक, इंटक जैसे केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी हिस्सा लिया। देश की राजधानी दिल्ली में पहली बार अलग-अलग रेलवे फेडरेशनों और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक मंच पर आकर मोदी सरकार द्वारा रेलवे के निजीकरण के खिलाफ आवाज़ उठाई।
व्यापक होगा रेल कर्मचारियों का आंदोलन
आई.आर.ई.एफ. के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सर्वजीत सिंह ने अपनी बात रखते हुए बताया कि रेलवे की उत्पादन इकाइयों में संयुक्त संघर्ष कमिटियों द्वारा ज़बरदस्त आंदोलन चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रेलवे के अंदर काम कर रहे सभी संगठनों को एक साथ मोदी सरकार की मज़दूर-विरोधी, जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष करना होगा। ऐक्टू के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड एन. एन. बनर्जी ने उपस्थित कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार देश की जनता को बांटने और जनता की सम्पत्ति को बेचने का काम कर रही है। अगर रेलवे में निजीकरण नही रुका तो देश के भीतर कोई सरकारी-सार्वजनिक संस्थान नही बचेगा। सरकार की आर्थिक नीतियां और साम्प्रदायिकता का फैलता ज़हर – दोनों ही मज़दूरों के लिए हानिकारक हैं।
सरकारी कर्मचारियों में मोदी सरकार की निजीकरण की नीतियों के खिलाफ काफी रोष व्याप्त है। अपने वक्तव्य को रखते हुए कई नेताओं ने इस बात को माना कि 1974 में हुई रेलवे की हड़ताल को दोहराने की ज़रूरत है। सरकारी क्षेत्र की कंपनियों का तेजी से निजीकरण किया जा रहा है। श्रम कानूनों को ध्वस्त कर, मज़दूरों को गुलाम बनाने की योजनाएं भी सरकार तेज़ी से ला रही है। ज्ञात हो कि 8 जनवरी, 2020 को भारतीय मज़दूर संघ को छोड़कर सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों व कई फेडरेशनों ने देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।
कार्यक्रम का समापन रेल कर्मचारियों की अखिल भारतीय संयुक्त संघर्ष कमिटी बनाने के निर्णय के साथ हुआ।
सर्वजीत सिंह, संयोजक, रेल बचाओ संघर्ष कमिटी द्वारा जारी