ब्रजेश राजपूत
जाहिर है चर्चा राजनीति की हो रही थी वहीं बैठे किसी वरिष्ट पत्रकार ने कहा कि आप सब कुछ बांटने और किसानों के कर्जा माफी की बातें कर रहे हैं ये तरीका ठीक लगता है आपको, राहुल ने एक मिनट उनकी ओर देखा और कहा आपकी घडी देंगे क्या, सवाल पूछने वाले पत्रकार ने हैरान होकर घडी उतारी और राहुल की तरफ बढा दी, राहुल ने घडी उलटी पलटी और वापस करते हुये अच्छी घड़ी है रख लीजिये। टेबल पर बैठे लोग भी हैरान थे कि जबाव देने की जगह राहुल ये घड़ी की बात बीच में क्यों ले आये। सबको हैरान देख राहुल ने कहा ये यही हाल है आपका पैसा है किसानों का पैसा है आपको ही वापस कर रहे हैं।
कुछ और हल्के फुल्के सवाल जबाव होते रहे राहुल जो थोडी देर टेबल पर बैठकर छोटे सवालों के लंबे लंबे जबाव दे रहे थे जब उनको लगा कि बाकी
तकरीबन नब्बे पत्रकार और अकेले राहुल मामला दिलचस्प होता जा रहा था मगर राहुल के बेबाक बेफिक्री भरे अंदाज और हाजिरजबावी से हाल के लोग प्रभावित हो रहे थे। कुछ राहुल की फोटो खींच रहे थे तो कुछ वीडियो बना रहे थे। हांलाकि राहुल के सिक्योरिटी और स्टाफ के लोग मोबाइल से वीडियो बनाने को मना कर रहे थे मगर यदि किसी की बात मान गये तो फिर भला कैसे पत्रकार। तमाम मनाही के बावजूद छिपकर फोटो ओर रिकार्डिंग जारी थी। इसी बीच में राहुल ने उस सवाल का जबाव दे दिया जो सुबह अखबारों की सुर्खियां बना हुआ था। राहुल ने शिवराज सिंह के बेटे कार्तिकेय का नाम पनामा पेपर में होने का बयान झाबुआ की सभा में दिया था जिसके बाद से शिवराज उबले हुये थे मानहानि का मुकदमा करने उनके बेटे अदालत जाने वाले थे। ऐसे में राहुल ने कह दिया कि इतने सारे घोटाले बीजेपी राज्यों में होते हैं कि मैं कन्फयूज हो गया। छत्तीसगढ में कही जाने वाली बात मध्यप्रदेश में कह दी। बस फिर क्या था खबर तो मिल गयी थी। हम टीवी के पत्रकार जो एक ही टेबिल पर बिठाये गये थे असमंजस में थे कि इस खबर को कैसे ब्रेक करें करें या ना करें ये बातचीत औपचारिक है या अनौपचारिक। मगर खबर तो बड़ी थी मैंने एक लाइन टाइप कर दफ्तर के वाट्ससअप ग्रुप पर जैसे ही डाली, अगले ही क्षण धड़ाधड़ फोन आने लगे। फोन पर खबर बताने की फरमाइश शुरू हो गयी। उधर हम समझा रहे थे कि ये बेहद सुरक्षा वाला हाल है, बाहर जाने नहीं देगे ओर बाहर गये तो अंदर आना मुश्किल होगा मगर फोनो की फरमाइश को टालना मुश्किल था। ऐसे में फोन को कान से लगाकर सुरक्षाकर्मी से इमरजेंसी का बहाना कर दरवाजा खोल बाहर हुये और फोन पर इस बडी खबर को सबसे पहले ब्रेक किया। लौट कर आये तो देखा हमारे सारे साथियों के चेहरों पर तनाव था क्योंकि अब उनके चैनल से भी खबर को लेकर पूछ परख शु हो गयी थी।
बस फिर क्या था, इस जबाव के बाद राहुल के मीडिया मैनेजरों और नेताओं की जान मे जान आयी। मगर हम सब भी राहुल से ये जबाव सुन मुरीद हो गये। राहुल ओर पत्रकार महोदय दोनों के। कठिन सवाल पूछना पत्रकार का हक है और उसके बेहतर जबाव देना नेता का। इस बीच में उनको अपनी किताब ‘आफ द स्क्रीन’ भेंट कर चुका था। किताब का शीर्षक पढ़ राहुल ने कहा, आप टीवी पत्रकार बहुत मेहनत करते हो मैं जानता हूँ। आप मुझसे मिलेंगे तो कुछ और बातें बताऊँगा टीवी रिपोर्टिंग की मुश्किलों की। और ये कहकर राहुल ने अपना कठोर कसरती हाथ मेरे कंधे पर रख दिया।
वरिष्ठ टी.वी.पत्रकार ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज के मध्यप्रदेश ब्यूरो चीफ़ हैं। यह टिप्पणी उनकी फ़ेसबुक दीवार से साभार।