कृषि क़ानून: 14 अक्टूबर को देश भर में किसानों का प्रदर्शन! रेल रोकेंगे, बीजेपी MP-MLA का घर घेरेंगे!

एआईकेएससीसी ने अपने बयान में कहा है कि प्रधानमंत्री ने विरोधियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे बिचैलियों के पक्षधर हैं, जबकि उनके द्वारा पारित कानून कम से कम 5 किस्म में बिचैलियों को स्थापित करते हैं। कृषि सेवा कानून की धारा 2जी ठेकों में ‘तीसरे पक्ष’ की बात करती है; धारा 2जी, डी, व 3(1)(बी) सेवा प्रदान करने की ‘कानूनी जिम्मेदारी’ या तो ‘स्पांसर को या कृषि सेवा प्रदाता’ को देती है; धारा 4(1), (3) व (4) फसल की गुणवत्ता के मूल्यांकन के लिए ‘तीसरे पक्ष के प्रशिक्षित पारखी’ की बात करता है; धारा 10 में एक ‘एग्रीगेटर’ का प्रावधान है, जो ठेके के लिए जमीन एकत्र करेगा और कम्पनी के लिए फसल; तथा मंडी बाईपास कानून की धा 5(1) कहती है एफपीओ निजी मंडियों की स्थापना, संचालन व ऑनलाइन सेवाएं देगा। ये सभी बिचैलिये के दर्जे हैं और ग्रामीण दलाल स्पांसर कम्पनी और किसान के बीच इस भूमिका में रहेंगे।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) का आरएसएस-भाजपा सरकारा द्वारा पारित तीन कानूनों के खिलाफ अभियान तेज हो रहा है। देश भर के किसान 14 अक्टूबर को विरोध प्रदर्शन करेंगे। इस आंदोलन का स्वरूप विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होगा। कहीं सरकारी कार्यालयों पर प्रदर्शन होंगे, तो कहीं रेल रोकी जाएंगी, कहीं रास्ते, कहीं गांवों में प्रदर्शन होंगे, तो कहीं भाजपा सांसदों और विधायकों के निवास पर प्रदर्शन आयोजित किये जाएंगे।

इस बीच पंजाब में हजारों किसानों ने सम्पूर्ण रेल लाइनों को जाम कर दिया है और बड़े कॉरपोरेट व भाजपा नेताओं के खिलाफ मोर्चाबंदी चल रही है तथा हरियाणा व अन्य राज्यों में काले झंडे दिखाए जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर पर्चे बांटकर हजारों गावों में अभियान जारी हैं, जिसमें प्रधानमंत्री द्वारा अपने कानूनों तथा विदेशी कम्पनियों तथा बड़े कारपोरेट के पक्ष में गिनाए जा रहे झूठ का खुलासा किया जा रहा है।

एआईकेएससीसी ने अपने बयान में कहा है कि प्रधानमंत्री ने विरोधियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे बिचैलियों के पक्षधर हैं, जबकि उनके द्वारा पारित कानून कम से कम 5 किस्म में बिचैलियों को स्थापित करते हैं। कृषि सेवा कानून की धारा 2जी ठेकों में ‘तीसरे पक्ष’ की बात करती है; धारा 2जी, डी, व 3(1)(बी) सेवा प्रदान करने की ‘कानूनी जिम्मेदारी’ या तो ‘स्पांसर को या कृषि सेवा प्रदाता’ को देती है; धारा 4(1), (3) व (4) फसल की गुणवत्ता के मूल्यांकन के लिए ‘तीसरे पक्ष के प्रशिक्षित पारखी’ की बात करता है; धारा 10 में एक ‘एग्रीगेटर’ का प्रावधान है, जो ठेके के लिए जमीन एकत्र करेगा और कम्पनी के लिए फसल; तथा मंडी बाईपास कानून की धा 5(1) कहती है एफपीओ निजी मंडियों की स्थापना, संचालन व ऑनलाइन सेवाएं देगा। ये सभी बिचैलिये के दर्जे हैं और ग्रामीण दलाल स्पांसर कम्पनी और किसान के बीच इस भूमिका में रहेंगे।

प्रधानमंत्री के अनुसार एमएसपी जारी रहेगी और कम्पनियों बेहतर दाम देंगी। पर कृषि सेवा कानून की धारा 5 कहती है कि किसान के लिए ‘सबसे अच्छा मूल्य’ मंडी या इलेक्ट्रानिक व्यापार में ‘मौजूदा दाम’ से सम्बद्ध रहेंगे। वह एमएसपी का जिक्र नहीं करता।

प्रधानमंत्री के अनुसार किसान से जमीन नहीं छिनेगी, पर धारा 14(7) कहती है कि ‘बकाया की वसूली भूराजस्व के रूप में होगी’।

एआईकेएससीसी ने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि खाद्यान्न सुरक्षा में गरीबों को कोई क्षति नहीं होगी पर आवश्यक वस्तु संशोधन कानून कहता है कि अनाज का नियामन तभी किया जाएगा, जब पिछले साल की तुलना में कीमतें 50 फीसदी से ज्यादा न हो जाएं और फल, सब्जी के दाम दोगुना न हो जाएं। यह भी लिखा है कि राशन के आदेश ‘कुछ समय के लिए अमल’ में हैं।

प्रधानमंत्री कहते हैं कि सरकारी कर नहीं होंगे, पर मंडी बाईपास कानून की धारा 5(2) कहती है निजी मालिक अपना शुल्क लगाएंगे।

अभियान में अफसरों व भाजपा नेताओं को घेरकर किसान सरकार द्वारा विदेशी कम्पनी व बड़े कारपोरेट की सेवा में पारित कानूनों तथा खाद्यान्न सुरक्षा एवं किसानों की स्वतंत्रता पर प्रश्न पूछेंगे।

छत्तीसगढ़ में किसान संगठन मनाएंगे “न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिकार दिवस”

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के आह्वान पर 14 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के किसान संगठन सी-2 लागत आधारित समर्थन मूल्य की मांग पर आंदोलन करेंगे। और “न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिकार दिवस” मनाएंगे। छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने बताया कि छत्तीसगढ़ में भी किसानों और आदिवासियों के बीच काम करने वाले पचीसों संगठन आंदोलन करेंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना घोषित करने का कानून बनाने, इस मूल्य पर अनाज खरीदी करने के लिए केंद्र सरकार के बाध्य होने का कानून बनाने और किसी भी व्यापारी या कंपनी और इनके बिचौलियों द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल की खरीदी को कानूनन अपराध घोषित करने और जेल की सजा का प्रावधान करने की मांग करेंगे।

उन्होंने बताया कि आंदोलन करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-आदिवासी मंच, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति और भू-अधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं।

इन संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने कहा कि यह आंदोलन संसद में भाजपा सरकार द्वारा अलोकतांत्रिक तरीके से पारित कराए गए तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ चलाये जा रहे दो माह लंबे देशव्यापी अभियान की ही एक कड़ी है, जो 26-27 नवम्बर को दिल्ली में आयोजित किसान रैली में अपने उत्कर्ष पर पहुंचेगा। उन्होंने मोदी सरकार के इस दावे को महज लफ्फाजी और जुमलेबाजी करार दिया कि वह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसानों को समर्थन मूल्य दे रही है। उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि मोदी सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य सी-2 लागत मूल्य से भी कम है, जबकि स्वामीनाथन आयोग ने फसलों की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की सिफारिश की है।

किसान नेताओं ने कहा कि छत्तीसगढ़ में धान प्रमुख फसल है, जिसका अनुमानित उत्पादन लागत 2100 रूपये प्रति क्विंटल बैठता है और सी-2 फार्मूले के अनुसार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3150 रूपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जबकि मोदी सरकार ने समर्थन मूल्य 1815 रूपये ही घोषित किया है। इस प्रकार, धान उत्पादक किसानों को वास्तविक समर्थन मूल्य से 1430 रूपये और 45% कम दिया जा रहा है।

इसी प्रकार, पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष खरीफ फसलों की कीमतों में मात्र 2% से 6% के बीच ही वृद्धि की गई है, जबकि इसी अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई में 10% और डीजल की कीमतों में 15% की वृद्धि हुई है और किसानों को खाद, बीज व दवाई आदि कालाबाज़ारी में दुगुनी कीमत पर खरीदना पड़ा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का यह रवैया सरासर धोखाधड़ीपूर्ण और किसानों को बर्बाद करने वाला है।

किसान नेताओं ने अपने साझा बयान में आरोप लगाया है कि इन किसान विरोधी कानूनों का असली मकसद समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खत्म करना ही है, जो हमारे देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और पोषण सुरक्षा का आधार है। यह किसानों और आम उपभोक्ताओं दोनों के हितों के खिलाफ हैं।

किसान नेताओं ने इन केंद्रीय कानूनों के किसान समुदाय पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को निष्प्रभावी करने के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार द्वारा की जाने वाली पहलकदमी का भी स्वागत किया है और कहा है कि चूंकि कृषि संविधान में राज्य का विषय है, इसलिए राज्य को अपने किसानों के हितों की रक्षा करने का पूरा अधिकार है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में माकपा सहित सभी वामपंथी दलों और जन संगठनों ने इस किसान संगठनों के इस साझा आह्वान को अपना समर्थन देने की घोषणा की है।

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