ऑनलाइन शिक्षा वंचितों के ख़िलाफ़ षड़यंत्र, निजी कंपनियों का दबाव- RTE फोरम

राइट टू एजुकेशन फोरम (RTE) का कहना है कि डिजिटल शिक्षा देने के लिए कुछ निजी कंपनियों के द्वारा सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन ऑनलाइन शिक्षा नियमित स्कूली पढ़ाई का विकल्प नहीं हो सकती है। ऑनलाइन शिक्षा सिर्फ लोगों को एक छलावे में रखने और मूल समस्या से ध्यान हटाने का सरकारी प्रयास है। आरटीई फोरम ने कहा कि सरकार समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों के उलट शिक्षा को बाजार के हवाले करने की तैयारी कर रही है।

राइट टू एजुकेशन फोरम द्वारा शिक्षा-विमर्श की कड़ी में “कोविड -19 के दरम्यान राज्यों के अनुभव: विद्यालयों का पुनरारंभ, शिक्षा-शुल्क की पेचीदगियाँ तथा डिजिटल पढ़ाई” विषय पर आयोजित वेबिनार में दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि विद्यालयों को इस साल नहीं खोलना चाहिए। प्रत्येक बच्चे को आगे की कक्षा में स्वतः प्रोन्नति दे देनी चाहिए। अधिकांश अभिभावकों की भी यही राय है। प्रत्येक अभिभावक यही चाहता है कि पहले बच्चे की सुरक्षा हो, उसके बाद शिक्षा की बात हो। उन्होंने कहा, “निजी विद्यालयों के संचालक विद्यालय को खोलने हेतु दबाव बना रहे हैं। लेकिन 80 प्रतिशत अभिभावक वर्तमान स्थिति में विदयालय को खोलने के पक्ष में नही है।

अशोक अग्रवाल ने कहा कि ऑनलाइन पढ़ाई की प्रक्रिया जटिल है जिसके साथ तालमेल बैठाना बच्चे, अभिभावक तथा शिक्षक सभी के लिए एक कठिन कार्य है। पाठ्यक्रम में बदलाव करके डिजिटल शिक्षा देने के लिए कुछ लोगों द्वारा सुझाव दिया जा रहा है जो कि शिक्षा के व्यवसायीकरण का ही परिष्कृत रूप है। शिक्षा का एक नया बाजार बनाने की दिशा में प्रयास हो रहे हैं जिसके परिणाम बहुसंख्यक आबादी को भुगतने होंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ऑनलाइन शिक्षा सिर्फ लोगों को एक छलावे में रखने और मूल समस्या से ध्यान हटाने का सरकारी प्रयास है और यह नियमित विद्यालयी शिक्षा का विकल्प कतई नहीं हो सकता है।“

उन्होंने आगे कहा कि जहां तक विद्यालय शुल्क की बात है, तो विगत कई दशकों से ये समस्या हमारे सामने है, जब से शिक्षा में निजी विद्यालयों का दखल बढ़ा है। फिलहाल कोरोना संकट मेँ अभिभावकों के काम–धंधे भी तो बन्द हैं। ऐसे में, वे विद्यालय शुल्क कैसे जमा कर सकेंगे। अभी तक 80 प्रतिशत अभिभावकों ने शुल्क नहीं जमा किए हैं। हालत ये है कि 40 प्रतिशत अभिभावकों ने ऑनलाइन शिक्षा से अपने बच्चों को अलग कर लिया क्योंकि उनके पास कमाई की कोई जरिया नही बचा है।

85% छोटे निजी विद्यालयों ने अपने शिक्षकों को हटा दिया है। 15% बड़े निजी स्कूलों ने इतनी कमाई की है कि अपने शिक्षको को साल भर पैसा दे ही सकते हैं। उन्होने कहा कि अगले लॉक डाउन अवधि मे स्कूलों की फीस वसूली पर रोक और शिक्षकों का वेतन मिलने की गारंटी करने के लिए सरकार को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। सरकारी विद्यालयों की मजबूती पर ध्यान देने की जरूरत है।

आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय ने कहा कि कोविड महामारी ने देश को बहुत नुकसान पहुचाया है। विशेषकर, बच्चे इससे अधिक प्रभावित हुए हैं। लेकिन सरकार की नजर इन बच्चों की ओर नहीं है। डिजिटल शिक्षा देने के लिए कुछ निजी कंपनियों के द्वारा सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है।

अम्बरीष राय ने कहा, “डिजिटल शिक्षा की वजह से 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे शिक्षा से वंचित रह जायेंगे। क्योंकि न तो उनके पास डिजिटल व्यवस्था है और न उनके अभिभावकों के पास इसके पर्याप्त संसाधन और पैसे हैं। अब सवाल ये है कि इन बच्चों की पढ़ाई कैसे सुनिश्चित हो। सरकार ने तो लोगों को अपनी हालात पर छोड़ दिया है। राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में लग गये है। वंचित समाज के बारे में सोचने का वक्त उनके पास नहीं है।’’

अपने संबोधन में आरटीई फोरम के पश्चिम बंगाल इकाई के संयोजक प्रवीर बसु ने कहा, “अभी तक 7 लाख प्रवासी मजदूर राज्य में वापस आ चुके हैं तथा लगभग 5 लाख और लोगों की वापसी की सम्भावना है। कोरोना के साथ- साथ राज्य चक्रवात का कहर भी झेल रहा है। 14 हजार विद्यालयों को क्वारंटीन-केंद में तब्दील किया गया है। 30 जून तक सभी शिक्षण संस्थानों को बंद रखा गया है। ऐसे में, बच्चों एवं उनके अभिभावकों के जेहन में भविष्य को लेकर घोर असमंजस है। उन्होंने कहा कि डिजिटल लर्निंग न केवल संसाधन रहित एक बड़ी आबादी को शिक्षा की मुख्य धारा से दूर हाशिये पर डाल देगा, बल्कि स्क्रीन पर अधिक वक़्त गुजरना बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास और सामान्य सामाजिक गतिविधियों के साथ उनके जुड़ाव पर भी बुरा प्रभाव डालेगा।“

आरटीई फोरम, ओड़ीसा के संयोजक अनिल प्रधान ने कहा, “ओड़ीसा मेँ मुख्यमंत्री को निजी विद्यालयों द्वारा फीस वसूली पर रोक लगाने की अपील करनी पड़ी। अभिभावक संघ ने इस संदर्भ मेँ वहाँ पीआईएल दाखिल कर सरकार पर इसके लिए दबाव बनाया जिससे ये मुमकिन हो सका। उन्होने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा तो तमाम आदिवासी इलाकों के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर देगी। यहाँ पर शिक्षकों ने बच्चों को नए सृजनशील तरीकों से ऑफलाइन पढ़ाने और शैक्षिक गतिविधियों से जोड़े रहने के प्रयोग किए हैं जो सराहनीय हैं।

सभी ने एकमत से कहा कि सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए सरकार को उन क्षेत्रों मेँ बजट बढ़ाने की जरूरत है।

वेबिनार का संचालन डॉ गीता वर्मा, बालिका शिक्षा कार्यक्रम अधिकारी, केयर इंडिया ने किया जबकि राईट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय ने सबका स्वागत करते हुए उनके सामने के विषय की प्रासंगिकता का उल्लेख किया। वेबिनार में 20 राज्यों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की।


आरटीई फोरम के मीडिया समन्वयक, मित्ररंजन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित 

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