मोदी जी, आपने प्रधानमंत्री होने का नैतिक हक़ खो दिया है, हट जाइए- अरुंधति रॉय

मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय की इस ज़रूरी अपील पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तत्काल अमल करना चाहिए। वे कहती हैं- "यह संकट आपका बनाया हुआ है. आप इसे नहीं हल कर सकते. आप केवल इसे बदतर बना सकते हैं. यह वायरस भय, घृणा और अज्ञानता के वातावरण में फलता-फूलता है. यह तब और समृद्धशाली हो जाता है, जब आप इसके बारे में बोलने वालों पर शिकंजा कस देते हैं. यह तब और मजबूत होता है, जब मीडिया को इस हद तक दबा दिया जाता है कि हकीकत की रिपोर्टिंग केवल अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हो पाती है. यह वायरस तब ताकतवर हो जाता है, जब आपके पास एक ऐसा प्रधानमंत्री हो, जिसने अपने पूरे कार्यकाल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस न की हो, जो सवालों का जवाब देने में अक्षम हो, यहां तक कि इस सुन्न कर देने वाले डरावने वक्त में भी." नीचे पढ़िये पूरी अपील--

हमें एक सरकार की जरूरत है. बहुत ही ज्यादा जरूरत है, क्योंकि हमारे पास कोई सरकार नहीं है. हमारा दम घुट रहा है (We are running out of air). हम मर रहे हैं. हमारे पास यह जानने की कोई व्यवस्था नहीं है कि हमें जो मदद मिल भी रही है, यहां तक कि जो हमारे हाथ में है, हम उसका क्या करें?

 

क्या किया जा सकता है? यहीं और अभी?

हम 2024 तक का इंतजार नहीं कर सकते. हम जैसे लोगों ने कभी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब हम खुद किसी चीज के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करेंगे. व्यक्तिगत रूप से, मैं ऐसा करने के बजाय जेल जाना पसंद करती. लेकिन आज, जब हम अपने घरों में, सड़कों पर, अस्पतालों में, कारों की पार्किंग में, बड़े शहरों, छोटे कस्बों, गांवों, जंगलों और खेतों में मर रहे हैं, तब मैं, एक सामान्य नागरिक, ऐसा करने से उपजी शर्मिंदगी को दरकिनार करते हुए अपने लाखों सह नागरिकों के साथ मिलकर यह चह रही हूं कि महोदय! कृपया अब आप अपना पद छोड़ दीजिए. इस्तीफा दे दीजिए महोदय, मेहरबानी करके अब आप हट जाइये. कम से कम अभी के लिए. मैं आपसे विनती करती हूं, अब आप चले जाइए.

यह संकट आपका बनाया हुआ है. आप इसे नहीं हल कर सकते. आप केवल इसे बदतर बना सकते हैं. यह वायरस भय, घृणा और अज्ञानता के वातावरण में फलता-फूलता है. यह तब और समृद्धशाली हो जाता है, जब आप इसके बारे में बोलने वालों पर शिकंजा कस देते हैं. यह तब और मजबूत होता है, जब मीडिया को इस हद तक दबा दिया जाता है कि हकीकत की रिपोर्टिंग केवल अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हो पाती है. यह वायरस तब ताकतवर हो जाता है, जब आपके पास एक ऐसा प्रधानमंत्री हो, जिसने अपने पूरे कार्यकाल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस न की हो, जो सवालों का जवाब देने में अक्षम हो, यहां तक कि इस सुन्न कर देने वाले डरावने वक्त में भी.

अगर आप अपना पद नहीं छोड़ते हैं, तो बेवजह हजारों-हजार लोग मारे जाएंगे. तो, अब चले जाओ. झोला उठा कर. अपनी गरिमा को बरकरार रखते हुए. आगे आप ध्यान करते और एकांत में रहते हुए एक शानदार जीवन जी सकते हैं. आपने खुद बताया है कि आप क्या चाहते हैं? अगर आप इस नरसंहार को ऐसे ही जारी रहने देते हैं तो यह संभव नहीं हो पाएगा.

आपकी पार्टी में कई ऐसे लोग हैं, जो फिलहाल के लिए आप की जगह ले सकते हैं. वे लोग जो इस संकट के क्षण में अपने राजनीतिक विरोधियों को साथ लाने की जरूरत को जानते हैं. आपकी पार्टी से, जो भी व्यक्ति हो – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मंजूरी से – सरकार और आपदा प्रबंधन समिति का नेतृत्व कर सकता है.

राज्यों के मुख्यमंत्री कुछ प्रतिनिधियों को चुन सकते हैं, ताकि सभी दल अपना प्रतिनिधित्व महसूस कर पायें. राष्ट्रीय दल होने के नाते कांग्रेस भी इस कमेटी में हो सकती है. और इसके अलावा वैज्ञानिक, जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, डॉक्टर, अनुभवी नौकरशाह भी शामिल किए जाएं. आप इसे नहीं समझ सकते हैं, लेकिन इसे ही लोकतंत्र के रूप में पहचाना जाता है. आप विपक्ष-मुक्त लोकतंत्र नहीं पा सकते हैं. उसे निरंकुशता के रूप में जाना जाता है. इस वायरस को निरंकुशता पसंद है.

अगर आप अभी ऐसा नहीं करते हैं, तो जैसे यह प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है, इसे एक अंतरराष्ट्रीय समस्या, पूरी दुनिया के लिए खतरे के तौर पर देखा जाने लगा है, जो कि यह निश्चित तौर है. आपकी अक्षमता ने अन्य देशों को हमारे मामलों में घुसने और हस्तक्षेप करने, और मामले को अपने हाथ में लेने के लिए वैध कारण मुहैया कराया है. यह हमारी कड़े संघर्षों से हासिल संप्रभुता को कमजोर कर देगा. हम फिर से उपनिवेश बन जाएंगे. ऐसा होने की गंभीर आशंका है. इसकी अनदेखी न करें.

इसलिए मेहरबानी करके चले जाइए. यही एक जिम्मेदारी भरा काम है, जो आप कर सकते हैं. आपने हमारा प्रधानमंत्री होने का नैतिक अधिकार खो दिया है.

 

(अरुंधति रॉय की यह अपील मूल रूप से अंग्रेजी में स्क्रॉल डॉट इन पर प्रकाशित हुई है. इसका हिंदी अनुवाद पत्रकार अवनीश राय ने किया है. संसदनामा से साभार प्रकाशित)

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