गिरीश मालवीय
यह आरटीआई मुंबई के एस रॉय ने लगाई थी। जवाब में चुनाव आयोग ने कहा है कि उसे बीईएल से 10 लाख 5 हजार 662 EVM प्राप्त हुईं। वहीं बीईएल का कहना है कि उसने 19 लाख 69 हजार 932 मशीनों की आपूर्ति की। दोनों के आंकड़ों में 9 लाख 64 हजार 270 का अंतर है।
ठीक यही स्थिति ECIL के साथ भी है जिसने 1989 से 1990 और 2016 से 2017 के बीच 19 लाख 44 हजार 593 ईवीएम की आपूर्ति की। लेकिन चुनाव आयोग ने कहा कि उन्हें केवल 10 लाख 14 हजार 644 मशीनें ही प्राप्त हुईं। यहां भी 9 लाख 29 हजार 949 का अंतर मिल रहा है।
यह बात भी बार-बार उठाई जाती हैं कि आखिर चुनाव आयोग जो मशीनें राज्यों में भेजता है, क्या उन्हीं मशीनों से चुनाव होते हैं। खुद चुनाव आयोग को इस बात को लेकर संदेह है इसीलिए वह आने वाले चुनाव में क्यू आर कोड से एक-एक मशीन की मॉनीटरिंग करने की योजना बना रहा है। बताया जा रहा है कि इस बार जो ईवीएम मशीनें निर्वाचन प्रक्रिया के लिए भेजी जा ही हैं, उनकी मॉनीटरिंग मोबाइल एप के माध्यम से की जा रही है। पहले यह काम कंप्यूटर के माध्यम से होता था। मोबाइल एप पर क्यू आर कोड के माध्यम से मशीन का पूरा ब्योरा उपलब्ध रहेगा। इससे यह भी आसानी होगी कि कौन सी मशीन किस नंबर की है।
आपको याद होगा कि जब मध्यप्रदेश के भिंड जिले की अटेर विधानसभा सीट पर उपचुनाव थे तो मुख्य चुनाव अधिकारी सलीना सिंह उपचुनाव की तैयारियों का जायज़ा लेने पहुंची थीं. वहाँ सलीना सिंह ने जब डमी ईवीएम के दो अलग-अलग बटन दबाए तो पेपर ट्रेल मशीन से कमल के निशान का प्रिंट निकला था। तब भी यह प्रश्न खड़ा हुआ था कि आखिरकार इस तरह की गड़बड़ करने वाली मशीन आ कहाँ से गई। चुनाव आयोग ने कोई स्पष्ट जवाब न देते हुए वीवीपीएटी पर भांडा फोड़ा था।
लेकिन ऐसी सिर्फ एक ही घटना नही घटी, अनेक जगहों पर यह पाया गया कि ईवीएम से एक पार्टी विशेष को ही वोट जाते हैं। महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में पार्षद चुनाव के दौरान लोणार के सुल्तानपुर गांव में तो स्वयं कलेक्टर ने माना कि ऐसी गड़बड़ी उसके देखने मे आयी हैं। यह घटना भी अनिल गलगली द्वारा लगाई गयीं एक आरटीआई के जवाब में लिखित रूप में दर्ज की गई। कलेक्टर ने बताया कि निर्दलीय उम्मीदवार को वोट करने पर ईवीएम में भाजपा के आगे की एलईडी लाइट जल रही थी। इसकी जानकारी निर्वाचीत अधिकारी ने जिला अधिकारी को दी थी।
(इंदौर निवासी गिरीश मालवीय आर्थिक विषयों के जानकार हैं।)