कर्नाटक में बीजेपी को बहुमत न मिलने के बावजूद उसके नंबर एक पार्टी बनने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी की मेहनत, उनकी ताबड़तोड़ रैलियों को दिया जा रहा है। लिहाज़ा उनकी लहर क़ायम है। लेकिन मोदी लहर को लेकर बज रहे ढोल-ताशे से अलग कुछ तथ्य भी टिमटिमा रहे हैं जो बताते हैं कि सारी कोशिशों के बावजूद 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में कर्नाटक में बीजेपी ने क़रीब 7 फ़ीसदी वोट गँवाए हैं। तब उसे 43.4 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि इस बार महज़ 36.2 फ़ीसदी। विधानसभा में भी कांग्रेस को उससे लगभग दो फ़ीसदी वोट ज़्यादा मिले हैं। पढ़िए, दो वरिष्ठ पत्रकारों की टिप्पणी-
काँग्रेस को 38% वोट मिले और बीजेपी को 36.2% वोट मिले। लोकसभा के पहले जो कर्नाटक विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा भाजपा से अलग थे और कांग्रेस जीत गई थी। इस बार येदियुरप्पा के साथ होने के बावजूद बीजेपी की मिट्टी पलीत हो गई और वह लोकसभा का अपना प्रदर्शन दोहरा नहीं पाई।
अब भाजपा नेता अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेशर्मी पर उतारू हैं। अमित शाह कह रहे हैं कि किसी भी हाल में सरकार बनाएंगे। नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि विकास को वोट मिला है, किसी भी हाल में जनादेश की हत्या नहीं होने देंगे। मतलब हर हाल में सरकार बनाएंगे।
अब सारा दारोमदार काँग्रेस और जेडीएस पर है। भाजपा हर बेशर्मी पर उतारू है और उसके चुनाव बाद गठजोड़ को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। मतलब वह कांग्रेस या जेडीएस के विधायकों को खरीदकर या धमकाकर अपने पक्ष में तोड़ेगी।
( वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र पीएस की फ़ेसबुक पोस्ट का अंश)
याद कीजिए गोवा, मणिपुर में भी यही हुआ था और गुजरात में तो बाल-बाल बचे थे। पंजाब, दिल्ली और बिहार की करारी हार की याद भी कर लीजिए। इसके बाद भी यदि लोगों को लगता है कि मोदी का जादू चल रहा है तो उन्हें उनकी भक्ति मुबारक हो। कोई जादू नहीं है। एक राजनीतिक शून्य है और बँटा हुआ विपक्ष है जिसका लाभ उनके हिस्से में जा रहा है। न कोई चंद्रगुप्त है और न ही चाणक्य। जिसके लिए चुने गए थे, वह तो कर नहीं पा रहे हैं, हर मोर्चे पर नाक़ाम हैं, मगर साढ़े चार हज़ार करोड़ के प्रचार खर्च और गोदी मीडिया की मेहरबानी के करिश्माई बने हुए हैं।
देश आँखें खोलो, वर्ना गड्ढे में जाना तय है।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की फ़ेसबुक पोस्ट से साभार।