एक ‘अराजनीतिक’ इंटरव्‍यू में मोदी ने अपने सबसे बड़े राजनीतिक झूठ को खुद बेनकाब कर दिया!

जब नरेन्द्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में संसदीय दल के नेता चुने गए और प्रधानमंत्री बनकर पहली बार संसद भवन पहुंचे तो उन्होंने संसद भवन के गेट पर माथा टेका था। सेवकजी ने आखों में आंसू लाकर पूरी दुनिया को बताया था कि उन्होंने लोकतंत्र के इस मंदिर में आजतक कदम नहीं रखा था। पांच साल बाद अक्षय कुमार को दिए इंटरव्‍यू में अबउन्‍होंने अपना झूठ खुद कुबूल कर लिया है।

संसद के सेंट्रल हॉल में बीजेपी संसदीय दल की पहली बैठक में उन्‍होंने अपने पहले भाषण में 2014 में कहा था कि वह जिंदगी में पहली बार संसद भवन में तब प्रवेश कर रहे हैं जब एमपी और प्रधानमंत्री चुने गए हैं। उस वक्‍त हम सबने सेवकजी की लोकतंत्र में गहरी आस्था के लिेए दुहाई दी थी, उनकी प्रतिबद्धता पर तालियां बजाई थीं। अखबारों और टेलीविजन चैनलों ने सेवकजी के आप्त वचन को उसी रूप में छापकर, दिखाया भी था कि दिल्ली की राजनीति में इतना लंबा वक्त गुजारने के बावजूद उस व्यक्ति ने कभी संसद भवन में कदम नहीं रखा था। उनके उस कथन को हमारे देश के सभी चारण पत्रकारों ने मोदी जी के इस कर्म को रेखांकित करते हुए समझाया था कि कैसे वह इतिहास में दर्ज हो गया है।

उस समय भी हालांकि कई ऐसे पत्रकार थे जो बातचीत में बता रहे थे कि मोदी जी झूठ बोल रहे हैं क्योंकि उन्होंने खुद कई बार उनको संसद भवन में देखा है, लेकिन वही बात वह पत्रकार खुद न लिखने के लिए अभिशप्त था। उनका संपादक, उनका ब्यूरो चीफ या फिर उनका मालिक मोदी के बारे में कोई ऐसी बात नहीं लिखने की इजाजत दे रहा था जो उनकी गढ़ी जा रही ’स्टेट्समैन’ की छवि को नुकसान पहुंचाए! सबने मान लिया कि नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी ने सचमुच संसद भवन में कदम नहीं रखा था।

आज कनाडाई नागरिक व रील अभिनेता अक्षय कुमार के साथ अगंभीर व अराजनीतिक साक्षात्कार में प्रधानसेवक जी ने अपने बनाए झूठ का खंडन करके सत्य को सबके सामने रख दिया। रील अभिनेता अक्षय कुमार के एक प्रश्न कि आपका विपक्षी पार्टी में कोई दोस्त है या नहीं, (वीडियो 19.46 मिनट से), तो इसके जवाब में रीयल अभिनेता नरेन्द्र भाई मोदी कहते हैं- बहुत अच्छे दोस्त हैं, हमलोग साल में एक-आध बार आज भी खाना खाते हैं, खैर वह फॉर्मल होता है…बहुत पहले की बात है तब मैं मुख्यमंत्री भी नहीं था… शायद किसी काम से मैं पार्लियामेंट गया था। गुलाम नबी आजाद और मैं बड़े दोस्ताना अंदाज में गप्पें मार रहे थे और हम बाहर निकल रहे थे तो मीडिया वालों ने पूछा कि भाई तुम तो आरएसएस के हो, फिर गुलाम नबी से तुम्हारी दोस्ती कैसे है? फिर गुलाम नबी ने अच्छा जवाब दिया, बहुत अच्छा जवाब दिया! हम दोनों खड़े थे। उन्होंने कहा कि बाहर जो आपलोग सोचते हो, ऐसा नहीं है… शायद एक फैमिली के रूप में हम जुड़े हुए हैं… सभी दलों के लोग, शायद आप बाहर कल्पना नहीं कर सकते।

अब जिन लोगों ने सेवकजी को सत्य की प्रतिमूर्ति कहा था कि वह पहली बार संसद भवन में पहुंचकर भावुक हो गए थे, लोकतंत्र के मंदिर में सर नवा रहे थे, क्या वे और प्रधानसेवक झूठ व फरेब के लिए जनता से माफी मांगेंगे?


लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं

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