एक हते तीस मार खाँ, और एक भए हैं जूठन खाँ।
अमिताभ पाण्डेय
पहले समझ लें कि ये सेटेलाइट भेदक मिसाइल क्या बला है। जैसे ही भारत अपना पहला SLV छोड़ने में सफल हुआ, यह तय हो गया की अब हम अंतरद्विपीय मिसाइल भी बना कर अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इन मिसालों को पारम्परिक और आणविक बमों से लैस कर शत्रु देश के किसी भी ठिकाने या चलायमान हथियारों को भी ध्वस्त किया जा सकता है। ये बेलेस्टिक मिसाइल अपने ख़ुद के कंप्यूटर सिस्टम से लैस होते हैं और इन कैमरा और अन्य सेन्सर लगे होने से अपने निशाने का स्वतः पीछा करने में सक्षम होते हैं।
सेटेलाइट भेदक मिसाइल का निर्माण रूस अमेरिका और चीन 70 के दशक में ही कर चुके थे लेकिन स्पेस वैज्ञानिकों ने इस काम को मूर्खतापूर्ण क़रार दिया क्योंकि अगर आप किसी उपग्रह को मिसाइल से मार कर तोड़ देते हैं तो उसका मलबा बिखर कर उस पूरी कक्षा को ख़तरनाक किरचों से भर देगा। ये किरचें उस कक्षा में मौजूद आपकी और आपके शत्रु मित्रों सबकी दूसरी सेटेलाइट को छलनी कर देंगी। इसी लिए UNO और सभी दूसरी स्पेस एजेंसीआन ने तय किया अंतरिक्ष को सैन्य गतिविधियों से मुक्त रखा जाए। आणविक हथियारों के इस्तेमाल पर तो पूरी तौर पर पाबंदी लगाई गयी है। चीन ने जब कुछ बरस पहले एक ऐसा ही परीक्षण किया था दुनिया भर के सारे स्पेस वैज्ञानिकों ने इसकी निंदा की थी।
भारत ने दुश्मन के सेटेलाइट को गिराने की तकनीक 2012 में ही हासिल कर ली थी। UPA सरकार ने ठीक ही निर्णय ले कर परीक्षण की इजाज़त नहीं दी थी। इसकी दो वजह थी, एक तो आजकल आप कम्प्यूटर सिम्युलेशन से बिना भौतिक रूप से प्रयोग करे मिसाइलों का टेस्ट कर सकते हैं, दूसरे अपनी ही मिसाइल से अपनी ही सेटेलाइट को तोड़ कर आप अपने ही दूसरे उपग्रहों को ख़तरा पैदा कर रहे हैं। यह तय कर पाना कि कौन सेटेलाइट सामरिक है और कौन सी सिविल, बता पाना लगभग नामुमकिन है क्योंकि एक ही सेटेलाइट के दोनो इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
ऐसे में हमारे प्रधान का चुनाव की पूर्व पक्ष में यह दुस्साहसी दाँव दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे न सिर्फ़ विश्व बिरादरी में एक समझदार राष्ट्र के रूप में हमारी साख गिरेगी बल्कि बक़वीर की हरकतों का मलबा हमारे भविष्य के अंतरिक्ष ख़तरों से भर देगा।
लेखक खगोलविज्ञानी हैं।