ग्राउंड रिपोर्ट: दिल्ली की झुग्गियों में नाचती है भूख, खोखले हैं पीएम-सीएम के दावे !

कोरोना वायरस के चलते पूरा देश लॉक डाउन है. सभी लोग अपने घरों में कैद हैं. देश की पूरी व्यवस्था में ताला बंद है. लेकिन इस तालाबंदी ने रोज कमा कर खाने वालों के सामने भुखमरी की नौबत पैदा कर दी है. लॉक डाउन के चलते काम काज बंद है. जिससे दिल्ली के प्रवासी मजदूरों का जीवन जीना मुश्किल हो गया है. सरकारें भले ही लोगों को राशन और खाना बांटने का दावा करें. लेकिन हजारों लोगों तक ये सुविधाएं नहीं पहुंच रही हैं.

नरेला की झुग्गियों में भूखे सोने को मजबूर प्रवासी मजदूर

दिल्ली के नरेला इंडस्ट्रियल एरिया के पास भोरगढ़ गांव के गोलंबर के पास स्थित झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले यूपी-बिहार के प्रवासी मजदूरों का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा पास के स्कूल में की गई खाने की व्यवस्था सही नहीं है. वहां जानवर से भी बदतर भोजन देते हैं और बच्चों को तो देते ही नहीं हैं. लोग भूखे रहने पर मजबूर हैं क्योंकि काम धंधा बंद हो गया है. सेठ और ठेकेदारों ने भी पैसा देना बंद कर दिया.

इस झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले अधिकतर मजदूरों ने कहा कि यहां पीने के पानी की व्यवस्था भी नहीं है. हम लोग गांव वालों के पास जाकर पानी लाते हैं. इसके लिए गाली और तरह तरह की बातें भी सुननी पड़ती हैं. मजदूरों का कहना है कि हम लोगों के पास ना पीने का पानी है और ना खाने को भोजन.

जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहीं सरकार की योजनाएं

केंद्र और दिल्ली सरकार के द्वारा चलायी जा रही राहत योजनाओं के बारे में पूछने पर यहां की महिलाओं ने बताया कि हम लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है. ना ही गैस, बिजली और पानी का कनेक्शन है. बैंक खाता है लेकिन खाते में कुछ नहीं आया है. कल बैंक खाता चेक करवाये थे लेकिन कुछ नहीं मिला.

महिलाओं से जब हमने पूछा कि क्या अभी तक आपके पास कोई सरकारी आदमी आया? इनका कहना था कोई भी सरकारी व्यक्ति हमारे पास हमारा दुख दर्द जानने नहीं आया. हम लोग राशन की सरकारी दुकान पर जाते हैं तो दुकान वाला गाली देकर भगा देता है.

केंद्र और दिल्ली सरकार दावा करती हैं कि प्रवासी मजदूरों के रहने खाने और स्वास्थ्य इत्यादि की पूरी व्यवस्था वो कर रही हैं. लेकिन यहां के लोगों को कहना है कि यह दावा झूठा है. ग्राउंड पर किसी भी जरूरतमंद मजदूर को कोई सहायता नहीं मिल रही है.

 

नाले के किनारे सोने पर मजबूर प्रवासी मजदूर

नरेला की इस झुग्गी बस्ती की हालत देखने के बाद लगेगा नहीं कि यहां पर इंसान रहते होंगे. किन्तु बेरोजगारी, अशिक्षा और भूखमरी ने इन प्रवासी मजदूरों जिनमें अधिकतर बिहार के हैं, गंदगी से भरे वातावरण में जीने पर मजबूर हैं. यहां ना पानी, बिजली की सुविधा है और ना शौचालय की व्यवस्था है.

जबकि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि दिल्ली के हर गरीब के पास पानी, बिजली और शौचालय की व्यवस्था है. सरकारी दावों में दिल्ली संपूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त है लेकिन यह हकीकत सरकारों के उस दावे की पोल खोलती हैं और यह प्रमाणित करती है कि सरकारों ने सिर्फ कागजों पर काम किये हैं.

सवाल उठता है कि जब सरकार और मेडिकल जगत कोरोना वायरस के इस घोर संकट में साफ-सफाई का विशेष ध्यान देने की बात कर रहे हैं तो इस परिस्थिति में भी इन झुग्गियों में रहने वाले लोग गंदगी में रहने पर मजबूर क्यों हैं? इनके लिए पानी, बिजली, शौचालय और साफ सफाई की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही? क्या इसी तरह से हम करोना से जीतेंगे?

 बिहार सरकार की 1000 रूपये की सहायता योजना बनी मजाक

बिहार सरकार अपने स्तर से बिहार के प्रवासी मजदूरों की “जो जहां है उसको वहां” मदद पहुंचाने का दावा कर रही है. उन्होंने एक एप्लीकेशन कोरोना सहायता बनाया है. जिसमें लोगों को आधार कार्ड, बैंक अकाउंट और मोबाइल नम्बर डालकर अपना रजिस्ट्रेशन कराना है.

इस योजना का लाभ लेने के लिए सरकार ने दो शर्तें लगा दी हैं. जिसके तहत बैंक अकाउंट और आधार कार्ड बिहार का होना चाहिए. इस शर्त के चलते कई लोग इस योजना के लाभ से वंचित हो जा रहे हैं.

नोएडा-एनसीआर में मजदूरी करने वाले बिहार के मजदूर मनीष कुमार का कहना है कि “बहुत मुश्किल से आवेदन रजिस्टर्ड हो पाता है. यह सॉफ्टवेयर इतना झंझटिया है कि साधारण आदमी इसको नहीं भर सकता. इसको भरने के लिए पेशेवर तकनीकी का जानकार आदमी का होना जरूरी है.”

अधिकतर मजदूरों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं, तकनीकी का ज्ञान नहीं है, ऐसे में वो इस योजना का लाभ कैसे लेंगे? जो झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं, अशिक्षित हैं, गरीब हैं, उनको तो इस योजना के बारे में जानकारी भी नही है, तो लाभ कैसे लेंगे?

ग्राउंड लेवल पर मदद की जरूरत

दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों तक मदद पहुंचाने के लिए जरूरतमंदों तक पहुंचने की जरूरत है. केंद्र और राज्य सरकारों को ग्राउंड लेवल पर सर्वेक्षण कर जरूरतमंदों को चिंहित करना होगा. तभी जरूरत मंदों तक मदद पहुंच पाएगी.


राजीव कुमार

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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