कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में अवैध बांग्लादेशी होने के संदेह में उजाड़े गये लोगों की बस्ती को उजाड़े जाने के मामले पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य की पुलिस को फटकार लगाई है . हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या किसी व्यक्ति के चेहरे को देखकर यह बताया जा सकता है कि वो अवैध बांग्लादेशी है ?
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह 10 फरवरी तक सूचित करे कि क्या वह उन व्यक्तियों का पुनर्वास करेगी जो कि करिअम्मना अग्रहारा, देवरबीसनाहल्ली, कुंदलहल्ली और बेलंदुरु क्षेत्र से निकाले गए थे. इन सभी को अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी कहते हुए इन इलाकों से निकाला गया था.
"By looking at the face of a person, can one be identified as being a Bangladeshi national?” Question by Karnataka High Court Chief Justice Abhay Shreeniwas Oka on demolition of migrant settlements. @HaripriyaS_ reports. https://t.co/68lk0WTFZG.
— Prajwal (@prajwalmanipal) February 3, 2020
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर की खंडपीठ ने कहा कि- “हम प्रथम दृष्टया मानते हैं कि राज्य को उन लोगों का पुनर्वास करना होगा जिन्हें बेदखल कर दिया गया था. यह सब राज्य सरकार के एक पुलिस निरीक्षक के कारण शुरू हुआ था, जिसने भूमि मालिकों को एक पत्र लिखा था. राज्य को उन सभी का पुनर्वास करना होगा, या तो भुगतान करना होगा या उन्हें कहीं और रहने के लिए स्थान दें.”
राज्य सरकार के बयान पर भी नाराजगी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि पुलिस की मिलीभगत के बिना ऐसी कार्रवाई संभव नहीं है. अदालत ने कहा ऐसे में ‘पुलिस अधिकारी का स्थानांतरण क्या? उसे नौकरी से निकाल दिया जाना चाहिए. उसने अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए दीवानी न्यायालय की शक्ति का उपयोग किया है. भूमि के मालिकों को उसके द्वारा लिखे गए पत्र में भूमि पर अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी आप्रवासियों के रिकॉर्ड की बात कही गई है. लोगों के चेहरे को देखकर, क्या वह पहचान सकता है कि वह बांग्लादेशी है? एक उचित डोर टू डोर सर्वे /सत्यापन चलाया जाना चाहिए था. राज्य के पास इस बात का भी स्पष्टीकरण नहीं है कि पुलिस नोटिस जारी करने के लिए इस भूमि के मालिक को चुनने का क्या औचित्य था.”