जस्टिस राजिंदर सच्चर नहीं रहे। उम्र का शतक पूरा करने से पहले वे चले गए। शुक्रवार की दोपहर उन्होंने दिल्ली में अंतिम सांस ली। जस्टिस सच्चर लंबे समय से बीमार चल रहे थे, उनके घुटने जवाब दे गए थे लेकिन आचिारी समय तक वे आंदोलनों और मानवाधिकरों से जुड़े मामलों में सक्रिय रहे। जहां कोई किसी सभा में उन्हें बुलाता, वे चले आते थे। उनकी जिजीविषा अप्रतिम थी, कि नब्बे के दशक में चल रहे जस्टिस सच्चर नौजवानों से भी ज्यादा सक्रिय दिखाई देते थे।
जस्टिस सच्चर का जन्म 1923 में हुआ था। वे दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके थे। मानवाधिकारों के प्रसार पर संयुक्त राष्ट्र के उपायोग के वे सदस्य थे और मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के साथ जुड़े थे। जस्टिस सच्चर का इस देश को सबसे बडा योगदान भारत सरकार द्वारा गठित सच्चर कमेटी की सिफारिशें थीं, जिसमें भारत के मुसलमानों के सामाजिक, शैक्षणिक आर्थिक हालात का ब्योरा था। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को आए दशक भर हो रहा है लेकिन आज तक उस पर किसी सरकार ने काम नहीं किया।
जस्टिस सच्चर के जाने से देश भर के मानवाधिकार कर्मियों के सिर से एक गार्जियन का साया उठ गया है। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को दिल्ली के लोधी रोड श्मशान गृह में होगा।