पहला पन्ना: हेडलाइन मैनेजमेंट,चर्चा जितिन प्रसाद की, तैयारी चुनाव आयोग की!

मीडिया की मानें तो कांग्रेस "मरी हुई" पार्टी है। लेकिन अंग प्रत्यारोपण के लिए हमेशा एकमात्र राजनीतिक दल के काम आती है। जो "अंग" भाजपा में प्रत्योरोपित होते हैं वे भी चहकते हैं। मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं। ऐसे में पार्टी के आदर्शों, सिद्धांतों और विचारधारा का क्या हो और इन सबके बिना तो राजनीति सिर्फ सत्ता हथियाने वाली हो जाएगी और स्थिति लगभग वही है। किसी तरह सत्ता में बने रहो, लूटपाट करो बांट कर खाओ।  

केरल प्रदेश भाजपा और उसके अध्यक्ष के सुरेन्द्रन, राज्य में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद पार्टी के पैसों की गड़बड़ी और बसपा उम्मीदवार को पैसे देकर नामांकन वापस करवाने के एक मामले में चर्चा में हैं। राज्य में सोने की तस्करी, उसकी जांच और फिर यह जांच एनआईए को सौंपे जाने के मामले राज्य विधानसभा चुनाव से पहले और आसपास पहले पन्ने पर छपे थे। केरल में सत्तारूढ़ पार्टी की छवि खराब करने वाली खबरें चुनाव से पहले तो पहले पन्ने पर छपीं लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद पार्टी के चुनावी धन की गड़बड़ी और उसमें प्रदेश अध्यक्ष का मामला इधरउधर छपता रहा पर पहले पन्ने पर नहीं पहुंचा। वैसे तो यह पार्टी का पैसा है लेकिन इसकी हेराफेरी के लिए हाईवे पर फर्जी लूट का मामला बताया जा रहा है और केरल पुलिस उसकी जांच कर रही है। लिहाजा अन्य मामलों की तरह खबरें आती रही हैं पर मुझे ध्यान नहीं है कि कोई भी खबर टेलीग्राफ को छोड़कर मेरे चार अखबारों में पहले पन्ने पर छपी हो। यह विवाद इतना बढ़ गया है कि केरल भाजपा के नेता दिल्ली आए। इनमें सुरेन्द्रन भी थे। इससे पहले राज्यपाल से मुलाकात कर राज्य सरकार पर पार्टी को बदनाम करने का आरोप लगाया गया पर सब अंदर की खबरें है। दूसरी ओर, जितिन प्रसाद का मामला जरूर सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। 

बात सिर्फ जितिन प्रसाद को नहीं है। ठीक है कि भाजपा ने जितिन प्रसाद को अपनी राजनीति के लिए पार्टी में शामिल किया है और वह यह सब करेगी लेकिन अखबारों ने अपने पाठकों को (पहले पन्ने पर) यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि चुनाव आयोग के नए सदस्य अनुप चंद्र पांडेय उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव हैं और उनकी निगरानी में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 613 करोड़ रुपए की गौ कल्याण परियोजना लागू की थी और वे अपने राजनीतिक आकाओं का मन पढ़ने में पारंगत हैं। सोशल मीडिया पर जब यह चर्चा चल रही है कि मोदीयोगी की बन नहीं रही है और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को हटाकर चुनाव लड़ने की योजना है तथा यह भी कि नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार में चेहरा नहीं रहेंगे तो यह मौका था, बताने के लिए कि दोनों अलग नहीं हैं। और उनके पसंदीदा अधिकारी को राज्य में चुनाव से पहले चुनाव आयोग का सदस्य बना दिया गया है। वैसे भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदैश काडर के अधिकारी का चुनाव आयोग पहुंच जाना और उनका मुख्यमंत्री का खास होना (मुख्य सचिव थे) खबर तो है ही। यह विवरण द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर छपी खबर से लिया गया है। किसी और अखबार में पहले पन्ने पर दिखी

इस तरह, अखबारों की पहले पन्ने की खबरों की प्राथमिकता बहुत साफ है। हेडलाइन मैनेजमेंट किया जा रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है और उसका तीसरा उदाहरण है केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा पूर्व नौकरशाहों को पढ़ेलिखे मूर्ख कहा जाना जाना। मुझे इसका वीडियो मिला था और मैंने इसपर लिखा भी है लेकिन अखबारों में पहले पन्ने पर खबर नहीं दिखी। टेलीग्राफ ने आज एक खबर छापी है जिसका फ्लैग शीर्षक है, पूर्व नौकरशाहों के मुकाबले में सरकार के सहयोगियों के पास कुछ ही जवाब हैं। मुख्य शीर्षक है, शिक्षित मूर्खों ने खाली पोत की पोल खोली। इस खबर में बताया गया है कि कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप का यह 45वां पत्र था जिसपर मंत्री जी ने यह प्रतिक्रिया प्रेस कांफ्रेंस में दी। इस समूह ने पहला पत्र चार साल पहले लिखा था। प्रेस कांफ्रेंस में  केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने अपने पूर्व साथी नौकरशाहों को पढ़ा लिखा मूर्ख कहने के साथसाथ पत्रकारों को समझाया था कि जो पुराना संसद भवन है वह आजाद भारत के लिए नहीं बना था। अरुण कुमार त्रिपाठी ने लिखा था, उसी समय देश का सर्वोच्च न्यायालय राजद्रोह के अपराध को परिभाषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124() की नई व्याख्या करने पर जोर दे रहा था। सर्वोच्च न्यायालय के इस रुख से यह सवाल उठता है कि अगर पुरानी इमारत में नए भारत की संसद नहीं बैठ सकती तो राजद्रोह के डेढ़ सौ साल पुराने कानून से लोकतांत्रिक देश कैसे चल सकता है? पर इसका और ऐसे कई सवालों का जवाब केंद्रीय मंत्री ने नहीं दिया। पर वीडियो का एक हिस्सा खूब घूमा और टेलीग्राफ ने आज लिखा है कि पुरी का बयान भी छपा था लेकिन कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने जवाब देकर उनकी जाल में फंसना उचित नहीं समझा। कुछ सदस्यों ने अलगअलग प्रतिक्रिया जरूर दी। 

कहने की जरूरत नहीं है मुख्य धारा की मीडिया के बड़े हिस्से में केंद्र सरकार के खिलाफ खबरें नहीं होती हैं जबकि उसका पक्ष चाहे जितना लचर हो और उसकी विरोधी पार्टियों पर आरोप चाहे जितने कमजोर हों प्रमुखता से छपते हैं। इसी क्रम में आज यह खबर है कि देश में पहली बार डीजल की कीमत 100 रुपए के करीब पहुंच गई है (हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम) आप जानते हैं कि डीजल का उपयोग खेती के कामों में होता है और इस कारण देश में डीजल की कीमत हमेशा से पेट्रोल के मुकाबले काफी कम रखी जाती थी। अब वही डीजल पेट्रोल के साथसाथ 100 रुपए के करीब पहुंच गया लेकिन खबर पहले पन्ने पर नहीं पहुंची है।  

दूसरी ओर, 47 वर्षीय जितिन प्रसाद कांग्रेस नेता जितेन्द्र प्रसाद के पुत्र हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रह चुके हैं। 15वीं लोकसभा का चुनाव वे 1,84,509 मतों से जीते थे। 16वीं और 17वीं लोकसभा में नरेन्द्र मोदी का जादू चल रहा है और पिछली बार तो ज्यादातर चौकीदार चुनाव जीते। ऐसे में दून स्कूल, श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स और इंटरनेशनल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से पढ़े, पूर्व केंद्रीय मंत्री के बेटे वंशवाद विरोधी पार्टी में कितने उपयुक्त हैं इसका अंदाजा इस बात से भी लगता है कि वहां गोबर, गोमूत्र और गौमात्रा के प्रचारक कितने महत्वपूर्ण हैं। उनका कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना कितना महत्वपूर्ण है वह पहले पन्ने पर छपी खबरों से ही नहीं, शीर्षक से भी समझा जा सकता है। आइए, आज इस खबर को दिए गए महत्व और उसका  शीर्षक देखें। 

  1. इंडियन एक्सप्रेस-कॉलम में टॉप पर लीड की जगह। लीड आज उल्टी तरफ है फौन्ट बड़ा और शीर्षक चार लाइन का है। जितिन प्रसाद वाली खबर का शीर्षक तीन लाइन में है। अमित शाह के साथ फोटो भी डबल कॉलम में है। शीर्षक का हिन्दी कुछ इस प्रकार होगा, “उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले कांग्रेस से एक और निकास: प्रसाद भाजपा में गए” (अखबार कांग्रेस के साथ रह गया?)। आप यह सवाल मुझसे न पूछे इसलिए मैंने ही पूछ लिया है। असल में आए – गए के साथ यह दिक्कत होती है। इसीलिए हिन्दी में, ‘शामिल हुए’ और अंग्रेजी में ज्वायन्ड या ज्वायन्स यानी ‘जुड़े’ लिखा जाता है।
  2. हिन्द – तीन कॉलम में दो लाइन के शीर्षक और पासपोर्ट साइज की फोटो के साथ छपी इस खबर का शीर्षक है, “पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़ी, भाजपा से जुड़े”। इस खबर का इंट्रो है, “कांग्रेस में लोगों के हित में काम नहीं कर पाया”। मुझे यह समझ में नहीं आया कि वे हाल में उत्तर प्रदेश के किनारे “पंरपरा के अनुसार” रेत में दबाई गई लाशें देखकर काम करने के लिए प्रेरित हुए या पूर्व में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए अपने ही जैसे एक और नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिले ‘काम’ के मौकों से प्रोत्साहन मिला। पता नहीं, भारतीय मीडिया नेताओं से अब कभी ऐसे सवाल कर पाएगा कि नहीं।
  3. हिन्दुस्तान टाइम्स-लीड के नीचे दो कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ। शीर्षक है, “कांग्रेस को झटका क्योंकि प्रसाद भाजपा से जुड़े”।
  4.  टाइम्स ऑफ इंडिया- लीड के नीचे दो कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ। शीर्षक है, “राहुल के मित्र जितिन प्रसाद ने कांग्रेस को छोड़ा इससे भाजपा मजबूत हुई।”
  5. टेलीग्राफ-यह खबर संक्षेप में है और पूरी खबर अंदर होने की सूचना है। अंदर, पेज चार पर राष्ट्रीय खबरों के पन्ने पर छह कॉलम में छपी इस खबर का शीर्षक है, “ब्राह्मण और वंश परंपरा से? भाजपा में स्वागत है”। इसके साथ दो खबरें हैं, जेपी यादव की बाईलाइन वाली खबर का शीर्षक है, “जितिन के लिए तृष्णा से उत्तर प्रदेश भाजपा की बेचैनी सामने आई।” दूसरी खबर संजय के झा की बाईलाइन वाली है, इसका शीर्षक है, “कांग्रेस के लिए नुकसान प्रतीकात्मक।”

टीओआई ने लिखा है, भाजपा मजबूत हुई, एचटी इसे कांग्रेस को झटके के रूप में देख रहा है जबकि इंडियन एक्सप्रेस इसे निकासी और जमा के रूप में ही देख रहा है। यह अलग बात है कि एक्सपैन्ड में लिखा है, इससे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ब्राह्मण समुदाय में संदेश जाएगा जिसके प्रसाद है। आप चाहे तो यकीन मत कीजिए पर ईमानदारी से, मुझे नहीं पता था कि ब्राह्मणों की पार्टी कही जाने वाली पार्टी के वरिष्ठ नेता जितेन्द्र प्रसाद के दून स्कूल और विदेश में पढ़े पुत्र जितिन प्रसाद ब्राह्मण हैं। चुनाव और राजनीति में जाति सिर्फ नेता और समाज नहीं करता है। मीडिया भी करता है। और दिलचस्प है कि जब जैसे मर्जी करता है। वरना कांग्रेस  ब्राह्मण की और भाजपा बनियों की पार्टी है और उसमें जितिन प्रसाद का यह दल बदल तो उल्टा होगा। इसलिए आज दूसरी कहानी।

इस संबंध में योगी आदित्य नाथ ने ट्वीट किया है, “कांग्रेस छोड़कर भाजपा के वृहद परिवार में शामिल होने पर श्री जितिन प्रसाद जी का स्वागत है। श्री जितिन प्रसाद जी के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने से उत्तर प्रदेश में पार्टी को अवश्य मजबूती मिलेगी। इसपर abplive.com की खबर का शीर्षक है, “जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने पर आई सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया, जानेंक्या कहा?” ध्यान दीजिए, यह टेलीविजन की खबर नहीं है। मीडिया की मानें तो कांग्रेसमरी हुईपार्टी है। लेकिन अंग प्रत्यारोपण के लिए हमेशा एकमात्र राजनीतिक दल के काम आती है। जोअंगभाजपा में प्रत्योरोपित होते हैं वे भी चहकते हैं। मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं। ऐसे में पार्टी के आदर्शों, सिद्धांतों और विचारधारा का क्या हो और इन सबके बिना तो राजनीति सिर्फ सत्ता हथियाने वाली हो जाएगी और स्थिति लगभग वही है। किसी तरह सत्ता में बने रहो, लूटपाट करो बांट कर खाओ।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

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