‘बंदूक की नोंक के नीचे पढ़ाई संभव नहीं है’ यह कहना है झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा) जिला के गोइलकेरा प्रखंड के ग्रामीणों का। दरअसल बात यह है कि गोइलकेरा प्रखंड के कुईड़ा में अवस्थित हाई स्कूल परिसर में इंडियन रिजर्व बटालियन (आइआरबी) का कैंप स्थापित किया गया है, जिससे वहाँ के अगल-बगल के लगभग दो दर्जन गांव के लोग आक्रोशित हैं और अब ग्रामीण आंदोलन की राह पर चल पड़े हैं।
3 फरवरी 2020 को कुईड़ा के आसपास के लगभग दो दर्जन वनग्राम के हजारों आदिवासियों ने गोइलकेरा प्रखंड मुख्यालय पर प्रदर्शन किया और राज्यपाल के नाम 10 सूत्रीय मांगों वाला आवेदन गोइलकेरा बीडीओ को सौंपा, जिसमें आइआरबी कैंप को स्कूल परिसर से हटाकर अन्यत्र स्थापित करने, ग्रामसभा की संपूर्ण शक्तियों से लोगों को अवगत कराने के लिए सेमिनार आयोजित करने, ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने, वनग्राम में बसे लोगों को जमीन का पट्टा देने, कुईड़ा से सोनुवा सड़क का निर्माण कराने, आदिवासियों के रोजगार व स्वरोजगार की व्यवस्था करने आदि की मांगें शामिल है।
मालूम हो कि 3 जनवरी 2020 को भी मानकी मुंडा संघ के एक प्रतिनिधिमंडल ने चाईबासा उपायुक्त व एसपी को एक ज्ञापन सौंपा था। जिसमें साफ लिखा था कि ग्राम सभा की अनुमति के बिना कुईड़ा हाई स्कूल में आईआरबी कैम्प बनाया गया है। स्कूल में सैकड़ों आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं। बंदूक की नोंक के नीचे बच्चों का स्कूल में पढ़ना संभव नहीं है। कैम्प के रहने से आदिवासियों की परम्परागत स्वशासन व्यवस्था पर भी इसका कुप्रभाव पड़ेगा।
ग्रामीणों के इस आंदोलन को चाईबासा एसपी इंद्रजीत महथा का कहना है कि माओवादियों द्वारा ग्रामीणों को भड़काकर कैंप का विरोध कराया जा रहा है। एसपी के इस आरोप को ग्रामीण बेबुनियाद बताते हुए कहते हैं कि प्रशासन माओवादियों का नाम उजागर करे कि आखिर कौन ग्रामीण को इस्तेमाल कर रहा है।
मालूम हो कि झारखंड में पिछली सरकारों द्वारा माओवादियों के खात्मे के नाम पर व्यापक अभियान चलाने के लिए कई स्कूलों में अर्द्ध सैनिक बलों के कैंप खोले गये हैं, जो आज भी मौजूद है। झारखंड की नयी सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि स्कूल बच्चों की पढ़ाई के लिए है या फिर सुरक्षा बलों के कैम्प के लिए।।