भारत के पूर्व गृहमंत्री और वित्तमंत्री पी. चिदंबरम भागे फिर रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनके खिलाफ़ लुकआउट नोटिस निकाल दिया है। पिछली रात सीबीआइ और इडी ने उनके आवास पर छापा मारा और सीबीआइ ने दो घंटे में हाजि़र होने का एक नोटिस उनके आवास के बाहर चिपका दिया। इस नोटिस में चिदंबरम का मोबाइल नंबर भी उसने सार्वजनिक कर दिया। पूरी कार्रवाई ऐसे की गई जिसने आज से महज पांच साल पहले देश में सबसे ताकतवर रहे शख्स को एक भगोड़े अपराधी में तब्दील कर दिया।
Enforcement Directorate (ED) issues lookout notice against Congress leader and former Finance Minister #PChidambaram pic.twitter.com/h0dGdJWYSB
— ANI (@ANI) August 21, 2019
यह सब कुछ मंगलवार को दिन में अदालत से चिदंबरम की अग्रिम ज़मानत की अर्जी खारिज होने के बाद घटा। इस आसन्न गिरफ्तारी को एक तरफ रोकने की पूरी कोशिश कांग्रेस के वकीलों की ओर से हो रही है तो दूसरी तरफ़ सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर लोग गिरफ्तारी का इंतज़ार कर रहे हैं। लंबे समय बाद किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता के अपराध और दंड को लेकर इतना हंगामा मचा है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि चिदंबरम जिस मामले में फंसे हैं और गिरफ्तारी के डर से भागे हुए हैं वह मामला है क्या।
मनी लॉन्डरिंग का क्लासिक केस
आइएनएक्स मीडिया घोटाले के नाम से चर्चित विदेशी पैसे की गैर-कानूनी आमद का यह मामला उस वक्त का है जब पी. चिदंबरम यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में देश के वित्तमंत्री हुआ करते थे। इस मामले पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे ”पैसों की हेरफेर का क्लासिक केस” करार दिया है जिसमें उसकी राय है कि प्रभावी जांच के लिए चिदंबरम को हिरासत में लेकर पूछताछ किया जाना बहुत ज़रूरी है। पूरा घोटाला करीब 307 करोड़ रुपये का है जिसकी मंजूरी विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआइपीबी) ने चिदंबरम के मातहत आइएनएक्स मीडिया को दी थी।
मई 2017 में ईडी ने पी. चिदंबरम के बेटे कर्ति चिदंबरम, आइएनएक्स मीडिया और उसके निदेशकों पीटर मुखर्जी व इंद्राणि मुखर्जी समेत अन्य के खिलाफ़ एनफोर्समेंट केस इनफॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआइआर) दायर की थी। इसे आप पुलिसिया एफआइआर के समकक्ष दायर रिपोर्ट समझ सकते हैं। यह कार्रवाई पैसों की हेरफेर यानी हवाला से जुड़े कानून प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट (पीएमएलए) के अंतगत की गयी थी।
ईडी की इस कार्रवाई और दी गयी सूचना के आधार पर सीबीआइ ने 2007 में आइएनएक्स मीडिया को 307 करोड़ के विदेशी धन संबंधी एफआइपीबी की मिली मंजूरी के मामले में इन्हीं आरोपियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की।
दस साल पहले
कहानी शुरू होती है जनवरी 2008 में, जब वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाली फाइनेंस इंटेलिजेंस यूनिट ने मॉरीशस की तीन कंपनियों द्वारा आइएनएक्स मीडिया लिमिटेड में पैसे लगाए जाने का मामला उठाया, जिसके बाद मुंबई में आयकर विभाग ने मामला ईडी के सुपुर्द कर दिया। 2010 में ईडी ने फेमा उल्लंघन का एक केस आइएनएक्स मीडिया पर दर्ज किया।
कई साल बाद चिदंबरम के पुत्र कर्ति से जुड़ी एक कंपनी की जांच करते हुए ईडी को कर्ति के सीए भास्कररमन के कंप्यूटर से आइएनएक्स मीडिया से जुड़े कागज़ात बरामद हुए। इन कागज़ात से पता चलता था कि कर्ति की कथित कंपनी को आइएनएक्स मीडिया ने एफआइपीबी की मंजूरी के बाद पैसों का भुगतान किया था। इसी संदर्भ में ईडी के सूचना के आधार पर सीबीआइ ने मई 2017 में एफआइआर दर्ज की और कर्ति व चिदंबरम के ठिकानों पर छापा मारा।
पिछले साल फरवरी में कर्ति को गिरफ्तार किया गया था। बाद में उसे दिल्ली हाइकोर्ट ने ज़मानत दे दी और फिलहाल वे शिवगंगा से कांग्रेस के सांसद हैं।
अपनी एफआइआर में सीबीआइ ने बताया कि आइएनएक्स मीडिया ने 13 मार्च 2007 को एफआइपीबी से संपर्क किया था। कंपनी एफडीआइ के रास्ते तीन गैर-प्रवासी निवेशकों को 14.98 लाख इक्विटी शेयर और 31.22 लाख परिवर्तनीय शेयर (प्रति 10 रुपये) की मंजूरी चाहती थी। ये शेयर कुल मिलाकर आइएनएक्स मीडिया की पूंजी का 46.21 फीसदी थे।
सीबीआइ के मुताबिक कंपनी यह भी चाहती थी कि आइएनएक्स मीडिया की अनुषंगी इकाई आइएनएक्स न्यूज़ प्राइवेट लिमिटेड में 25 फीसदी का वित्त निवेश लिया जाए। 30 मई 2007 को एफआइपीबी ने आइएनएक्स मीडिया के लिए 4.62 करोड़ का एफडीआइ मंजूर कर दिया लेकिन आइएनएक्स न्यूज़ में उसने निवेश के आवेदन को खारिज कर दिया।
सीबीआइ का आरोप है कि आइएनएक्स मीडिया ने एफआइपीबी की इस सशर्त मंजूरी का उल्लंघन करते हुए 4.62 करोड़ की मंजूर राशि के बजाय 307 करोड़ का एफडीआइ मंगवा लिया। उस वक्त विदेशी इकाइयों ने आइएनएक्स के शेयर प्रति शेयर 862.31 रुपये की दर से खरीदे जो कि उनके आधार मूल्य का 86.2 गुना था (आधार मूल्य 10 रुपया प्रति शेयर बताया गया था)। इसके अलावा आइएनएक्स न्यूज़ में भी 26 फीसदी का निवेश गलत तरीके से लिया गया, जिसे एफआइपीबी मना कर चुका था।
सीबीआइ का कहना है कि 26 मई 2008 को जब एफआइपीबी ने आयकर विभाग की जांच शुरू होने के बाद आइएनएक्स मीडिया से सफाई मांगी तब कंपनी ने चेस मैनेजमेंट सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड के प्रवर्तक निदेशक और वित्तमंत्री के पुत्र कर्ति चिदंबरम से संपर्क साधा ताकि अपने पिता के मार्फत वे एफआइपीबी के अफसरों को प्रभावित कर के मामले का शांतिपूर्ण निपटारा कर सकें।
इसके बाद सीबीआइ का कहना है कि एफआइपीबी ने मामले की जांच आगे बढ़ाने के बजाय आइएनएक्स को उस निवेश पर मंजूरी के लिए नए सिरे से आवेदन करने को कहा जो पहले ही आ चुका था।
पिता का प्रभाव, बेटे का सहारा
आयकर विभाग ने फरवरी 2008 में जब आइएनएक्स मीडिया से पूछताछ की थी तब इस मामले को निपटाने के लिए कंपनी ने कर्ति को रिश्वत दी थी, ऐसा सीबीआइ का आरोप है। सीबीआइ के मुताबिक कर्ति को इस मामले को निपटाने के लिए 10 लाख रुपये मिले। अपने छापे में सीबीआइ को कथित रूप से इतनी ही राशि का वाउचर बरामद हुआ था जो एडवान्टेज स्ट्रेटेजिक कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम से था। यह फर्म परोक्ष रूप से कर्ति की ही थी।
पी. चिदंबरम ने अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों से इनकार किया है और इसे राजनीतिक रंजिश का नाम दिया है। दिक्कत यह है कि वे 2006 में एयरसेल-मैक्सिस के सौदे में हुए घोटाले में भी फंसे हुए हैं जिसकी मंजूरी उन्हीं के कार्यकाल में एफआइपीबी ने दी थी। इस मामले की जांच सीबीआइ के पास है।
इस मामले में पीटर मुखर्जी और इंद्राणि मुखर्जी की भूमिका अहम है, जो आइएनएक्स मीडिया के मालिकान रहे। इन्होंने 2007 में मिलकर कंपनी बनायी थी। मार्च 2018 में इंद्राणि ने सीबीआइ को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराये आधिकारिक बयान में बताया था कि उनके और कर्ति के बीच एक मिलियन डॉलर का सौदा हुआ था ताकि कर्ति उन्हें एफआइपीबी से मंजूरी दिलवा सकें।
पिछले ही महीने दिल्ली की एक अदालत ने अपनी बेटी शीना बोरा की हत्या में मुख्य आरोपी इंद्राणि को आइएनएक्स मामले में सरकारी गवाह बनने की अनुमति दी है। सरकारी गवाह बनने का आवेदन इंद्राणि ने खुद किया था और सच बोलने के बदले माफी की दरख्वास्त की थी।
अभी तक ईडी ने इस मामले में कर्ति चिदंबरम की 54 करोड़ की परिसंपत्ति राजसात कर ली है। इंद्राणि और पीटर की परिसंपत्तियां भी ज़ब्त की गयी हैं।