देश के गृहमंत्री ने कहा है और हिन्दुस्तान टाइम्स में टॉप पर तीन कॉलम में इतने बड़े शीर्षक के साथ छपा है। यह अपनी (सरकार की) पीठ खुद थपथपाना है। वह भी बिना आधार। आखिर पूरी खबर में अमित शाह के ऐसा कहने का कोई आधार है? इसके मुकाबले इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित आंकड़े देखिए। स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रेस कांफ्रेंस बंद कर दी और अखबारों ने विवरण देना बंद कर दिया लेकिन मंत्री जी दावा कर रहे हैं कि भारत में सब ठीक है। असल में भारत एक केस स्टडी है कि बिना कुछ किए सरकार कैसे समय काट सकती है। काम के नाम पर सरकार ने सिर्फ पैसे इकट्ठा किए हैं और उसका भी हिसाब देने से बचने के तरीके और बहाने ढूंढती रही है। पर वह अलग मुद्दा है।
अभी गृहमंत्री के दावे पर ही रहता हूं। इस आंकड़े के हिसाब से भारत में 8,49,552 मामले पाए गए हैं और अभी तक 22,674 मौतें हो चुकी हैं। यह प्रतिशत में 2.668 यानी मोटे तौर पर 2.7 प्रतिशत हुआ। विश्व आंकड़ा दो प्रतिशत का है और भारत में मौतें अभी ही ज्यादा है। अगर संक्रमितों की संख्या के मामले में भारत से आगे के कुल दो देशों की बात करें तो अमेरिका और ब्राजील भारत से बहुत आगे है। और बेशक दोनों जगह मौतें भी भारत से ज्यादा हैं। प्रतिशत में अमेरिका चार और ब्राजील 3.85 है। पर कम संक्रमितों वाले रूस में मरने वालों का प्रतिशत संक्रमितों के मुकाबले 1.55 है जो पेरू में 3.64 है। भारत में अब जब अस्पताल में जगह नहीं है, इलाज की सुविधा नहीं है और महामारी छोटे शहरों में पहुंच रही है तो यह निराधार दावा आगे प्रतिशत बढ़ाएगा ही, घटाएगा नहीं। फिर भी यह दावा हेडलाइन मैनेजमेंट से ज्यादा नहीं है।
कहने की जरूरत नहीं है कि इलाज और बचाव नहीं होने के कारण हम संक्रमितों के मामले में दुनिया भर में तीसरे नंबर पर हैं और हमसे आगे अमेरिका व ब्राजील ही है। और यह स्थिति तब है जब हमारे यहां प्रति 10 लाख की आबादी पर जांच अमेरिका के मुकाबले सिर्फ 6.6% है। श्रमिक स्पेशल ट्रेन का संचालन कोविड प्रबंध का ही हिस्सा है। अब यह मानी हुई बात है कि कुछ लोगों के लिए कुछ दिन चली इस महंगी सेवा में 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। भले ही वे बीमार और असक्त लोग हों पर ट्रेन में बीमार और असक्त लोग चलते रहे हैं और इस बार भी रेलवे ने मना नहीं किया था। बाकी ट्रेन से गरीब यात्रियों को भूखे-प्यासे जो भारत दर्शन कराया गया वह तो इतिहास है। सरकार रेल परिसर में हुई मौतों की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती है।
इसी तरह हजारों लोग पैदल जाने को मजबूर हुए क्योंकि कोई इंतजाम ही नहीं था और इसमें भी कई सौ लोग मरे थे। अचानक लॉक डाउन, फिर बीमारी बढ़ने पर खोल दिया जाना। इस अराजक स्थिति में लोग ट्रेन का टिकट नहीं ले सके और आगे कब क्या होगा की अनिश्चतता में कार और टैक्सी से भागे। भले ही किराया देने के लिए जमीन या जेवर बेचा हो। एक तरफ मंत्री जी भाषण देने में दूसरे देशों की चर्चा करते हैं और देश के अखबारों की हालत यह है कि वे देश की ही खबरें नहीं देते हैं विदेशों की क्या देंगे। ऐसे में तुलना करना भी मुश्किल है और मंत्री जी को चुनौती नहीं दी जा सकती है। पर भारत की स्थिति क्या अच्छी है और कैसे है यह तो पूछा ही जा सकता है।
दूसरे देशों में कोरोना से नौकरी जाने पर या कमाई बंद होने पर सरकार की ओर से नकद राशि दी गई है। यह राशि गरीबों को ही नहीं ठीक ठाक कमाने वालों को भी दी गई है, ठीक-ठाक राशि। भारत में गरीबों को जो राशि और राशन दिया गया है वह नगण्य है। दूसरी ओर कारखाना या कारोबार चलाने के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। कोई योजना नहीं है। विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार बोले चाहे जो, काम क्या किया है? कोई योजना, कोई तैयारी हो तो बताया जाना चाहिए। सिर्फ हवा-हवाई बातें करने का क्या मतलब है? वास्तविक स्थिति यह है कि सरकार समस्या को स्वीकार ही नहीं कर रही है। उसका हल क्या निकालेगी पर अखबारों में छप रहा है कि सब अच्छा है। काश अखबारों में हरा– हरा छपने से सब कुछ हरा हो जाता।