गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में पड़ी बच्चों की लाशें पत्थरदिल को भी बेचैन कर सकती हैं, लेकिन कोई खुलकर यह कहने को तैयार नही है कि गोरखपुर में मौत का तांडव ऑक्सीजन की कमी का नतीजा नहीं और ना यह कोई लापरवाही है। ऑक्सीजन की कमी अचानक नहीं हुई। 24 घंटे पहले ही अस्पताल प्रशासन को इसकी जानकारी हो गई थी। ज़िला प्रशासन भी जानता था। फिर भी मौतें हुईं है तो यह साफ़-साफ़ हत्याकांड है। शासन-प्रशासन ने मिलकर मानवबलि ली है। इसकी ज़िम्मेदारी सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की है जो आज भी गोरखपुर से सांसद हैं और वहाँ की समस्या को बेहद क़रीब से जानते हैं।
बेशर्मी की इंतेहा तो यह है कि योगी सरकार दावा कर रही है कि किसी की भी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई। मुख्य सचिव ही इस सरकारी दावे को रीट्वीट कर रहे हैं, लेकिन ख़ुद अस्पताल जो लिख रहा है उसमें कई बच्चों की मौत का कारण HIE लिखा गया है। इसका मतलब होता है कि बच्चे की मौत आक्सीजन की कमी से पैदा हुई समस्या से हुई।
(HIE :- Hypoxic-ischemic encephalopathy, or HIE, is the brain injury caused by oxygen deprivation to the brain, also commonly known as intrapartum asphyxia. The newborn’s body can compensate for brief periods of depleted oxygen, but if the asphyxia lasts too long, brain tissue is destroyed. Hypoxic-ischemic encephalopathy due to fetal or neonatal asphyxia is a leading cause of death or severe impairment among infants.)
और यह सिर्फ़ बच्चों का मामला नहीं है। हमारे सहयोगी गोरखपुर न्यूज़ लाइन ने बताया है कि कम से कम 18 वयस्कों की मौत भी इसी बीच हुई। उन्हें भी ऑक्सीजन नहीं मिल सका । वैकल्पिक मीडिया के रुप में तेज़ी से उभर रही यह वेबसाइट लिखती है-
‘ 48 घंटे में मेडिकल कालेज में 18 वयस्कों की मौत को छुपा गया प्रशासन
गोरखपुर, 12 अगस्त। बीआरडी मेडिकल कालेज में तीन दर्जन बच्चों की मौत तो हुई ही 24 घंटे में 10 वयस्कों की भी मौत हो गई। वयस्क मरीजों की मौत साबित करती हैं कि आक्सीजन सप्लाई की कमी ही इन मौतों के लिए जिम्मेदार है। प्रशासन द्वारा कही गई बातों और आंकड़ों में भारी फर्क है जिससे यह आशंका हो रही है कि मौतों को छुपाने का काम किया गया है।
गोरखपुर के डीएम राजीव रौतेला ने 11 अगस्त की रात आठ बजे प्रेस ब्रीफींग में नौ अगस्त को 12 बजे रात से 11 अगस्त की रात सात बजे तक 30 बच्चों की मौत को स्वीकार किया। इसमें 17 नवजात शिशुओं, आठ जनरल पीडिया के मरीजों और पांच इंफेलाइटिस से ग्रस्त मरीजों की मौत की बात स्वीकार की। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आक्सीजन की कमी से एक भी मरीज की मौत नहीं हुई।
उन्होंने यह भी कहा कि बीआरडी मेडिकल कालेज बड़ा अस्पताल है और यहां बड़ी संख्या में बच्चे भर्ती होते हैं। एईएस यानि कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से औसतन दस तथा नवजात शिशुओं की भी इतनी ही संख्या में मौत हो जाती है।
लेकिन बीआरडी मेडिकल कालेज के इस वर्ष के आंकड़े डीएम के दावे को झूठलाते हैं। इंसेफेलाइटिस से इस वर्ष 24 घंटे में अधिकतम मौत 5 है। इसी तरह नियोनेटल वार्ड में औसतन एक दिन की मौत पांच ही है। इस तरह से एक दिन में अधिकतम 10 से 15 के बीच ही मौतें हैं यदि अन्य बीमारियों से बच्चों की मौत का आंकड़ा भी जोड़ दिया जाए लेकिन यहां तो बकौल डीएम नौ तारीख की रात 12 बजे से 11 अगस्त की शाम सात बजे तक यानि 43 घंटों में 30 बच्चों की मौत हो गई। यही नहीं 18 वयस्को की भी मौत हो गई जिसका जिक्र ही नहीं किया गया। वार्ड संख्या 14 जो कि मेडिसीन विभाग के अन्तर्गत आता है, उसमें 10 अगस्त को 8 और 11 अगस्त को 10 लोगों की मौत हो गई। जिन लोगों की मौत हुई उनमें गोरखपुर के उमाशंकर, महराजगंज के रामकरन, गोरखपुर के रामनरेश, कुशीनगर के हीरालाल, देवरिया के अजय कमार, देवरिया की संकेशा, पूरन यादव, घनश्याम, इन्दू सिंह, विजय बहादुर आदि हैं।
खुद स्वास्थ्य विभाग ने जो आंकड़ा तैयार किया उसके अनुसार 10 और 11 अगस्त को एनआईसीयू यानि नियोनेटल इंटेसिव केयूर यूनिट में क्रमशः 14 और 3, इंसेफेलाइटिस से 3 और 2 तथा नान एईएस से 6 और 2 बच्चों की मौत हो गई। यानि 10 अगस्त को 23 और 11 अगस्त को 7 बच्चों की मौत हो गई। यहां हैरानी की बात यह है कि मीडिया ने जब मेडिकल कालेज प्रशासन ने 10 अगस्त को एईएस यानि कि इंसेफेलाइटिस से मौतों की जानकारी मांगी थी तो एक भी मौत न होने की बात कही गई थी। अब 10 अगस्त को इंसेफेलाइटिस से 3 मौतों की जानकारी दी जा रही है। यह आंकड़े ही तस्दीक करते हैं कि प्रशासन ने पिछले 24 घंटे में अत्यधिक मौतों को छुपाने के लिए उन्हें 48 घंटे में बांट दिया और सर्वाधिक मौतें 10 अगस्त में दर्ज कर लीं जब लिक्विड इंसेफेलाइटिस की आपूर्ति हो रही थी।
सचाई यह है कि 10 अगस्त की रात से 11 अगस्त की शाम तक ही सर्वाधिक मौतें हुई जब लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई ठप हो गई थी।”
लेकिन बेशर्मी की इंतेहा देखिए, सरकार मान ही नहीं रही है कि ऑक्सीजन की कमी हुई। अब जो सरकार मान ही नहीं रही है कि आक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई है, वह जाँच का ऐलान किस बात के लिए कर रही है ? क्या यह बीमारी को न पकड़ पाने का नतीजा है, क्या इसके लिए किसी डॉक्टर की समझ को दोषी दिया जा सकता है जिसने ग़लत दवा दी ? क्या ये मौतें दैवी आपदा में हुईं ? क्या भगवान ने ऑक्सीजन की कमी कर दी अचानक जिसे त्रिकालदर्शी योगीराज भी देख नहीं पाए ?
ऐसा कुछ भी नहीं था। अगर लिक्विड ऑक्सीजन की अबाध सप्लाई जारी रहती तो इतनी माँओं के आँचल सूने ना होते। ना इतने वयस्को की मौत होती। और अगर अबाध सप्लाई नहीं हो पाई तो ज़िम्मेदार और कोई नहीं योगी सरकार और उनका शासन-प्रशासन है। जो कंपनी गैस सप्लाई के पैसे माँग रही थी, उसे समय पर भुगतान करने से किसने रोका था ? यह फ़ाइल किस मेज़ पर और क्यों रुकी ?
यह स्वार्थ में डूबे हत्यारों का रचाया कांड है। यह खुलकर कहने का वक़्त आ गया है कि योगी आदित्यनाथ जी, गोरखपुर के मियाँ बाज़ार को मायाबाज़ार कराने की राजनीति से वोट तो मिल सकते हैं लेकिन वोटर के बच्चों की जान नहीं बचाई जा सकती। यह बात वोटर भी जितनी जल्दी समझ ले बेहतर है।
बर्बरीक