मनोज कुमार सिंह
अगस्त महीने के आखिरी हफ्ते में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कई अखबारों में बयान छपा कि इंसेफेलाइटिस से मौतों में भारी कमी आई है. इसके बाद कई अखबारों ने विभिन्न स्रोतों से खबर छापी कि सरकार के प्रयासों से बीआरडी मेडिकल कालेज में इंसेफेलाइटिस से मौतों की संख्या काफी कम हो गई है। स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने भी दावा किया कि इंसेफेलाइटिस से मौतों में कमी आई है.
दैनिक जागरण में लखनऊ से 26 अगस्त को प्रकाशित खबर में मुख्यमंत्री के हवाले से यह खबर छपी कि इंसेफेलाइटिस से पिछले वर्ष 200 मौतों के मुकाबले इस बार मौतें 10 से भी कम है. टाइम्स आफ इंडिया में 31 अगस्त को छपी खबर में बताया गया कि इंसेफेलाइटिस से मौतों में 50 फीसदी की कमी आई है. बीआरडी मेडिकल कालेज के चिकित्सा अधीक्षक के हवाले से इस खबर में बताया गया था कि ‘पिछले वर्ष जनवरी से अगस्त महीने तक 183 बच्चों की मौत हुई थी जबकि इस वर्ष इसी अवधि में 88 बच्चों की ही मौत हुई है. इस खबर में यह भी कहा गया था कि अगस्त महीने में पिछले वर्ष 80 बच्चों की मौत हुई थी जबकि इस वर्ष अगस्त माह में सिर्फ 6 बच्चों की मौत हुई है. ’
सबसे पहले हम बीआरडी मेडिकल कालेज के आंकड़ों की बात करते हैं. समाचार पत्रों में बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य और नेहरू चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक के हवाले से आंकड़े दिए गए थे कि इंसेफेलाइटिस से मौतें 50 फीसदी कम हो गई हैं.
इन दावों के समर्थन में बीआरडी मेडिकल कालेज ने विस्तृत आंकड़े नहीं दिए जिससे उसके दावों की पड़ताल हो सके लेकिन गोरखपुर न्यूज लाइन ने विश्वस्त सूत्रों से जो आंकड़ें प्राप्त किए हैं उसके अनुसार इंसेफेलाइटिस से मौतों के आंकड़ों में 50 फीसदी की कमी का दावा गलत है. पिछले वर्ष अगस्त माह तक बीआरडी मेडिकल कालेज में 182 लोगों की मौत हुई थी जबकि इस वर्ष इस अवधि में 135 की मौत हुई है. इस तरह वर्ष 2017 के मुकाबले अभी तक इंसेफेलाइटिस से मौतों में 47 की कमी है.
यह स्पष्ट नहीं है कि बीआरडी मेडिकल कालेज ने अपने आंकड़ों में बिहार के मरीजों का आंकड़ा भी शामिल किया है या नहीं.
बीआरडी मेडिकल कालेज अपने यहां आने वाले सभी मरीजों का आंकड़ा तैयार करता है. बीआरडी मेडिकल कालेज में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक दर्जन जिलों-गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर,देवरिया, बस्ती,सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बलरामपुर, गोंडा, मउ, गाजीपुर आदि के अलावा पश्चिमी बिहार के आधा दर्जन जिलों-पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, सीवान, गोपालगंज, छपरा आदि स्थानों के मरीज इलाज के लिए आते हैं. नेपाल से भी इक्का-दुक्का मरीज इलाज के लिए यहां आते हैं.
अब बीआरडी मेडिकल कालेज अपने यहां आने वाले बिहार के मरीजों के आंकड़े अलग कर प्रस्तुत कर रहा है जबकि पिछले वर्ष के आंकड़ों में बिहार के मरीज भी आंकड़े में सम्मिलित हैं. इस तरह से भी इंसेफेलाइटिस केस और मौतों को कम दिखाने की कोशिश हो रही है.
इंसेफेलाइटिस के आंकड़ों की सही तुलना के लिए जरूरी है कि इसे तीन स्तरों पर देखा जाय. पहला बीआरडी मेडिकल कालेज के स्तर पर, दूसरा उत्तर प्रदेश के स्तर पर और तीसरा राष्ट्रीय स्तर पर. तीनों स्तर पर आंकड़ों के विश्लेषण से ही सही तस्वीर सामने आती है.
प्रदेश सरकार यदि इंसेफेलाइटिस से मौतों में कमी आने का दावा कर रही है तो उसे पिछले पांच वर्षों का अगस्त महीने तक का बीआरडी मेडिकल कालेज में मरीजों की संख्या और मौतें तथा उत्तर प्रदेश में मरीजों की संख्या और मौतों की रिपोर्ट जारी करनी चाहिए.
मौतें कम तो मृत्यु दर 13 फीसदी बढ़कर 36 फीसदी कैसे हो गई
बीआरडी मेडिकल कालेज के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो इस वर्ष इंसेफेलाइटिस रोगियों की संख्या पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग आधी है जबकि मौतों में 40 की कमी है लेकिन हैरतअंगेज बात यह है कि मृत्यु दर पिछले वर्ष के मुकाबले 12 फीसदी बढ़ते हुए 35 फीसदी तक पहुंच गई है.
बीआरडी मेडिकल कालेज में इंसेफेलाइटिस केस का आधे से कम होना लेकिन मृत्यु दर 12 फीसदी का बढना इसलिए भी हैरतअंगेज है कि इस बार बीआरडी मेडिकल कालेज में इंसेफेलाइटिस के इलाज की सुविधाएं बढ़ गई हैं. बच्चों के लिए पिछले वर्ष तक 228 बेड थे जिसमें इस वर्ष 200 और बेड का इजाफा हुआ है. वेंटीलेटर भी बढ़ाए गए हैं. बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन के दावे पर भरोसा करें तो इलाज के लिए चिकित्सक भी पर्याप्त संख्या में हैं फिर मृत्यु दर कैसे बढ़ गई है ?
गोरखपुर और आस-पास के जिलों में 1978 से इंसेफेलाइटिस का प्रकोप है. विगत 40 वर्षों में कभी भी इस तरह के आंकड़ें नहीं आए हैं जिसमें इंसेफेलाइटिस के रोगियों की संख्या काफी कम हो लेकिन मौतें उसकी तुलना में अधिक हों. मृत्यु दर भी 30 फीसदी से अधिक नहीं रहा है. इससे गोरखपुर में दबी जुबान में चल रही चर्चाओं को बल मिल रहा है कि बीआरडी मेडिकल कालेज इंसेफेलाइटिस के आंकड़ों में फेरबदल कर रहा है.
ऐसा पहले भी हो चुका है. वर्ष 2015 में बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन पर आरोप लगा था कि उसने इंसेफेलाइटिस केस कम करने के लिए 500 मरीजों को एईएस नम्बर ही नहीं आवंटित किए और इन इंसेफेलाइटिस मरीजों को दूसरी बीमारियां लिख दी गईं. यही कारण है कि बीआरडी मेडिकल कालेज में एक दशक के आंकड़ों के बरक्स वर्ष 2015 में अचानक इंसेफेलाइटिस के केस और मौतों के ग्राफ में गिरावट दिखती है लेकिन फिर 2016, 2017 में इंसेफेलाइटिस के केस और मौतों के ग्राफ बढ़ने लगते हैं.
अब सवाल यही उठ रहा है कि बीआरडी मेडिकल कालेज फिर से 2015 वाली कहानी तो नहीं दुहरा रहा है ?
बीआरडी मेडिकल कालेज ने 10 महीने से इंसेफेलाइटिस के आंकड़े जारी करने पर लगा रखी है अघोषित रोक
10 अगस्त 2017 के आक्सीजन कांड के पहले बीआरडी मेडिकल कालेज इंसेफेलाइटिस के केस और मौतों के आंकड़े हर रोज मीडिया को उपलब्ध कराता था. आक्सीजन कांड के कुछ दिन बाद तक भी मीडिया को आंकड़े दिए जाते रहे लेकिन सितम्बर 2017 में बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन द्वारा यह कहा गया कि इंसेफेलाइटिस के बारे में अब अधिकृत जानकारी जिला सूचना कार्यालय से दी जाएगी. गोरखपुर का जिला सूचना कार्यालय अक्टूबर 2017 के आखिरी हफ्ते तक मीडिया के दफ्तरों में ईमेल के जरिए इंसेफेलाइटिस का रोज अपडेट जारी करता रहा. लेकिन अचानक इंसेफेलाइटिस के अपडेट जारी होने बंद हो गए. इस बारे में पूछे जाने कहा गया कि ‘ उपर ’ से अपडेट देने से मना किया गया है.
उधर बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन ने भी इंसेफेलाइटिस का अपडेट देना बंद कर दिया. इसके बावजूद कुछ दिन तक मीडिया को कुछ स्रोतों से इंसेफेलाइटिस के आंकड़ों की जानकारी मिलती रही. तब बीआरडी प्रशासन ने मीडिया को आंकड़े देने के शक में कई कर्मचारियों का तबादला भी कर दिया.
बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन ने बाद में यहा कहा कि इंसेफेलाइटिस के बारे में पीआरओ जानकारी देंगे लेकिन उन्होंने कभी भी इस बारे में जानकारी नहीं दी. इस बारे में पूछे जाने पर प्राचार्य, पीआरओ या चिकित्सा अधीक्षक द्वारा अक्सर गोलमोल जवाब ही दिया जाता है. यह भी कहा गया कि मीडिया आंकड़ों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सनसनी फैलाता है.
एनवीबीडीसीपी के आंकड़े: पहले सात महीनों में 118 मौतें बतायीं फिर अगस्त में कहा 110 मौतें ही हुईं
नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम ( एनवीबीडीसीपी) राष्ट्रीय स्तर पर इंसेफेलाइटिस के आंकड़े जारी करता है. इन आंकड़ों में एईएस और जेई के अलग-अलग राज्यवार आंकड़े होते हैं. अमूमन ये आंकड़े हर महीने अपडेट होते हैं. ये आंकड़े राज्यों द्वारा एनवीबीडीसीपी को भेजे जाते हैं. एनवीबीडीसीपी ने 31 अगस्त 2018 तक जो आंकड़े जारी किए हैं उसमें यूपी में 31 जुलाई 2018 के मुकाबले मौतों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से कम बता दी गई है. ऐसा सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही हुआ है. भला यह कैसे हो सकता है कि 31 जुलाई 2018 तक यूपी में एईएस से मौतों की संख्या 118 से घटकर अगस्त 2018 तक 110 हो जाय ?
एनवीबीडीसीपी ने इन आंकड़ों में दिखाया है कि 31 जुलाई 2018 तक यूपी में एईएस के 1299 केस आए जिसमें से 118 की मौत हो गई. इस अवधि में जेई यानि जापानी इंसेफेलाइटिस के 75 केस आए जिसमें 6 की मौत हो गई. अब अगस्त के आंकड़ों में दिखाया गया है कि एईएस के 1545 केस आए जिसमें से 110 की मौत हो गई जबकि जापानी इंसेफेलाइटिस के 90 केस और 3 डेथ रिपोर्ट हुए.
आंकड़ों में यह फेरबदल क्यों और कैसे हुआ, एनवीडीसीपी की वेबसाइट में कोई स्पष्टीकरण नहीं है.
मनोज कुमार सिंह, गोरखपुर न्यूज़ लाइन के संपादक हैं।