संघ के अमोघ अस्त्र हैं योगी, लेकिन पीठासीन महंत का मुख्यमंत्री होना असंवैधानिक !

रामशरण जोशी

संघ परिवार ने अपनी  सांस्कृतिक-राजनीतिक ज़मीन पर योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के आला वजीर के रूप में पासा फेंक कर एक साथ कई दूरगामी सन्देश इस आधुनिक राष्ट्र राज्य भारत को दिए हैं. पहला स्पष्ट  सन्देश तो यह है कि संघ और उसका राजनीतिक कवच सत्तारूढ़ ‘भारतीय जनता पार्टी’ देश पर एक छत्र राज के लिए सिर्फ ‘ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण’ के अमोघ शस्त्र का इस्तेमाल २०१९ के आम चुनावों में करेगी. संघ परिवार की महत्वाकांक्षा सवा अरब के राष्ट्र भारत को अन्तोगत्वा ‘ हिन्दू राष्ट्र ’ में परिवर्तित देखने की है.राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दूसरे संघचालक एम.एस. गोलवलकर उर्फ़  ‘गुरूजी’ की प्रसिद्ध पुस्तक ‘ बंच ऑफ़ थॉट्स ‘ पढने से स्पष्ट है कि उन्होंने स्वतंत्र भारत की लोकतान्त्रिक संरचना को तहे दिल से स्वीकार नहीं किया है. उनके लिए राजशाही, लोकतंत्र से कहीं अधिक लाभकारी रही है.हजारों वर्ष तक. राजशाही  लोगों के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुख-शांति-समृद्धि  की वर्षा करती रही है.पश्चिम  की क्रांतियाँ व लोकतंत्र रक्तरंजित व विघटनकारी रहे हैं.लोकतंत्र का विकृतरूप चुनावों के दौरान देखने को मिलता है.(पृष्ठ २६; बंच ऑफ़ थॉट्स)

ज़ाहिर है, इस चिंतन की पृष्ठभूमि में देश का वर्तमान संवैधानिक स्वरुप भी इस परिवार को रास कैसे  आसकता  है! देश का संविधान धर्मनिरपेक्षता  या पंथनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध है. संविधान  के प्रारम्भ में ही संकल्प लिया गया है कि  “हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न ,समाजवादी पंथनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य” बनाने के लिए समर्पित हैं. इसका सीधा अर्थ है कि देश के पोलिटिकल एग्ज़ीक्यूटिव पदों पर ऐसे व्यक्ति बैठेगें जो पूर्णरूपेण धर्म व पंथ निरपेक्ष हों व रहें. क्या हम योगीजी से मुख्यमंत्री पद पर संविधान सम्मत न्यायोचित व्यवहार करने की उम्मीद कर सकते हैं? यह सर्वविदित है कि वे मूलतः एक प्राचीन व प्रतिष्ठित पीठ के महंत या मुखिया हैं. क्या वे दोनों भूमिकाओं के साथ न्याय कर सकते हैं ? उनकी नियुक्ति संविधान की भावनाओं का उल्लंघन है.वे लम्बे समय से विवादित रहे हैं.विगत में अल्पसंख्यकों के प्रति उनका रवैया  संविधान की धज्जियाँ उड़ाता रहा है.उनके आचार-विचार-व्यवहार में आधुनिक भारत झलकता नहीं है.वे तर्कशील भारत के प्रतिगामी लगते हैं.आज के हिन्दुस्तानी नागरिक को अपने राजनितिक शासकों से  वैज्ञानिक यानि तर्कशील-विवेशील-विश्लेषणशील मानस की अपेक्षा है.योगीजी की कार्यशैली से अवैज्ञानिकता व धर्मनिरपेक्षता विरोधी विचारों को ही अधिक  बल मिलेगा, इसके खतरे दिखाई दे रहे हैं.

वास्तव में संघ  परिवार को ऐसा भारत चाहिए जिसकी सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक-राजनीतिक आधारशिला विशुद्ध भारतीय ईथोस रहे.यह तभी संभव है जब संसद व विधान सभाओं में उसके कवच उर्फ़ बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिले.हिन्दुत्व के नाम पर कश्मीर से कन्याकुमारी और कटक से कच्छ तक हिन्दुजन एक ध्वज तले संगठित हो जाएँ, धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र के परचम को थामनेवाले विरोधी दल हिन्दुओं के बेक लैश में छिन्न-भिन्न हो जाएँ-इस विराट स्वप्न को साकार करने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. इसलिए धार्मिक प्रतीकवाद का भरपूर्व प्रयोग वे कर रहे हैं. मिथकीय रूपकों,विवादस्पद पुरातत्व स्थलों,धार्मिक अनुष्ठानों-कर्मकांडों ,रंगों आदि के शस्त्र हिन्दू मन-मानस पर निर्णायक विजय के लिए बारी बारी से चलाते रहते हैं। योगी जी मुख्यमंत्री के साथ साथ महंत की भूमिका भी निभाते हैं;अपने निवास व कार्यालय को केसरिया रंग से पुतवाना; अयोध्या व बनारस के घाटों (सरयू व गंगा) को लाखों दीपों से सजाना; विभिन धार्मिक स्थलों  की यात्राएँ; ताजमहल को सांप्रदायिक विवादों से घेरना आदि .

दूसरा प्रमुख कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के विकल्प के तौर पर एक धार्मिक व्यक्ति को खड़ा करना. लोगों के मन-मस्तिष्क को महंत द्वारा कब्ज़ा करना.मोदीजी की छवि मंद मंद उतार पर है. इसलिए यह और भी ज़रूरी है कि एक अचूक तीर तैयार रहे. इसलिए उन्हें हिमाचल-गुजरात के हिन्दू मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव प्रचार में गाजे-बाजे के साथ उतारा गया. योगी जी के नाम पर उत्तर व पश्चिम भारत की हिन्दू जनता एकजुट रहे, इसलिए योगीजी की चुनाव उपस्थिति ग़ौरतलब है.

वास्तव में, योगीजी एक प्रकार से संघ की ‘चल-अचल प्रयोगशाला’ हैं. बहुसंख्यक समुदाय किस सीमा तक योगीजी के प्रभाव को स्वीकार करता है, संघ परिवार यह देखना चाहता है. हम कुछ भी मानें, धर्म ध्वज के प्रतीक हैं योगीजी, जबकि मोदीजी विशुद्ध राजनीतिक नेता.इसलिए ज़रूरत पड़ने पर मोदीजी को तिलांजलि दे कर योगीजी को विकल्प के रूप में पेश करने में संघ हिचकेगा नहीं.

तीसरी बात यह भी है कि मोदी-शाह जोड़ी का कॉर्पोरेट पूँजी से गहरा नाता माना जाता है.राजनीतिक व संघ क्षेत्रों में दोनों को अम्बानी-अडानी का प्रतिनिधि माना जाता है.मोदीजी व वित्तमंत्री अरुण जेतली की वित्तीय नीतियां भी स्वेदेशी जागरण के कार्यक्रमों से मेल नहीं खाती हैं. संघ हमेशा से राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग का समर्थक रहा है, लेकिन मोदी-शाह-जेतली तिगड्डा बहु राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग को कम-अधिक महत्त्व देता है. संघ का एक बड़ा समर्थक वर्ग इससे नाराज़ है, विशेष रूप से  रिटेल व्यापारी. योगी आदित्यनाथ इस समीकरण को बदल सकते हैं। कॉर्पोरेट पूँजी पर निर्भरता कर करने की बात  भी उठती है. तो संघ योगीजी पर दाव खेल सकता है.

असल में, संघ  सहस्त्रामुखी है; तिगड्डा आधुनिक है जबकि योगी-तोगड़िया-साक्षी महाराज-उमा भारती मंडली रंगबिरंगी है; मध्ययुगीनता व आधुनिकता के चरणामृत का वितरण होता है; साधू-संतों का अखाड़ा और विवेकानंद थिंक टैंक का वैचारिक अमृत साथ-साथ हैं. सारांश में, संघ परिवार कल+आज+कल के संगम पर खड़ा है.ज़रुरत के मुताबिक वह अपने शस्त्र चलाता रहता है और जनता बावली भावुकता में घायल होती रहती है. भूख-प्यास-बेरोज़गारी-बेघर -शिक्षा-स्वास्थ्य से फिक्रमंद हुए बगैर धर्म की गदा से घायल होती रहती है. .विरोधाभासी स्वरों व कृत्यों के बावजूद इन सभी की धमनियों में धार्मिक-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का रक्त प्रभावित होता है..इसलिए महंत उर्फ़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हलके में खारिज करना सरासर अदूरदर्शिता होगी. संघ परिवार की दूरगामी रणनीति के  महत्वपूर्ण अंग हैं योगी आदित्यनाथ जी, उर्फ़ मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश. संविधान की भावना जो भी हो.

(रामशरण जोशी जाने-माने प्रतिबद्ध पत्रकार व समाज चिन्तक हैं।  )



 

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