इस साल जून में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) कानून को बदलने के लिए भारतीय उच्च शिक्षा बिल, 2018 नाम का एक मसविदा विधेयक पेश किया था। इसके तहत केंद्र उच्च शिक्षा आयोग स्थापित करने की मंशा रखता है जो देश भर के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षण का काम देखेगा। इससे मोटे तौर पर देश में विश्वविद्यालयों के परिचालन का तरीका बदल जाएगा।
इस घटनाक्रम से बार काउंसिल ऑफ इंडिया असंतुष्ट है जो देश में विधिक शिक्षण को नियामित करता है। माना जा रहा है कि नया विधेयक एडवोकेट कानून, 1961 के तहत बार इकाइयों को दिए गए कार्यभारों को छीन लेगा।
मसविदा विधेयक की धारा 15 के अंतर्गत उच्च शिक्षा आयोग को अकादमिक निर्देशों और अकादमिक मानकों को बनाए रखने संबंधी कदम उठाने का काम दिया जाएगा। आयोग का काम नए विश्वविद्यालयों को मान्यता देने संबंधी मानक भी तय करेगा। इसके बावजूद बिल कहता है कि वह अदालतों में कामकाज के सिलसिले में उच्च विधिक शिक्षा के मानकों के संबंध में बार काउंसिल की ताकत में दखल नहीं देगा।
इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि उच्च शिक्षा आयोग और बार काउंसिल एक साथ मिलकर कैसे काम करेंगे। इसी संबंध में बीसीआइ के चेयरमैन मनन कुमार मिश्र ने कहा है कि बार काउंसिल विधेयक का विरोध करेगा।
बार एंड बेंच को दिए बयान में मिश्र ने कहा है, ”देश की समूची शिक्षा प्रणाली कुछ नामांकित लोगों और मुट्ठी भर शिक्षकों (जो सरकार में बैठे कुछ नौकरशाहों के करीबी होंगे) द्वारा नियंत्रित और नियामित नहीं की जा सकती।”
मिश्र का कहना है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस मसले पर बार काउंसिल के साथ परामर्श नहीं किया है। उनका कहना है कि पहले भी बीसीआइ की ताकत से छेड़छाड़ की कोशिश की गई थी। 2011 में कांग्रेस सरकार ने ऐसा ही एक विधेयक पास किया था।
इस संबंध में बार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मंत्रालय दोनों को विरोध में पत्र भेजा है। जल्द ही इस संबंध में राज्यों की बार काउंसिलों और बार असोसिएशनों की एक संयुक्त बैठक होगी।
विधेयक का मसविदा नीचे पढ़ा जा सकता है:
Higher-Education-Draft-Bill-2018
यह खबर बार एंड बेंच से साभार प्रकाशित है