ये डेटा डेटा क्या है? डेटा लीक क्या है? डेटा लीक के पीछे क्या है?

चन्द्र प्रकाश झा 


यह सूचना का युग है। सूचना ही ज्ञान है। पुरानी कहावत कि ज्ञान ही ताकत है। इस उत्तर -आधुनिक युग में इंटरनेट की दुनिया में भारत अभी नाबालिग है। जो देश आगे हैं वहां लोग इंटरनेट पर उपलब्ध डाटा के इस्तेमाल के तरीके जानते हैं और अपनी निजता के संविधान -सम्मत बुनियादी अधिकारों को लेकर संवेदनशील हैं। भारत की स्थिति अलग है। इस देश में नेताओं की शिक्षा, डिग्री और सम्पत्ति से लेकर वैवाहिक स्थिति तक की जानकारी दशकों तक छिपी रख ली जाती है।अमेरिकी नागरिकों की जागरुकता , अपने नेताओं को ऐसा करने से रोकती रही है। वो जानते हैं कि डाटा का इस्तेमाल जनमत और चुनाव प्रभावित करने के लिए किया जाता है जो लोकतंत्र के साथ ठगी है .अमेरिका में पहले भी सरकारी स्तर और खुफिया तरीकों से नागरिकों की जानकारी इकट्ठा किये जाने का ज़बरदस्त विरोध होता रहा है।

मानव सभ्यता ने निजता (प्राइवेसी) की अवधारणा की खोज की है। व्यक्ति की निजता, परिवार की निजता, समुदाय की निजता , विकास के हर चरण में निजता की इस अवधारणा को सुरक्षित बनाए रखने की जरूरत महसूस की गई। व्दितीय विश्व युद्ध के समय दुनिया भर में स्वतंत्रता की एक ऩई चेतना । संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में जो मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी किया उसमें निजता को मानवाधिकार के रूप में कानूनी स्तर पर मान्यता मिली। संयुक्त राष्ट्र के इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले भारत समेत सभी देशों अपने नागरिकों के साथ करार है कि नागरिकों की निजता की न केवल सुरक्षा करेंगे बल्कि उसमें दखलंदाजी को मानवाधिकार के उल्लंघन मानेंगे।

हर व्यक्ति सोशल मीडिया पर मौजूदगी चाहता है। लोगों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिए फेसबुक सबसे आसान और सशक्त माध्यम हो चुका है। लोग , सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों , फेसबुक, ट्विटर , ब्लॉग आदि के जरिए जो आपसी संवाद करते हैं वह जन-संचार से अधिक स्व-संचार माना जाता है। हमें पता ही नहीं होता है कि हम किससे संचार कर रहे हैं। हम जो भी बातें लिख या कह रहे हैं उसे कोई पढ़ -देख -सुन भी रहा हैं।

केम्ब्रिज एनलिटिका सरीखी ‘ डाटा माइनिंग ‘ करने वाली अनेक कम्पनिया सोशल मीडिया पर सक्रीय लोगों पर नजर गाड़े रखती है. ऐसी कम्पनिया इसकी विश्लेषण -परक रिपोर्ट , धन देकर उनकी सेवाएं लेने वालों को प्रदान करती है। यह माना जा रहा है कि सोशल मीडिया , मतदाता के चुनावी व्यवहार को बहुत प्रभावित करता है।

फेसबुक अब उसके प्रयोगकर्ताओं तक ही सीमित नहीं रह गया है। बल्कि यह किसी भी व्‍यक्ति के चरित्र को चरितार्थ कर रहा है। कहते है लोग जानकारी और विचारों के लिए जनसंचार के प्रत्यक्ष किसी स्रोत पर कम ही निर्भर रहते हैं। उन्हें कोई खबर मिलती है तो वे उस पर सहज विश्वास नही करते। वे चाहते है कि कोई उसकी पुष्टी कर दे। ऐसा अक्सर सरकारी नीतियों , योजनाओं , वादों के मामलों में देखने को मिलता है। लोग अपनी ही जानकारी , समाज के किसी और व्यक्ति से पुष्टी कराना चाहते हैं . जो भी यह पुष्टी करता है वह व्यक्ति ‘ ओपिनियन लीडर ‘ बन जाता है जिसकी बात कई बार मानी जाती है. इसे टू स्टेप थ्योरी कहते हैं.

आज के दौर में जब फेसबुक इतना महत्वपूर्ण हो गया है तो राजनीतिक दल उसका भरपूर इस्तेमाल करना चाहते हैं।उनका मकसद ,फेसबुक के माध्यम से इन ओपिनियन लीडर्स तक पहुंचना होता है. इसीलिए भाड़े पर हज़ार लोगो का ‘ आईटी सेल ‘ बनाना भी राजनीतिक दलों को बेहतर लगता है ताकि वे समाज मे अपनी विचारधारा को आसानी से फैला सके। ब्रिटेन की कंसल्टेटिंग कंपनी , कैम्ब्रिज एनलिटिका जैसी डाटा माइनिंग कम्पनिया परामर्श देती हैं कि लोगों का ध्यान कौन तरीके से कब , किस दिशा में मोड़ना ज्यादा कारगर होता है।

कैम्ब्रिज एनालिटिका पर भारत में फेसबुक के प्रयोगकर्ता के डेटा का दुरुपयोग करने के मामले में केंद्र में सत्तारूढ़ , राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेतृत्व कर रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी ) और कांग्रेस ने एक -दूसरे पर चुनावों में इस कंपनी की सेवा लेने का आरोप लगाया है।

फेसबुक डेटा लीक काण्ड पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बोले कि यह खाड़ी में 39 भारतीयों की मौत से ध्यान हटाने के लिए सरकार की चाल है। उन्होंने ट्वीट किया कि इराक में 39 भारतीयों की मौत से ध्यान हटाने के लिए डेटा लीक की यह कहानी है.उनका ट्वीट है , ” परेशानी-39 भारतीयों की मौत, सरकार का झूठ पकड़ा गया. समाधान-कांग्रेस और डेटा लीक की झूठी कहानी बनाओ. नतीजा-39 भारतीयों की मौत से ध्यान हट जाएगा. मुद्दा खत्म “.

केंद्रीय रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया कि कांग्रेस चुनाव में कैंब्रिज एनेलिटिका की सेवाएं लेना चाह रही थी. कांग्रेस नेता सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने 2010 के बिहार चुनाव में इस कंपनी की सेवाएं ली थी।

जेडीयू के नेता के.सी. त्यागी के पुत्र अमरीश त्यागी , गाज़ियाबाद में एवेलेनो बिज़नेस इंटेलिजेंस चलाते हैं जो एससीएल लंदन का हिस्सा है। एससीएल ही कैंब्रिज एनेलिटिका की मूल कंपनी भी है। अमरीश की कंपनी , एससीएल और कैंब्रिज एनेलिटिका से अपने संबंध तो स्वीकार करती है लेकिन फेसबुक के साथ सांठगांठ से इनकार करती है।

भारत सरकार ने फेसबुक और उसके सीईओ मार्क जुकरबर्ग को चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए डेटा का दुरुपयोग करने को लेकर सख्त कार्रवाई करने की चेतावनी दी है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा फेसबुक समेत सोशल मीडिया द्वारा अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से अवांछित साधनों के जरिए भारत की चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के किसी भी प्रयास बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. रविशंकर प्रसाद ने चेतावनी दी, “हम भारतीय यूजर्स के डेटा की चोरी का आकलन करने के लिए कंपनी और फेसबुक को तलब करेंगे और सख्त कार्रवाई करेंगे.

इसके बाद फेसबुक ने स्वीकार किया है कि करीब 2,70,000 लोगों ने एप डाउनलोड किया और उन्होंने उसपर अपनी निजी जानकारी साझा की. लेकिन कंपनी ने किसी तरह की गड़बड़ी से इंकार किया और कहा कि कंपनी डेटा हासिल करने और उसके इस्तेमाल में सही प्रक्रियाओं का
पालन करती है.

बीजेपी के आईटी सेल के पूर्व कर्मचारी ने भी इसकी पोल खोली थी. उसने दावा किया था कि बीजेपी के पास 2019 केचुनाव के लिए इतना फेसबुक कंटेंट है कि आराम से सांप्रदायिक उन्माद फैलाया जा सकता है. इसके साथ ही एक और खबर सामने आई थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फॉलो करने वाले 60 प्रतिशत फर्जी अकाउंट हैं.

ग्वालियर के सोशल मीडिया एक्टिविस्ट गिरीश मालवीय के अनुसार कैंब्रिज एनिलिटिका एक ब्रिटिश कंपनी है। कंपनी के मालिक रॉबर्ट मर्सर , अमेरिकी के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के दानदाता हैं। इल्जाम है कि कंपनी ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में
रिपब्लिकन पार्टी को अमेरिकी जनता का डेटा गैर- कानूनी ढंग से दी । इल्जाम है कि कंपनी ने ब्रिटेन की जनता को , यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने के लिए भी उकसाया था। कैंब्रिज एनेलिटिका में काम करनेवाले 28 साल के क्रिस्टोफर विली ने खुलासा किया कि कंपनी ने 5 करोड़ अमेरिकियों का फेसबुक डाटा एक्सेस करके इस तरह डिज़ाइन किया कि लोगों का ब्रेनवॉश हो और वोटर्स , ट्रंप के पक्ष में वोटिंग करने लगें। लोगों को ट्रंप से जुड़े पॉजिटिव विज्ञापन खूब दिखाए गए। फेसबुक कहता रहा है कि वो किसी ऐप्लीकेशन को बहुत कम डाटा एक्सेस करने देता है। लेकिन इस बार आरोप है कि फेसबुक ने जानबूझकर कैंब्रिज एनेलिटिका को ज़्यादा डाटा इकट्ठा करने दिया। 2014 से कैंब्रिज में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ एलेक्ज़ेंडर कोगान को कैंब्रिज एनालिटिका ने 8 लाख डॉलर दिए। उन्हें ऐप्लीकेशन डेवलप करने का काम दिया गया जो फेसबुक यूज़र्स का डाटा निकाल सके।

उन्होंने जो ऐप बनाई उसका नाम था ” दिस इज़ योर डिजिटल लाइफ “. 2. 70 लाख लोगों ने इस ऐप को डाउनलोड किया बिना जाने कि जिस ऐप को वो डाटा एक्सेस करने दे रहे हैं वो दरअसल इस डाटा का इस्तेमाल क्या, कहां और किसके लिए करेगी। कोगन ने सारा डाटा कैंब्रिज एनेलिटिका को बेच दिया। कैंब्रिज एनेलिटिका ने इस सारे आंकड़े के आधार पर लोगों की मनोविज्ञान प्रोफाइल तैयार कर ली। आरोप है कि इन्हीं 5 करोड़ प्रोफाइल्स को फोकस करके डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी प्रचार अभियान की योजना बनाई गई। जब कैंब्रिज एनेलिटिका की हरकतें पकड़ में आईं तो उसने डोनाल्ड ट्रंप को बचाने के लिए अपने कागज़ातों में ऐसे हेरफेर किया कि पड़ताल में निष्कर्ष कुछ ऐसा निकले कि सारा डाटा रूस की मदद से इकट्ठा किया गया है।

अगर अमेरिका में यह संभव है तो भारत तो ऐसे डाटा चोरी के लिए खुला पड़ा हुआ है। फेसबुक के सबसे ज्यादा करीबन 20 करोड़ से अधिक यूजर भारत मे ही हैं ओर सबसे बड़ी बात तो यह हैं कि कि भारत में फेसबुक के 50 फीसदी से ज्यादा यूजर्स की उम्र 25 साल से कम है। मुसीबत में फंसे फेसबुक ने कहा है कि 2015 में ही उन्होंने इस ऐप को हटा दिया था। उसने ये भी कहा कि ऐप को अपना एक्सेस लोगों ने खुद दिया. वैसे फेसबुक के शेयरों का नुकसान पहुंचा है। ज़ुकरबर्ग ने दो हफ्ते पहले ही 11.4 लाख शेयर बेचे थे। इससे पहले भी फेसबुक सबको इंटरनेट देने के नाम पर इंटरनेट को कंट्रोल करने की साज़िश रच चुका है। दक्षिण कोरिया में तो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर 39.6 करोड़ वॉन का जुर्माना लगा है। कंपनी पर ये जुर्माना यूजर्स के लिए सेवाओं की उपलब्धता सीमित करने के लिए लगाया गया है। फेसबुक ने लोगों को मिलनेवाली इंटरनेट स्पीड धीमी कर दी थी।

दुनियाभर में फेसबुक के खिलाफ गुस्सा है और जमकर अभियान चल रहा है। वॉट्सएप के सह- संस्थापक ब्रायन एक्टन ने ट्वीट किया कि लोग फेसबुक को डिलीट कर दें। वॉट्सएप , वही है जिसे फेसबुक ने हाल ही में खरीदा था। अमेरिका और यूरोपीय सांसदों ने तो फेसबुक से जवाब मांगा है और उसके सीईओ मार्क जुकरबर्ग को पेश होने के लिए कहा है। अमेरिका में उपभोक्ता एवं प्रतिस्पर्धा संघीय व्यापार आयोग भी जांच शुरू करने जा रहा है। वहां भी कांग्रेस जुकरबर्ग को तलब करने वाली है.

फेसबुक के सबसे ज़्यादा ग्राहक भारत में हैं। गूगल के साथ फेसबुक मिलकर अब एक ट्रिलियन डॉलर यानि 65 लाख करोड़ रुपए की कंपनी होने जा रही हैं। ये इतना पैसा है कि कई देशों की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दे। कांग्रेस और भाजपा नेताओं के आरोपों से साफ है कि इन दोनों ही पार्टियों ने फेसबुक और कैंब्रिज एनेलिटिका जैसे एजेंसियों से खुलकर या छिपकर हाथ तो मिलाए हैं। दोनों ही पार्टियां डिजिटल स्पेस पर कब्ज़े के लिए आईटी सेल्स खोलकर सेनाएं तैयार कर रही हैं। फिलहाल भारत के नेता फेसबुक को बचाते दिख रहे हैं। फेसबुक इतनी भारी -भरकम कंपनी बन चुकी है कि सरकारें और पार्टियां उसके भारी दबाव में हैं।ओड़ीशा के साथ फेसबुक ने मिलकर महिलाओं को उद्यमी बनाने की योजना शुरू की है। वह आंध्र में सरकार के साथ डिजिटल फाइबर प्रोजेक्ट चला रही है। केंद्रीय मंत्री किरण रिजीजू तो आपदा प्रबंधन के मामले में फेसबुक के गले में हाथ डाले खड़े हैं।व्यापारी कुछ भी मुफ्त में नहीं देता। ये सिर्फ भारत की जनता के बीच छवि निर्माण का इन कंपनियां का तरीका है ।सरकारों के कामकाज में घुसने की रणनीति है। भारत तो बस एक नया मैदान है।

” जन मीडिया ” शोध- पत्रिका के मार्च अंक में ब्रिटिश लेखक -पत्रकार एलेक्स प्रेस्टन के वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत और गजेंद्र सिंह भाटी द्वारा अनुदित आलेख के अनुसार निजता को मानवाधिकार के रूप में यह स्वीकृति किसी राष्ट्र व देश के नागरिकों के राजनीतिक अधिकार की सीमा से भी आगे ले जाती है। व्दितीय विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में राज्यों ने तकनीक के जरिये सूचनाओं के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के लिए नीति निर्धारण में भी निजता की इस अवधारणा के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया है। वास्तव में, राष्ट्र-देश को बाजार में तब्दील करने की योजना,नागरिकों की निजता की अवधारणा को तिलांजलि देने की घोषणा है। बाजार को नागरिक की नहीं, उपभोक्ता का जरूरत होती है। बाजारवाद की दुनिया नागरिकों द्वारा हासिल किए गए तमाम तरह के राजनीतिक अधिकार को बाधा के रूप में देखती है। इसीलिए दुनिया के सामने विपरीत हालात हैं। राज्य लोकतंत्र को अपने लिए एक औजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है और नागरिकों के लिए कॉरपोरेट राज के हालात तैयार कर रही है।

निजता राजनीतिक अधिकार है, जो पूरी दुनिया के सामानधर्मी चेतना के विकास के साथ हासिल हुआ है। इसके साथ तमाम तरह के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकार गुंथे हुए हैं। स्पष्ट तौर दिखता है कि निजता पर केवल हमले नहीं हो रहे हैं बल्कि उसके साथ हमें तमाम तरह के व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। डेटा के रूप में हमले इस युद्ध की चरम स्थिति पर पहुंचने के संकेत देता है। आधुनिकतम तकनीक की बनावट ही आंकड़ोंवाली है, जिसे आमतौर डिजिटल कहा जाता है। राज्य के हर नागरिक को तकनीक के लिहाज से केवल एक डेटा माना जाता है।

एक नागरिक का डेटा क्या होता है, यदि उसकी दिनचर्चा पर गौर करें तो वह एक डेटा तैयार करता है। खाने-पीने, सोचने, हंसने, बोलने,रिश्ते बनाने, सामान खरीदने, डॉक्टर से मिलने, बैंक जाने, राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने आदि-आदि। तकनीक इतनी सक्षम है कि वह किसी भी नागरिक की हर गतिविधि पर निगरानी रख सकती है। यह डेटा, तकनीक की शब्दावली का हिस्सा है और उसके लिए हर चीज एक डेटा है एक प्रोडक्ट है, लेकिन एक नागरिक का अपना एक स्वतंत्र जीवन है और वह लगातार उसे बेहतर बनाने की आकांक्षा रखता है। नागरिक को डेटा में तब्दील करने का आशय इसके सिवाय दूसरा नहीं हो सकता है कि उसकी निजता उसके नियंत्रण में नहीं है। उसकी निजता निगरानी में है। राज्य की संस्थाएं कई बार निजता पर हमले की कोशिशों को रोकने का भ्रम पैदा करती हैं, लेकिन वास्तव में वह निजता पर हमले की गति पर मामूली सा अंकुश लगाने की कोशिश भर करती हैं। निजता के राजनीतिक अधिकार पर हमले को संस्थाएं रोक भी नहीं सकतीं।

बाजार के लिए उपभोक्ता और राज्य के लिए नागरिक को मिश्रित करने की प्रक्रिया ही डेटाबेस है। निजता पर हमले को स्वतंत्रता के राजनीतिक विरासत पर हमले के रूप में चेतना को विकसित कर ही रोका जा सकता है। दो ध्रुवीय शीत युद्ध के बाद बाजारवाद एक अंतरराष्ट्रीय शीत युद्ध है, जहां निजता की अवधारणा का पूरी तरह निषेध है। इसीलिए हम देखते हैं कि निजता पर हमले केवल राष्ट्र और उपभोक्ता बाजार के बीच तक ही सीमित नहीं हैं। निजता पर हमले के विविध रूप देखने को मिलते हैं। भारत जैसे देश में निजता पर हमले के आयामों को देखें तो निजता की अवधारणा पर हमले की व्यापकता को समझा जा सकता है। तकनीक के ढांचे के रूप में हमले और दूसरे सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर हमलों का सिरा एक दूसरे से मिलता है।

बाजारवाद के लिए तकनीक और भाषा युद्ध की विस्फोट सामग्री जैसी है। बाजारवाद ने विकास और सुरक्षा का जो जुड़वा नारा दिया है वह भाषा के स्तर पर तो नागरिकों के लिए दिखता है, लेकिन वास्तव में वह उसके स्वयं के लिए है। पूंजीवाद लोकतंत्र के शब्दकोश को ही अपनी सुरक्षा के लिए अनिवार्य मानता है। हम आमतौर पर घटनाओं के रूप में निजता में दखलंदाजी पर प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं। मीडिया ट्रायल, सीसीटीवी, मोबाइल, इंटरनेट आदि सभी का निजता को निशाने पर रखने के लिए इस्तेमाल करते देखा जा रहा है। यह सब विकास और सुरक्षा के पर्याय के रूप में हमारी चेतना का हिस्सा बनाने की तैयारी है। यहां विकास का मतलब कॉरपोरेट राज का विस्तार और सुरक्षा का मतलब सैन्यीकरण है।

केंद्र सरकार ने पिछले योजना आयोग के तत्वावधान में निजता पर विशेषज्ञों का एक समूह गठित किया था। इस विशेषज्ञ समूह ने अपनी रिपोर्ट (16) (16 अक्टूबर 2012 की तारीख वाली) में निजता की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के लिए एक रूपरेखा का प्रस्ताव दिया था जिससे ये उम्मीद थी कि वो निजता की सुरक्षा वाले कानून की वैचारिक बुनियाद रखेगा। इन विशेषज्ञ समूह ने जो रूपरेखा सुझाई थी वे पांच मुख्य बातों पर आधारित थीं- (1) अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तकनीकी तटस्थता और अंतरसक्रियता ); (2) बहु-आयामी निजता; (3) सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को समस्तरीय प्रयोज्यता ; (4) निजता सिद्धांतों के साथ अनुरूपता; (5) एक सह-नियामक प्रवर्तन व्यवस्था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सर्वोत्तम प्रथाओं की समीक्षा करने के बाद इस विशेषज्ञ समूह ने नौ निजता सिद्धांतों का प्रस्ताव दिया। वो इस प्रकार हैं:-

नोटिसः निजी जानकारियां जमा की जाएं उससे पहले एक डाटा नियंत्रक सभी व्यक्तियों को स्पष्ट और संक्षिप्त भाषा में अपनी सूचना प्रथाओं के बारे में आसानी से समझ में आने वाला नोटिस देगा;

चुनाव और सहमतिः एक डाटा नियंत्रक निजी जानकारियां प्रदान करने के संबंध में व्यक्तियों को चुनाव की सुविधा (स्वीकार करने/अस्वीकार करने) देगा और अपनी सूचना प्रथाओं के बारे में नोटिस मुहैया करवाने के बाद ही वैयक्तिक सहमति लेगा;

संग्रहण सीमाः एक डाटा नियंत्रक अपने डाटा विषयों से सिर्फ वो ही निजी जानकारियां लेगा जो उन उद्देश्यों के लिए अनिवार्य है और जिनकी पहचान ऐसे संग्रहण के लिए की गई है। इसके लिए उन व्यक्ति को नोटिस मुहैया करवाया जा चुका है और सहमति ले ली गई है। ऐसा संग्रहण सिर्फ कानूनी और ईमानदार ज़रियों से किया जाएगा;

उद्देश्य सीमाः डाटा नियंत्रकों द्वारा संग्रहित और प्रोसेस की गई निजी जानकारियां उन उद्देश्यों के लिए पर्याप्त और प्रासंगिक होनी चाहिए जिनके लिए इन्हें प्रोसेस किया गया है। एक डाटा नियंत्रक निजी जानकारियों का संग्रहण, उनकी प्रक्रिया, खुलासा और उन्हें उपलब्ध करवाने का काम
व्यक्तियों की सहमति लेने के बाद सिर्फ उन्हीं उद्देश्यों के लिए करेगा जो नोटिस में बताए गए हैं। अगर उद्देश्य में कोई बदलाव है तो व्यक्ति को उसके बारे में सूचना देनी होगी। पहचान किए गए उद्देश्य के मुताबिक निजी जानकारी का उपयोग करने के बाद उसे पहचान की गई प्रक्रियाओं के मुताबिक नष्ट किया जाना चाहिए। सरकार के डाटा धारण आदेश राष्ट्रीय निजता सिद्धांतों के सम्मत होने चाहिए;

पहुंच और सुधार: व्यक्तियों के पास, डाटा नियंत्रक के पास रखी अपनी निजी जानकारियों तक पहुंच होनी चाहिए; जहां भी वो जानकारियां त्रुटिपूर्ण हो वहां उनमें सुधार, संशोधन और मिटाने का काम वे करने में सक्षम हों; अपने निजी डाटा की एक प्रतिलिपि डाटा नियंत्रक से हासिल कर पाने में वे सक्षम हों। अगर किसी दूसरे व्यक्ति के निजता अधिकारों को प्रभावित किए बगैर संभव न हो, और सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद, तो डाटा नियंत्रक द्वारा
व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी तक पहुंच और सुधार करने शायद न दिया जाए। ये सिर्फ तभी हो सकता है जब वो व्यक्ति स्पष्ट तौर पर इस खुलासे के लिए अपनी सहमति दे.

सूचना का उद्घाटनः एक डाटा नियंत्रक तीसरे पक्षों को निजी जानकारी का उद्घाटन नहीं करेगा, सिर्फ तभी करेगा जब उसने इस खुलासे के लिए संबंधित व्यक्ति को नोटिस दिया है और उससे सूचित सहमति ली है। तीसरे पक्ष प्रासंगिक और उपयुक्त निजता सिद्धांतों का अनुसरण करने को बाध्य हैं। कानून प्रवर्तन के उद्देश्यों के लिए इनका खुलासा उन कानूनों के अनुरूप ही होना चाहिए जो अभी लागू हैं। डाटा नियंत्रक निजी संवेदनशील जानकारी समेत कोई भी व्यक्तिगत जानकारी प्रकाशित नहीं करेंगे या किसी भी रूप में सार्वजनिक नहीं करेंगे;

सुरक्षाः एक डाटा नियंत्रक उस निजी जानकारी को सुरक्षित रखेगा जो उसने जमा की है या जो उसकी निगरानी में है। तर्कसंगत सुरक्षा उपायों से वो इसके खो जाने, इसमें अनधिकृत प्रवेश, इसके नष्ट होने, इसके उपयोग, किसी प्रक्रिया, संग्रहण, संशोधन, इसकी अज्ञातता दूर करने, अनधिकृत उद्घाटन करने (चाहे दुर्घटनापूर्वक या संयोगवश) या अन्य यथोचित निकट जोखिमों को रोकेगा;

खुलापनः जो भी डाटा वे जुटाते हैं उसके दायरे, व्यापकता और संवेदनशीलता के अनुपात वाले अंदाज में ही एक डाटा नियंत्रक सभी आवश्यक कदम उठाकर प्रक्रियाओं, अभ्यासों, नीतियों और व्यवस्थाओं को लागू करेगा। निजता सिद्धांतों के साथ अनुरूपता सुनिश्चित करने के लिए इसके संबंध की सूचना सभी व्यक्तियों को एक सुगम रूप में स्पष्ट और सरल भाषा में उपलब्ध करवाईजाएगी.

जवाबदेहीः निजता सिद्धांतों को प्रभावी करने वाले तौर-तरीकों का पालन करने के लिए एक डाटा नियंत्रक जवाबदेह होना चाहिए। इन तौर-तरीकों में वो तंत्र भी शामिल होने चाहिए जो निजता नीतियों को लागू करे; जिनमें प्रशिक्षण, शिक्षा और उपकरण शामिल हो; बाहरी और आंतरिक ऑडिट हों, और संगठन व निगरानी करने वाली संस्थाएं निजता आयुक्त को सारा आवश्यक समर्थन दें और निजता आयुक्त के विशिष्ट और सामान्य आदेशों का पालन करें।

इन कार्यवाहियों की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने 31 जुलाई 2017 की तारीख वाले एक कार्यालय ज्ञापन रिकॉर्ड पर रखा, जिसके मुताबिक उसने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी एन कृष्णा की अध्यक्षता वाली एक समिति गठित की है ताकि देश में अन्य विषयों के साथ साथ डाटा सुरक्षा के मानकों की समीक्षा की जाए और उसके लिए सिफारिशें बनाए।

इस समिति की संदर्भ की शर्तें ये हैं:भारत में डाटा सुरक्षा के संबंध में विविध मसलों का अध्ययन करे; ख. भारत में डाटा सुरक्षा के लिए विचारणीय सिद्धांतों पर केंद्र सरकार के लिए विशिष्ट सुझाव दे और एक डाटा सुरक्षा विधेयक का मसौदा सुझाए। चूंकि सरकार ने डाटा सुरक्षा के पूरे क्षेत्र की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी है, इसलिए ये मामला विशेषज्ञ निर्धारण के लिए छोड़ देना ही उचित होगा ताकि डाटा सुरक्षा के लिए एक ताकतवर व्यवस्था लाई जा सके। हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार सभी आवश्यक और उपयुक्त कदम उठाते हुए अपने निर्णय पर आगे का ध्यान देगी।

24 अगस्त 2017 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के पहलुओं पर अपना फैसला सुनाया। सूचनात्मक निजता/जानकारियों की निजता पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अंश 170 से लेकर 185 बिन्दु है।हमारा ये युग, सूचना का युग है। सूचना ही ज्ञान है। पुरानी कहावत कि ” ज्ञान ही ताकत है ” उस पद पर बैठे व्यक्ति के लिए गंभीर परिणाम लिए होती है जहां डेटा सर्वत्र और व्यापक रूप से मौजूद है। टेक्नोलॉजी ने जीवन को बुनियादी रूप से अंतः संबद्ध कर दिया है। लोग अपनी जिंदगी के हरेक दिन में ज्यादा से ज्यादा समय ऑनलाइन बिता रहे हैं जिससे इंटरनेट हर जगह पहुंच वाला हो गया है। लोग एक-दूसरे से जुड़ते हैं और इस संपर्क के लिए इंटरनेट को ज़रिया बनाते हैं। इंटरनेट का उपयोग कारोबार करने और सामान व सेवाएं खरीदने के लिए किया जाता है।

लोग जानकारियों की खोज में, ई-मेल भेजने के लिए, त्वरित संदेश भेजने-मंगाने वाली सेवाएं लेने के लिए और फिल्में डाउनलोड करने के लिए वेब को ब्राउज़ करते हैं। रोज़ अपने पड़ोस के स्टोर में जाने का एक कुशल विकल्प लोगों के लिए ऑनलाइन खरीदारियां बन गई हैं। ऑनलाइन बैंकिंग ने बैंककर्मियों और ग्राहकों के रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित किया है। सिक्योरिटीज़ के क्षेत्र में बाजार के लिए ऑनलाइन ट्रेडिंग ने एक नया मंच बना दिया है। ऑनलाइन म्यूज़िक ने रेडियो को फिर से फैशन में ला दिया है। किताबों के शौकीनों के लिए ऑनलाइन बुक्स ने एक नया ब्रम्हांड खोल दिया है। वो जो पुराना ट्रैवल एजेंट हुआ करता था उसे अब वेब पोर्टलों ने बेकार कर दिया है जो रेस्टोरेंट, रेस्ट हाउस, एयरलाइन टिकट, आर्ट गैलरियों और म्यूजियम टिकटों से लेकर म्यूजिक शोज़ तक सब कुछ प्रदान करवाते हैं।

लोग अपनी जिंदगी के हरेक दिन इंटरनेट में प्रवेश करते हैं उसकी वजहों में से कुछेक उपरोक्त हैं। लेकिन फिर भी किसी व्यक्ति का हर लेन-देन और जिस भी साइट पर वह जाता है वहां, बगैर उसकी जानकारी के उसके इलेक्ट्रॉनिक पद्चिन्ह आमतौर पर छूट जाते हैं। इन इलेक्ट्रॉनिक पद्चिन्हों में सूचना पाने के ताकतवर ज़रिए होते हैं जो ये जानकारियां देते हैं कि उपयोगकर्ता किस तरह का इंसान है और उसकी रुचियां क्या-क्या हैं।1 व्यक्तिगत तौर पर भले ही ये भंडारण महत्वहीन लगें, लेकिन इन्हें जोड़कर देखें तो ये बताते हैं कि संबंधित व्यक्तित्व की प्रकृति क्या हैः जैसे उसकी खान-पान की आदतें, भाषा, स्वास्थ्य, रुचियां, यौन वरीयता, दोस्त, कपड़े पहनने का ढंग और राजनीतिक झुकाव। कुल मिलाकर ये सूचना उस हस्ती की एक तस्वीर मुहैया करती हैः उन चीजों के बारे में जो मायने रखती हैं और जो मायने नहीं रखती हैं, उन चीजों के बारे में जिनका खुलासा किया जाना चाहिए या जो गोपनीय रहें तो ही बेहतर।

जो भी इंटरनेट उपयोगकर्ता यानी यूज़र होते हैं उनके इंटरनेट ब्राउज़र में मशहूर वेबसाइट्स कुकीज़ डाल देती हैं। ये कुकीज़ उन ब्राउज़र्स को विशेष पहचान वाले अंकों से जोड़ सकती हैं जिनकी वजह से वो वेबसाइट्स अलग-अलग यूज़र्स और उनके ऑनलाइन व्यवहार के बारे में सुरक्षित जानकारियों को पहचान सकती हैं। ये जानकारियां, खासकर एक यूज़र की ब्राउज़िंग हिस्ट्री (यानी उसने कब कौन सी वेबसाइट खोली थी) का इस्तेमाल यूज़र की प्रोफाइल बनाने में किया जाता है। इसमें एल्गोरिद्म्स का उपयोग करते हुए इंटरनेट यूज़र्स के बारे में प्रोफाइल बनाई जाती हैं। ई-मेल जो होती हैं उनका अपने आप विषय-वस्तु विश्लेषण होता है जिसकी वजह से यूज़र की सब ई-मेल पढ़ने की अनुमति मिल जाती है। एक ई-मेल का विश्लेषण इसलिए किया जा सकता है कि यूज़र की रुचियों को ढूंढ़ निकाला जा सके और उन्हीं को लक्ष्य करते हुए उस मुताबिक विज्ञापन, वेबसाइट्स उसे दिखाए जाएं। कोई व्यक्ति इंटरनेट पर जो भी किताबें खरीदता है उससे उसके पद्चिन्ह छूट जाते हैं और फिर उसे उसी श्रेणी की किताबों के विज्ञापन लक्ष्य करके दिखाए जाते हैं। चाहे एक इकोनॉमी या बिज़नेस क्लास में एक एयरलाइन टिकट खरीदा गया है, वो उस व्यक्ति के रोजगार प्रोफाइल और खर्च करने की क्षमता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मुहैया करा देता है। शॉपिंग मॉल्स के लिए जो टैक्सी ऑनलाइन बुक की जाती हैं वो उस ग्राहक की प्राथमिकताओं की प्रोफाइल प्रदान कर देती है। कोई महिला जो गर्भावस्था से जुड़ी हुई दवाइयां ऑनलाइन खरीदती है उसे बच्चों के उत्पादों से जुड़े विज्ञापन भेजे जाते हैं। लोगों की जिंदगियां इलेक्टॉनिक निगरानी के लिए खुली हो जाती हैं।

इसे हल्के में कहें तो सूचना के इस युग में निजता की चिंताएं गंभीरता से एक मसला है।

 Painting : The Burning Giraffe ( Salvador Dali )

 

(चंद्र प्रकाश झा  वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)



 

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