सोहराबुद्दीन फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की भूमिका की जाँच कर रहे जज बृजगोपाल लोया की मौत पर उनके परिवार के लोग संदेह जता रहे हैं। वे साफ़ कह रहे हैं कि जज लोया को सौ करोड़ रुपये रिश्वत की पेशकश हाईकोर्ट के एक जज ने की थी और मौत के बाद पुलिस या प्रशासन नहीं एक आरएसएस का आदमी परिजनों को सूचना दे रहा था। उसी के हाथ जज लोया का मोबाइल फोन घरवालों को भेजा गया जिसके सारे डिटेल ग़ायब थे।
1 दिसंबर 2014 को बिना किसी बीमारी के अचानक जज लोया की मौत की कहानी यूँ ही दफ़्न हो जाती अगर पत्रकार निरंजन टाकले इसकी गहराई से पड़ताल न करते। उनकी पड़ताल से साफ़ हुआ कि यह कोई सामान्य मामला नहीं है। लेकिन उनकी पत्रिका “द वीक” इस ख़बर को छापने का साहस न कर सकी। अब जज लोया के पिता, बहनें और बेटे ने कैमरे के सामने आकर पूरी कहानी बताई हैं और ‘कारवाँ’ ने इस सनसनीख़ेज़ स्टोरी को लाने का साहस दिखाया है।
हाँलाकि कुछ समय पहले यह आम बात थी, लेकिन अब इसे ‘साहस’ ही कहना पड़ेगा क्योंकि ऐसी हंगामेदार स्टोरी को पूरा मीडिया दबाने में जुटा है। ले देकर ‘मीडिया विजिल’ जैसी कुछ वेबसाइटों ने इसे फ़ालो किया है। कारोबारी मीडिया को तो जैसे साँप सूँघ गया है। वहाँ पद्मावती के लिए तलवार लहराते उन्मादी हैं, अभिनेत्री की नाक कान काटने का ऐलान है, तीन तलाक है, चीखते हुए ऐंकर और मौलाना हैं, राममंदिर है, लेकिन देश की हालत को लेकर बेहद डराने और चिंतिति करने वाली इस ख़बर का ज़िक्र नहीं है।
मीडिया विजिल में छपी इस पूरी कहानी को यहाँ पढ़ सकते हैं-
एक जज की मौत : The Caravan की सिहरा देने वाली वह स्टोरी जिस पर मीडिया चुप है
और हाँ
कल यानी 22 नवंबर को टीवी पत्रकारिता के ‘अपवाद कुमार’ यानी रवीश कुमार ने एनडीटीवी के अपने ‘प्राइम टाइम’ में इस स्टोरी को पूरी शिद्दत से पेश किया। रवीश के अलावा आप उम्मीद भी किससे करते हैं। ज़रूरत है कि इस शो को सोशल मीडिया पर वायरल किया जाए ताकि इस बेहद महत्वपूर्ण ख़बर पर दिल्ली बर्फ़ की सिल्ली न डाल सके। पहले देखिए और फिर मित्रों को बढ़ाइए ताकि तमाम ज़रूरी सवाल किसी शोर में दम न तोड़ने पाएँ —