भारतीय राजनीति के घोर अधःपतन का घिनौना रुप किसी को देखना हो तो वह आजकल के महाराष्ट्र को देखे। जो लोग अपने आप को नेता कहते हैं, वे क्या हैं ? वे सिर्फ कुर्सीदास हैं। कुर्सी के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। शिव सेना-जैसी पार्टी कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार बनाने के लिए उतावली हो गई है। बाल ठाकरे से लेकर आदित्य ठाकरे ने कांग्रेस की कब्र खोदने में कौन-कौन-सी कुल्हाड़ियां नहीं चलाई हैं, उस पर उन्होंने कितनी बार नहीं थूका है लेकिन अब उसी कांग्रेस के तलुवे चाटने को आज शिव सेना बेताब है। बालासाहब ठाकरे स्वर्ग में बैठे-बैठें अब क्या सोच रहे होंगे, अपने उत्तराधिकारियों के बारे में ?
मुझे उनकी वह पुरानी भेंट-वार्ता अभी भी याद है, जिसमें उन्होंने साफ-साफ कहा था कि भाजपा और शिव सेना में से जिसे भी ज्यादा सीटें मिलेंगी, मुख्यमंत्री उसी पार्टी का बनेगा। इसमें विवाद करने की जरुरत ही नहीं है। अभी भाजपा को 105 और शिव सेना को उससे लगभग आधी (56) सीटें मिली हैं। फिर भी वह अड़ी हुई है, मुख्यमंत्री पद लेने के लिए। अब यदि वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (54) से गठबंधन कर लेती है तो भी उसकी सीटें सिर्फ 110 होंगी याने कांग्रेस (44) की खुशामद के बिना वह सरकार नहीं बना सकती।
लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि ये हमारे नेता हैं कि गिरगिटान हैं। उनके कोई आदर्श, कोई सिद्धांत, उनकी कोई नीति, कोई परंपरा, कोई मर्यादा भी होती है या नहीं ? यह बात सिर्फ शिव सेना पर ही लागू नहीं होती। भाजपा ने इस चुनाव में क्या किया है ? दर्जनों कांग्रेसियों को रातोंरात भाजपा में ले लिया है। उनमें से कुछ जीते भी हैं। वे कुर्सी के चक्कर में इधर आ फंसे।
अब वे क्या करेंगे ? वे दल-बदल करने की स्थिति में भी नहीं हैं। वे मन-बदल पहले ही कर चुके। महाराष्ट्र में शिव सेना, राकांपा और कांग्रेस की सरकार चाहे बन ही जाए लेकिन उसे पता है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है। वह क्या उसे चलने देगी ? पता नहीं, ये तीनों पार्टियां क्या सोचकर सांठ-गांठ कर रही हैं ?