(नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इज़रायल की आधिकारिक यात्रा सत्तर बरस की आज़ादी में पहली बार की है। इस बात पर बार-बार मीडिया में ज़ोर दिया जा रहा है। आखिर सत्तर बरस तक जिस देश के तमाम प्रधानमंत्रियों ने इज़रायल से किनारा किया, उसने 2017 में इज़रायल को गले क्यों लगा लिया? बेंजामिन ‘बीबी’ नेतन्याहू का मोदी को संबोधन ‘मेरे दोस्त’ और यह कहना कि दोनों देशों की ‘जोड़ी स्वर्ग में बनी है’, इसका क्या निहितार्थ है? कूटनीतिक संबंध और हथियारों की खरीद-फरोख़्त तो नवउदारवादी वैश्विक ढांचे में एक आम बात है, लेकिन इन बातों पर मीडिया इतना ज़ोर क्यों दे रहा है? कहीं हमसे कुछ छुपाया तो नहीं जा रहा? यह जानने से पहले कि इस कूटनीतिक रिश्ते के पीछे के सच कितने स्तरदार हैं, हमें यह जान लेना ज़रूरी है कि मीडिया आखिर इस सच को क्यों छुपाएगा। केवल भारत का ही नहीं, दुनिया भर का मीडिया इस सच को छुपाने को बाध्य है। सच क्या है, इसकी हम आगे के अध्यायों में पड़ताल करेंगे लेकिन सच को छुपाने की मीडिया की मजबूरी को जानना ज्यादा बुनियादी काम है। पहले भारतीय प्रधानमंत्री की इज़रायल यात्रा के अलग-अलग पहलुओं पर लिखी जा रही श्रृंखला का यह पहला भाग है जो इज़रायल के मीडिया नियंत्रण पर केंद्रित है। मीडियाविजिल की यह खास पेशकश अभिषेक श्रीवास्तव के कीबोर्ड से)
”आप अच्छे से जानते हैं, और बेवकूफ़ अमेरिकी भी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि हम उनकी सरकार को नियंत्रित करते हैं और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वाइट हाउस में कौन बैठा है। देखिए, यह बात मैं भी जानती हूं और आप भी कि अगर हम कुछ अकल्पनीय भी कर जाएं तो कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति हमें चुनौती देने की स्थिति में नहीं होगा। वे (अमेरिकी) हमारा क्या बिगाड़ सकते हैं? हम कांग्रेस को, मीडिया को, शो बिज़नेस को और अमेरिका में हर चीज़ को नियंत्रित करते हैं। अमेरिका में आप ईश्वर की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन आप इज़रायल की आलोचना नहीं कर सकते…।”
उपर्युक्त बयान इज़रायली प्रवक्ता जि़पोरा मिनाशे के नाम से 2009 में इंटरनेट पर काफी बड़े पैमाने पर प्रसारित हुआ था। कुछ वेबसाइटों ने इसे सच मानकर छापा तो कुछ ने इसे अफ़वाह बताया। कुछ और वेबसाइटों का दावा था कि इस नाम की कोई महिला इज़रायली सरकार में प्रवक्ता के पद पर है ही नहीं। अब यह बयान चाहे सच हो चाहे अफ़वाह, लेकिन इसमें कही गई बात आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर कसी जाए तो सच्ची जान पड़ती है।
मोटी बात यह है कि यहूदी मालिकाने वाली छह कंपनियां दुनिया के 96 फीसदी मीडिया पर नियंत्रण रखती हैं। इसीलिए मीडिया से यह उम्मीद करना कि वह इज़रायल के संबंध में सच बताएगा, सपना देखने जैसी बात है। इसके बावजूद इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपने देश के मीडिया पर अपने नियंत्रण की ज़रूरत महसूस होती है, यह काफी दिलचस्प बात है। उन्होंने हाल ही में अमेरिकी श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि ”दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जहां इज़रायल जितना स्वतंत्र प्रेस है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जो अपने नेता पर वैसा हमला करता हो जैसा इज़रायली मीडिया मेरे ऊपर करता है। यह अच्छी बात है। यह उनके चुनाव का मामला है। हमारा प्रेस स्वतंत्र है कुछ भी कहने के लिए।” और विदेश की धरती पर ऐसा कहते हुए वे अपने घर में ही मीडिया को बेडि़यों में जकड़ने की व्यवस्था कर चुके थे।
इज़रायल में बीते 30 अप्रैल से एक सरकारी प्रसारण निगम की शुरुआत होनी थी और नेतन्याहू उसके खिलाफ़ थे। पुरानी संस्था इज़रायल ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी (आइबीए) के खिलाफ और नए निगम के पक्ष में तीन साल पहले वोट करने के बावजूद उन्हें इस बात का डर है कि कहीं नई संस्था से उनकी सरकार को खतरा न पैदा हो जाए। आखिरकार उन्होंने अपने वित्त मंत्री के साथ इस मसले पर एक समझौता किया जिसके चलते नए निगम ने काम करना तो शुरू कर दिया लेकिन उसका समाचार प्रभाग अब तक शुरू नहीं हो सका है। इससे नेतन्याहू का काम भी बन गया है और निगम के समर्थक उनके वित्त मंत्री की इज्जत भी बच गई है।
इस संबंध में 30 मार्च को एक ख़बर प्रकाशित करने वाले दि इकनॉमिस्ट ने सवाल उठाया कि करीब 80 लाख आबादी वाले देश में 20 लाख फेसबुक फॉलोवर वाले प्रधानमंत्री जब मुख्यधारा के घरेलू मीडिया के दायरे को ही पार कर चुके हों, तो उन्हें डर किस बात का है। पत्रिका जवाब देती है कि कुछ लोगों के मुताबिक चार बार लगातार चुनाव जीत चुके नेतन्याहू लगातार चुनाव के ही मूड में रहते हैं और एक शत्रु से पैदा हुए भय के इर्द-गिर्द अपने मतदाताओं को जोड़े रखने के ख्वाहिशमंद हैं। वह एक दुश्मन ज़ाहिर तौर पर फलस्तीन है।
नेतन्याहू को अंतरराष्ट्रीय मीडिया का डर नहीं है। इसकी साफ़ वजह यह है कि उसमें इज़रायल समर्थक यहूदियों का वर्चस्व और मालिकाना है। आइए एक नज़र इस परिदृश्य पर दौड़ाते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी डिज़्नी साम्राज्य के चेयरमैन और सीईओ मिशेल ईज़्नर यहूदी हैं। इसके तहत वाल्ट डिज़्नी टीवी, टचस्टोन टीवी, ब्यूना विस्टा टीवी और करीब डेढ़ करोड़ ग्राहकों वाला केबल नेटवर्क भी शामिल है। इसके अलावा इसके पास दो वीडियो प्रोडक्शन कंपनियां हैं। वाल्ट डिज़्नी पिक्चर समूह के प्रमुख जो रॉथ भी यहूदी हैं जिसमें टचस्टोन पिक्चर्स, हॉलीवुड पिक्चर्स, कारावान पिक्चर्स शामिल हैं। मिरामैक्स फिल्म्स भी डिज़्नी की ही कंपनी है। ईज़्नर 1984 से कंपनी के मालिक हैं। अमेरिका में इससे संबद्ध करीब 225 केंद्र हैं और कई योरोपीय टीवी कंपनियों में भी इसका आंशिक स्वामित्व है।
एबीसी के चैनल ईएसपीएन के निदेशक और सीईओ स्टीवेन बर्नस्टीन भी यहूदी हैं। एबीसी अमेरिका के प्रमुख शहरों में 11 एएम और 10 एफएम रेडियो नेटवर्क चलाता है और सात अख़बार प्रकाशित करता है। इसके बाद बारी आती है टाइम वार्नर की, जिसके चेयरमैन और सीईओ जेराल्ड लेविन यहूदी हैं। एचबीओ इसी का चैनल है। टाइम वार्नर के प्रकाशन विभाग के मुख्य संपादक नॉर्मन पर्लस्टीन यहूदी हैं और प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम, स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड, पीपल और फॉर्च्यून यही कंपनी प्रकाशित करती है।
टेड टर्नर ने 1985 में सीबीएस को खरीदने की कोशिश की थी और बाद में विज्ञापन जगत में अच्छा कारोबार कर के उन्होंने सीएनएन की स्थापना की। सीएनएन के प्रमुख पदों पर उन्होंने यहूदियों की बहाली की और कभी भी यहूदियों के हितों के खिलाफ़ उन्होंने सार्वजनिक रूप से पक्ष नहीं लिया। सीबीएस के चेयरमैन विलियम पेली जो यहूदी थे, टर्नर के प्रशंसक थे। टर्नर द्वारा सीबीएस को खरीदे जाने से रोकने के लिए सीबीएस के अधिकारियों ने एक यहूदी अरबपति लॉरेंस टिश को भिड़ा दिया कि वे नकली तरीके से कंपनी को खरीद लें ताकि टर्नर ऐसा न करने पावें। इसके बाद 1986 से 1995 तक सीबीएस के मालिक टिश रहे जिन्होंने वहां गैर-यहूदी तत्वों को धीरे-धीरे साफ़ कर डाला। बाद में टर्नर ने एक बार फिर सीबीएस को खरीदने की कोशिश की लेकिन उसमें 20 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले टाइम वार्नर ने उन्हें नाकाम कर दिया।
इनके बाद वायाकॉम इंक तीसरा सबसे बड़ा मीडिया प्रतिष्ठान है जिसके चेयरमैन समनर रेडस्टोन खुद यहूदी हैं। इसके 12 टीवी और 12 रेडियो स्टेशन हैं। पैरामाउंट पिक्चर्स इसी की कंपनी है जिसकी चेयरमैन यहूदी महिला शेरी लांसिंग हैं। इसके प्रकाशन समूहों में प्रेंटिस हॉल, साइमन एंड शूस्टर तथा पॉकेट बुक्स हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा केबल कार्यक्रम बनाने वाली कंपनी वायाकॉम है। यह शोटाइम, एमटीवी, निकलओडियोन आदि नेटवर्क चलाता है। यह सब इज़रायल समर्थक यहूदियों के हाथ में है।
अगला नंबर है रूपर्ट मर्डोक का जो न्यूज़कॉर्प के माध्यम से फॉक्स टीवी और 20th सेंचुरी फॉक्स नामक कंपनियां चलाते हैं। मर्डोक के फिल्म कारोबार और विदेशी टीवी कारोबार का काम देखने वाले पीटर चर्मिन यहूदी हैं। इसके बाद जापानी कंपनी सोनी कॉरपोरेशन का नंबर आता है और जानकर आश्चर्य होगा कि इस जापानी कंपनी को एक यहूदी मिशेल शुल्हॉफ चलाता है। एलन लेविन एक और यहूदी हैं जो सोनी के पिक्चर प्रभाग के प्रमुख हैं।
अब अख़बारों पर आते हैं। अमेरिका के तीन बड़े अखबार जो वहां का राजनीतिक एजेंडा सेट करते हैं, यहूदियों के हैं। ये हैं न्यूयॉर्क टाइम्स, वाल स्ट्रीट जर्नल और वॉशिंगटन पोस्ट। न्यूयॉर्क टाइम्स कंपनी के यहूदी मालिकान सुल्ज़बर्गर परिवार 33 और अख़बार चलाते हैं तथा 12 पत्रिकाएं भी छापते हैं। इसके अलावा उनके सात रेडियो और टीवी स्टेशन हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स समाचार सेवा वायर के माध्यम से 506 अख़बारों, एजेंसियों व पत्रिकाओं को ख़बर भेजती है।
बड़े निगमों को छोड़ दें तो स्वतंत्र मीडिया कंपनियां भी यहूदियों की हैं या उनमें बड़े पदों पर यहूदी बैठे हुए हैं जो सब के सब इज़रायल समर्थक हैं। अमेरिका में मीडिया पर इस तरह तकरीबन पूरा नियंत्रण इज़रायली हितों का है। ऐसे में आप क्या सोचते हैं कि सूचना के क्षेत्र में इज़रायल की ताकत और उसके हितों को चुनौती देने की हिमाकत कोई भी मीडिया कर सकता है? ज़ाहिर है, ऐसा नहीं होगा। इसीलिए कम से कम इज़रायल के मामले में वैश्विक मीडिया और उससे नत्थी घरेलू मीडिया की रिपोर्टिंग संदिग्ध होगी। वह आपको हथियार सौदे और अन्य विकास परियोजनाओं के बारे में चीख-चीख कर बताएगा, लेकिन यह नहीं बताएगा कि इसमें ऐसा खास क्या है कि इतना चीखने की ज़रूरत पड़ रही है। आखिर मोदीजी ने चीन के राष्ट्रपति के साथ भी तो झूला झूलते हुए अरबों का निवेश सौदा कर ही लिया था। फिर इजरायल इतना स्पेशल कैसे हो गया और क्यों? जानने के लिए पढ़ते रहिए मीडियाविजिल।
अगर ऊपर दी हुई जानकारी को याद रखने में दिक्कत आए तो दुनिया के मीडिया पर इज़रायल के कब्ज़े को समझने के लिए नीचे दिया छोटा सा वीडियो देखकर सहेज लें।
https://youtu.be/0Q0nvM8NzEo