फासीवाद का परीक्षण पूरे शबाब पर है : फिन्टन ओटोल

आइरिश टाइम्स के मशहूर टिप्पणीकार फिन्टन ओटोल ने कुछ दिन पहले एक लेख लिखा था। हम लगातार मानते रहते हैं कि अगर नरेन्द्र मोदी चुनाव जीत रहे हैं तो सचमुच जनता का उनको समर्थन प्राप्त है। इसलिए जो भी विपक्षी दल उनकी जीत पर सवाल उठाते हैं या फिर चुनाव में धांधली की बात करते हैं, तो कुछ लोग उनका मजाक उड़ाते हैं। हम यह भी कहते हैं कि वे चुनाव हार गए हैं इसलिए ईवीएम और चुनाव पर सवाल उठा रहे हैं! फिन्टन ने अपने लेख में लिखा है कि फासीवाद को जारी रखने के लिए चालीस फीसदी वोटरों का वोट चाहिए जबकि अपने प्रधानसेवक जी को मात्र 31 फीसदी वोट मिला है। अभी कल की बात है, कर्नाटक में मॉब लिंचिंग में एक इंजीनियर की जान ले ली गई, थोड़े दिन पहले इसी तरह की घटना असम में हुई थी जब बच्चा चोर कहकर दो लोगों को मार डाला गया था। महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, झारखंड और न जाने कितने रूप में मॉब लिंचिंग की घटना पूरे देश में हो रही है, लेकिन सरकार न सिर्फ चुप है बल्कि उसे प्रश्रय भी दे रही है। झारखंड में मॉब लिंचिंग करनेवाले अपराधियों को केन्द्रीय मंत्री जयन्त सिंहा सार्वजनिक रूप से फूल माला पहनाकर स्वागत भी करता है। गिरिराज सिंह दंगाइयों से मिलने जेल पहुंच जाता है, मुज़फ्फरनगर के 15 दंगाइयों को विधायक की सिफारिश से एनटीपीसी में सरकारी नौकरी पर रखा जाता है। और यह पूरे देश में हो रहा है, शान से हो रहा है जिस पर हमें शर्म आनी चाहिए! (जितेन्द्र कुमार)


फिन्टन ओटोल

अभी पूरी दुनिया में क्या चल रहा है इसे समझने के लिए हमें दो चीजों पर गौर करने की जरूरत है। पहला यह है कि हम परीक्षण के दौर में हैं। दूसरा यह है कि जो चल रहा है वह फासीवाद है – एक ऐसा शब्द जिसे सचमुच बहुत सावधानी से इस्तेमाल करने की जरूरत है, लेकिन जब यह क्षितिज पर इतना साफ दिखाई दे रहा है तो इसका प्रयोग करने से परहेज भी नहीं होना चाहिए। “फासीवाद के बाद” के वक्त को भूल जाइए – हम जिस समय में जी रहे हैं वह पूर्व-फासीवाद का दौर है।

डोनाल्ड ट्रम्प को बेवकूफ कहकर खारिज करना आसान है, ऐसा इसलिए नहीं कि वह सचमुच बेवकूफ ही है। फिर भी, उसे एक बात की तीव्र समझ है: विपणन परीक्षण। उन्होंने खुद को न्यूयॉर्क के टेब्लॉइड अखबारों में गपशप के पन्नों पर स्थापित किया जहां सेलिब्रिटी के बारे में अनवरत अपमानजनक कहानियां बनाई जाती हैं, जिसकी पुष्टि या खंडन आप बाद में इस आधार पर कर सकते हैं कि इस गॉसिप को लोगों ने किस रूप में स्वीकार किया है। उसने खुद को रियलिटी टीवी में अपने को स्थापित किया जहां कहानियों को रेटिंग के अनुसार समायोजित किया जा सकता हैः इस स्टोरी को बाहर रखो, इसे फिर से चलाओ, वहीं चलने दो, फिर से चलाओ, आदि।

मौजूदा लोकतंत्र में फासीवाद अचानक अवतरित नहीं हुआ है। लोगों के लिए स्वतंत्रता और सभ्यता के विचारों को छोड़ना इतना भी आसान नहीं होता है। आपको इसकी पड़ताल करनी है कि यदि वह अच्छी तरह से लागू किया जाता है, तो इससे दो उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है। वे लोगों का इस्तेमाल ऐसी चीजों में करते हैं जिसे वे शुरू में आसानी से कर सकते हैं; वे आपको परिष्कृत और अांशिक रूप से ऐसा करने की अनुमति देते हैं। और अब जो घटित हो रहा है अगर उसे हम अब भी नहीं देख पा रहे हैं तो हमसे ज्यादा और कोई मूर्ख नहीं होगा!

फासीवाद का बुनियादी औजार यह है कि वह चुनावों में धांधली करता है – हमने इसे ट्रंप के चुनाव में देखा है, ब्रेक्सिट जनमत संग्रह में देखा है (पूरी तरह तो नहीं) और फ्रांसीसी राष्ट्रपति के चुनाव में भी देखा है। दूसरा, पीढ़ियों से चल रहे जनजातीय पहचान को उभारना है और समाज को विभाजित कर बहुध्रुवीय बनाना है।

फासीवाद को बहुमत की आवश्यकता नहीं होती है – यह आम तौर पर चालीस फीसदी के समर्थन के साथ सत्ता में आता है और सत्ता पर बने रहने के लिए सत्ता की ताकत और धमकी का इस्तेमाल करता है। इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बहुसंख्य जनता आपसे नफरत करती है, जब तक आपका चालीस फीसदी कट्टर समर्थक है आप सत्ता में बने रहेंगे। इसका परीक्षण बार-बार किया भी जा चुका है।

निश्चित रूप से फासीवाद को प्रभावी प्रचार मशीन की बहुत जरूरत होती है जो अपने अनुयायियों को अवांछित वास्तविकताओं के प्रति अभ्यस्त “वैकल्पिक तथ्यों” के ब्रह्मांड में ले जाती है, जिसकी सत्यता की जांच करना असंभव है।

लेकिन जब आपने यह सब किया है, तो इससे आगे का महत्वपूर्ण कदम आमतौर पर सबसे कठिन होता है। आपकी नैतिक सीमाओं को कमजोर करना है और अधिक से अधिक क्रूरता की स्वीकृति को मान्यता दिलाना है। अपने घावों की तरह, लोगों को खून देखते रहने की आदत डालनी होती है। उन्हें गुलामी को स्वीकार करने का स्वाद चखाया जाता है।

फासीवाद इसके लिए अदृश्य बाहरी खतरे का भाव पैदा करता है। यह उस समूह के सदस्यों को अमानवीय बनाने की अनुमति देता है। एक बार जब यह हासिल हो जाता है तो आप इसे लागू करने के लिए विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल करते हुए अपना काम बखूबी करते जाते हैं। लोगों को गुलामी का स्वाद लगाया जाता है और फासीवाद एक अदृश्य बाहरी समूह से खतरे की भावना का निर्माण करके ऐसा करता है।

और यही वह अगला कदम है जिसकी अब टेस्ट-मार्केटिंग यानी विपणन-परीक्षण किया जा रहा है। इसे इटली में उग्र दक्षिणपंथी मैटेयो साल्विनी ने पहले भी करके दिखाया है। यदि हम शरणार्थियों से भरे नाव को डुबो दें तो जनता किस रूप में ग्रहण करती है? और ट्रम्प ने इसका बखूबी ट्रायल किया है: देखते हैं कि मेरे प्रशंसक पिंजरों में बंद पड़े बच्चों के रोने को किस रूप में स्वीकार करते हैं? मुझे आश्चर्य है कि यह रूपर्ट मर्डोक के पक्ष में बहुत अच्छी तरह जाएगा।

जैसा कि अधिकतर टिप्पणियां की गई हैं, प्रवासी बच्चों को ट्रंप द्वारा जानबूझकर पहुंचाया गया नुकसान ‘एक गलती’ के रूप में दिखाया जाना जानबूझकर किया गया मूर्खतापूर्ण कदम है। यह पूर्व परीक्षण (ट्रायल टेस्ट) और परीक्षण बहुत सफल रहा है। पिछले हफ्ते ट्रम्प ने दावा किया था कि आप्रवासी पर ‘हमला’ (इनफेस्ट) अमरीका का एक विपणन-परीक्षण है, लेकिन उनके प्रशंसक अगले चरण की गतिविधि के लिए तैयार है क्योंकि अब तो वो सचमुच ‘दरिंदा’ बन बैठा है।

और माता-पिता के गोद या आगोश से खींचे गए बच्चों की छवियों को क्या ध्वनियों और चित्रों में बदल दिया जा सकता है। यह हमेशा से ही एक प्रयोग था – यह समाप्त हुआ (लेकिन उसका सिर्फ एक हिस्सा) क्योंकि परिणाम तो उसके भीतर था।

और परिणाम बहुत ही संतोषजनक है। दो मोर्चे से अच्छी खबरें है। सबसे पहले, रूपर्ट मर्डोक काफी खुश हैं – उनका फॉक्स न्यूज़ बर्बरतापूर्ण मूर्खता के साथ सामने आ गया है: डाउन सिंड्रोम बच्चों का उल्लेख होने पर पशुओं का शोर करते हुए, और रोते बच्चों को अभिनेता के रूप में वर्णन करते हुए। वे उस स्तर पर उतर आए हैं: भूरे रंग के बच्चे भी झूठ बोलते हैं। जो पीड़ा से बिलबिला रहे हैं उनका अजनबियों सा मनोवैज्ञानिक व्यवहार भयानक है, जो उनसे नफरत करते हैं – क्या हमें ऐसी जाति से नहीं डरना चाहिए जिसके बच्चे भी इतने धूर्त होते हैं?

दूसरा, कट्टर प्रशंसकों को यह बेहद पसंद आया: रिपब्लिकन के पचास फीसदी लोग इस क्रूरता के समर्थक हैं। ट्रम्प की कुल स्वीकृति रेटिंग 42.5 फीसदी तक है।

यह पूर्व-फासीवादी एजेंडा के लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है। लोकतांत्रिक दुनिया में खूनी प्रक्रिया शुरू हो गई है। प्रोपगंडा मशीनों को न बचाव करने योग्य को बचाव करने की जितनी आवश्यकता होती है, उन्हें तेज किया जा रहा है। लाखों-करोड़ों यूरोपीयन और अमेरिकियों को, जो सोचा भी न जाए- वह सोचने के लिए तैयार किया जा रहा है।

अगर काले मनुष्य समुद्र में डूब जायेंगे तो क्या हो जाएगा? अगर भूरे बच्चों में जिंदगी से डर पैदा हो जाए तो क्या हो जाएगा? उनके दिमाग ने पहले से ही नैतिकता की सारी सीमाओं को पार कर लिया है। वे मैकबेथ की तरह हैं, “अभी तक कौतुक’’। लेकिन परीक्षणों को परिष्कृत किया जाएगा, परिणामों का विश्लेषण किया गया, विधियों को पूरा किया गया, संदेशों को और सटीक बनाया गया। और फिर उसे लागू किया जाएगा।”

हमें अपनी आजादी को बचाए रखने के लिए अपने सभी लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल करना होगा, साथ ही, हर मुश्किल का बहादुरी से सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।


इंट्रो और अनुवाद जितेन्द्र कुमार ने किया है 
 
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