शांति के ठेकेदार देश हथियारों के सबसे बड़े उत्पादक भी हैं
-एदुआर्दो गालेआनो
अफ्रीका महाद्वीप में स्थित सूडान के राजनैतिक हालात एक बार फिर चर्चा का कारण बन गए हैं। सैन्य शासन से परेशान होकर लाखों की तादाद में प्रदर्शनकारी यहां घरों से निकल आये हैं और लोकतंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए सड़कों पर मार्च कर रहे हैं।
इसके विरोध में सैन्य सरकार द्वारा सत्ता में बने रहने की कोशिश में सरेराह हिंसा का प्रयोग किया जा रहा है। देश के कई हिस्सों से सैन्यबलों द्वारा सैकड़ो लोगों की हत्या तथा सामूहिक बलात्कार की खबरें आ रही हैं।
Sudan's youth put everything on the line to see Omar al-Bashir removed from power. pic.twitter.com/OXcI4KVR9v
— DW News (@dwnews) June 19, 2019
इन खबरों के बीच विश्व के मीडिया का बर्ताव निंदनीय है। विश्व भर के मीडिया ने सूडान के हालात पर चुप्पी साध रखी है। कुछ प्रगतिशील संगठनों ने इस बात को लोगो तक पहुंचाने के लिए एक अभियान चलाया जिमसें विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों पर लोग अपनी प्रोफाइल पिक्चर्स को नीले रंग में बदल रहे हैं।
सवाल यह है कि ये तरीका कितना कारगर है? इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी विश्व प्रसिद्ध नेता की नज़र इस मुद्दे पर अब तक नहीं गयी है।
कुछ लोग भावुक होकर इस घटना की तुलना अप्रैल में नोट्रेडैम में लगी आग की घटना से कर रहे हैं जिसे वैश्विक मीडिया ने एक बड़ी आपदा बताया था और जिसके लिए विश्वस्तरीय योगदान अभियान शुरू किया गया था। मीडिया के इस रवैये से यह सवाल उठ रहा है कि क्या मीडिया केवल विकसित देशों की खबरों को मान्यता देगा? क्या विकासशील या अविकसित देशों पर आए संकटों को संकट नहीं माना जाएगा?
https://twitter.com/ThomasVLinge/status/1141078576852344832
एक तरफ़ तथाकथित महाशक्तिशाली देश के नेता कहते है कि ‘हम पूरे विश्व को लोकतांत्रिक बनाने के लिए हर कोशिश कर रहे है’ वहीं दूसरी तरफ जब लोकतंत्र पर इतना बड़ा हमला होता है तो वे चुप दिखाई देते है। इस चुप्पी का एक मुख्य कारण यह हो सकता है कि 1998 में अमेरिकी सरकार ने आतंकवादियों को संरक्षण देने और बायो केमिकल वेपन बनाने के आरोप में सूडान की राजधानी खोरतुम पर मिसाइल दागा था। इसी बात से विकासशील इस्लामिक देश भी सूडान की मदद करने से डरे हुए हैं।
आज के हालात के जड़ इतिहास में मिलते हैं। सूडान के इतिहास के पन्नो में झांकने पर पता चलता है कि 1983 में सूडान के राष्ट्रपति नुमेरी ने बिना किसी सूचना के इस्लामिक शरिया कानून लागू कर दिया था जिसके बाद जनता में विद्रोह बढ़ा और 1985 में सेना के दखल से राष्ट्रपति नुमेरी को अपदस्थ कर दिया गया। इसके बाद गठबंधन सरकार बनाते हुए सादिक़-अल-मेहदी प्रधानमंत्री बने और अशांति के माहौल को देखते हुए 1989 में सेना को एक बार फिर दखल देकर सैन्य सरकार बनानी पड़ी। 1993 में सेना के जनरल ओमर-अल-बशीर ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
सूडान की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कच्चे तेल पर निर्भर था और ओमर-अल-बशीर ने अमेरिकी तेल नीतियों को मानने से इनकार कर दिया था। इस बात से परेशान होकर अमेरिकी सरकार ने मिस्र की सरकार से हाथ मिलाकर 1998 में सूडान की राजधानी खोरतुम पर दो मिसाइल दाग दिए जिसके बाद सूडान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और एक गरीब देश और भी ज्यादा गरीब हो गया।
UN experts fear Sudan is sliding into a 'human rights abyss' https://t.co/chCyXULTJn
— Kvitter (@kvitter24) June 19, 2019
इन हालात में लोगो के मन मे ओमर-अल-बशीर के प्रति अविश्वास की भावना ने अपनी जगह बना ली और फिर शुरुआत हुई अलगाववादी आंदोलनों की। सूडान का दारफुर इलाक़ा हो या दक्षिणी सूडान, हर तऱफ अलगाववादी उभार शुरू हो चुका था। कई इतिहासकारो का मानना है कि इन अलगाववादी आंदोलनों के नेता अमेरिका सरपरस्ती में थे। अलगाववाद को रोकने के लिए ओमर-अल-बशीर ने सैन्य बल का इस्तेमाल किया और हज़ारों लोगो का नरसंहार किया (जिसकी वजह से ओमर-अल-बशीर पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में मुकदमा भी चला)।
अंत मे 2011 में सूडान का विभाजन हो गया जिसकी वजह से दक्षिणी सूडान में स्थित तेल के बड़े कुएं सूडान की सरकार की हाथों से निकल गए और एक बार फिर सूडान की बची खुची अर्थव्यवस्था ज़मीन पर आ गयी।
1998 से 2011 के बीच अमेरिका की सरकार ने सूडान पर कई प्रतिबंध यह कह कर लगाए कि सूडान की सरकार आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है।
जनवरी 2019 में सूडान की जनता के बीच गुस्से का लावा तब फूटा जब सरकार ने गेहूं के दाम में बहुत ज्यादा वृद्धि कर दी। लोगों ने सड़कों पर आंदोलन किया और सरकार की नीतियों पर अपना अविश्वास जताया। फरवरी 2019 में ओमर-अल-बशीर ने आपातकाल घोषित कर दिया जिसके बाद अप्रैल 2019 में सेना ने एक बार फिर सत्ता पर अधिग्रहण कर लिया।
अब जबकि जनता की मांग है कि सूडान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव हो तब बड़े बड़े लोकतांत्रिक देश की सरकारें भी जनता की इस मांग पर चुप हैं।
https://twitter.com/EmperorPhlame/status/1141365498459934720