Exclusive- ‘वो रेलट्रैक पर सोए, हम हाईवे पर सो जाएंगे’, बोले पैदल चलते छत्तीसगढ़िया मज़दूर

‘क्या करेंगे साहब..क्या रास्ता है..सरकार वगैरह को कोई परवाह नहीं हमारी..मर जाएंगे या पैदल चलकर पहुंच जाएंगे..और क्या करेंगे’, छत्तीसगढ़ से जाकर, महाराष्ट्र में काम करने वाले प्रवासी श्रमिक भागवत राम, अहमदनगर शहर से 8 किलोमीटर दूर खड़े, पुलिस और स्थानीय नेताओं के बीच फंसे – फ़ोन पर जब हमसे ये कहते हैं, तो हमारे पास ढांढस बंधाने के दो ठीक-ठाक शब्द भी नहीं होते हैं। भागवत और उनके साथियों की कहानी वही है, जो औरंगाबाद में रेल ट्रैक पर सो गए एमपी के प्रवासी श्रमिकों की कहानी है और इनका ज़िला छत्तीसगढ़ में वही है, जहां वापस पहुंचने के लिए लखनऊ में मज़दूरी करने वाले कृष्णा और प्रमिला निकले थे। ये प्रवासी मज़दूर भी छत्तीसगढ़ के बेमेतरा के ही रहने वाले हैं और अपने घर के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं।

मीडिया विजिल को जब सूचना मिली कि छत्तीसगढ़ के प्रवासी मज़दूरों का एक जत्था, अहमदनगर के पास फंसा है – तो हमने इनके साथ चल रहे भागवत राम से फोन पर बात की। भागवत भी प्रवासी श्रमिक हैं और हर साल महाराष्ट्र में मज़दूरी करने आते हैं। छत्तीसगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता प्रियंका शुक्ला ने हमको ये जानकारी दी कि पुणे के पास से कई प्रवासी श्रमिक पैदल निकले हैं और अहमदनगर के पास पहुंच गए हैं। इनकी मदद के लिए एनएपीएम के लोग पहुंचे, लेकिन इस बीच वहां पुलिस भी पहुंच गई। भागवत से बात करने पर उन्होंने हमसे कहा, ‘हम लोग सालों-,साल से पुणे आकर मज़दूरी करते हैं, इस बार हम लोग डेढ़ महीने पहले ही आए थे लेकिन फिर सब बंद हो गया है। आगे कब काम मिलेगा पता नहीं, घर लौटने के लिए कैसे इंतज़ाम होगा पता नहीं..ऐसे में हम क्या करें’ 

इसी बीच, कुछ स्थानीय नेता आ जाते हैं और उनमें से एक अनजान शख़्स भागवत से फोन लेकर हमसे बात करने लगता है। ये नामालूम शख़्स हमको महाराष्ट्र सरकार की उपलब्धियां और प्रवासी श्रमिकों के प्रति सरकार और प्रशासन की उदारता की कथा सुनाने लगा है। इस शख़्स का ज़्यादा ज़ोर, इनकी सहायता की जगह सरकार और प्रशासन के प्रचार पर महसूस होने लगता है। पता चलता है कि उनको बस में भरकर, शहर में किसी जगह ले जाने की योजना है। सिर्फ इतना ही नहीं, भागवत राम की मानें तो उनको जाने देने के लिए, उनसे पुलिस ने घूस में बड़ी रकम की मांग भी की।

भागवत राम और उनके साथियों की तस्वीर – एक्टिविस्ट प्रियंका शुक्ला से प्राप्त

इसके बाद भागवत के हाथ में दोबारा फोन आता है, उन पर दबाव है कि वो प्रशासन की भाषा में बात करें, लेकिन वो बेलाग कहते हैं, ‘हमको नहीं रुकना है..हम चलते-चलते भले ही मर जाएंगे पर रुकेंगे नहीं..किस्मत में मरना ही लिखा है, तो वो ही सही पर हमको घर जाना है..वो लोग ट्रेन की पटरी पर सोए..सोकर मारे गए..हम हाईवे पर सो जाएंगे…हाईवे पर मर जाएंगे, लेकिन कोई और रास्ता नहीं हमारे पास!’ ये कहते-कहते उनकी आवाज़ में आक्रोश और भावुकता एक साथ आ जाती है, वे कहते हैं, ‘क्या होगा हमारा, एक-डेढ़ महीने पहले ही मैं पुणे फिर से लौटा था काम करने..फिर ये सब हो गया, अब साहब कहां जाएंगे और क्या करते, तो पैदल लौटने के अलावा कोई रास्ता नहीं..’

भागवत के साथ 20 के आसपास और लोग हैं, वे बताते हैं कि और भी कई जत्थे हैं – जो पुणे के अलग-अलग इलाकों से निकल पड़े हैं और पैदल चल रहे हैं। ख़बर लिखे जाने तक एनएपीएम के एक्टिविस्ट उनको एक बस के ज़रिए, शहर में ले गए हैं, जहां उनको रात को भोजन और शेल्टर देकर – सुबह प्रयास किया जाएगा कि उनका घर जाने का आवेदन भरवा दिया जाए। लेकिन भागवत, ये ही सब लगातार देख रहे हैं और किसी भी आश्वासन के प्रति निराश हो चुके हैं, वे मीडिया विजिल से बात में कहते हैं – ‘सरकार तो कुछ करेगा नहीं, अब तो 5 साल पूरे होने पर ही उसको होश आएगा..हम भी क्या करें, घर तो जाएंगे ही…’ एक्टिविस्ट प्रियंका शुक्ला से बातचीत में वो कहते हैं, ‘सरकार ने घोषणा किया है, यहां सिर्फ घोषणा ही होगा..यहां सब लोग कहते हैं कि तुम्हारा छत्तीसगढ़ शासन का लोग सोया हुआ है..’

हाथ से लिखे हुए, इस जत्थे के साथियों के नाम

भागवत बेहद नाराज़गी में किसी भी सरकार और प्रशासन के प्रति निराश और आक्रोशित दिखाई देते हैं, वो कहते हैं कि उनको किसी आवेदन प्रक्रिया में कोई भरोसा नहीं है। वे सवाल करते हैं कि रास्ते में उनको हर जगह मज़दूर फंसे दिखाई दिए हैं, अगर सरकार हमको वापस भेज ही रही है – तो ये सब लोग इतने दिनों से क्यों फंसे हुए हैं? वो गुस्से में ये भी कह देते हैं कि वे कोई फॉर्म नहीं भरेंगे, उनको बस जाने दिया जाए। ये नाराज़गी या निराशा केवल किसी केंद्र सरकार से नहीं है, अपनी राज्य की सरकार – जो कांग्रेस की सरकार है, उससे भी ये पूरी तरह निराश हो चुके हैं।

भागवत राम का गुस्सा किसी अकेले प्रवासी श्रमिक का गुस्सा नहीं है, भागवत के साथियों की व्यथा कोई अकेली व्यथा नहीं है, भागवत और उनके साथी अकेला समूह नहीं हैं – जो एक दिन में 50 किलोमीटर पैदल चलने के बाद भी आक्रोशित हैं और रुकने की जगह, सरकार पर भरोसा करने की जगह – चलते, चले जाना चाहते हैं। देश कोरोना की बीमारी से भी बड़े संकट से जूझ रहा है और देश का सुविधाभोगी वर्ग संक्रमण से डर कर बालकनी में मास्क लगाए खड़ा है। दरअसल मास्क हम बहुत पहले लगा चुके थे, अपने चेहरे पर ही नहीं – संवेदनाओं और समझ पर भी। हम ये मास्क नहीं हटाएंगे और गरीब सड़क पर तड़प कर मरता रहेगा। ये किसी मीडिया की ख़बर का हिस्सा नहीं हैं, जब तक कि इनमें से कोई मारा नहीं जाता..मरे हुए समाज में गरीब की नियति यही है..


ये रिपोर्ट मयंक सक्सेना ने छत्तीसगढ़ के प्रवासी श्रमिक भागवत राम और बिलासपुर की एक्टिविस्ट प्रियंका शुक्ला से बात कर के लिखी है। हमारे पास इस बातचीत के ऑडियो रेकॉर्ड्स हैं, जो ज़रूरत पड़ने पर हम भागवत राम की अनुमति से प्रकाशित कर सकते हैं।

 

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हम सब कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहे हैं और अपने घरों में बंद रहने को मज़बूर हैं। इस आसन्न संकट ने समाज की गैर-बराबरी को भी सतह पर ला दिया है। पूरे देश में जगह-जगह मज़दूर फंसे हुए हैं। पहले उन्हें पैदल हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करते हुए अपने गांव की ओर बढ़ते देखा गया था। ग्रामीण अर्थव्यवस्था पहले ही चौपट हो चुकी है, फसलें खेतों में खड़ी सड़ रही हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण दूर दराज के इलाकों से कोई ग्राउंड रिपोर्ट्स नहीं आ पा रहीं। सत्ता को साष्टांग मीडिया को तो फ़र्क़ नहीं पड़ता, लेकिन हम चाहते हैं कि मुश्किलों का सामना कर रहा ग्रामीण भारत बहस के केंद्र में होना चाहिए। 
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