कंपनियों के हक़ में यूटर्न: अब सेबी नहीं लेगा लोन ना चुकाने वालों की ख़बर !

गिरीश मालवीय

मोदी सरकार खुद अपने द्वारा बनाये गए कानून को कैसे फेल करती है कल इसका सबसे बड़ा उदाहरण सामने आ गया है। इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के तहत यह प्रावधान किया गया था कि यदि एक ऋणकर्ता तय तारीख तक पेमेंट नहीं करता है, तो ऋणदाता अगले दिन से ही दिवालियापन के खिलाफ होने वाली कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू कर सकता है
ओर इस प्रक्रिया को व्यहवार में लाने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने लिस्टेड कंपनियों को आदेश दिया थे कि यदि वे ब्याज और लोन चुकाने में असफल रहती हैं, तो बात की जानकारी स्टॉक एक्सचेंज को देना अनिवार्य होगा ओर इसकी जानकारी डिफॉल्ट करने के एक ही दिन के भीतर देने की बात थी
वैसे लिस्टेड कंपनियों को भौतिक घटनाओ और सूचनाओं के बारे में स्टॉक एक्सचेंज को बताना होता है. लेकिन अब कंपनियों को अपनी देनदारी में हुई चूक के लिए विशेषरूप से बताने का प्रावधान किया गया था और इसमें निम्नलिखित जानकारिया देना अनिवार्य किया गया था
1 इंट्रेस्ट पेमेंट
2 डेट सिक्योरिटीज के एवज में इंस्टॉलमेंट
3 बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस के लोन
4 एक्सटर्नल कमर्शियल बॉरोइंग्स (ईसीबी)
ये सारे प्रावधान 1 अक्टूबर से लागू किये जाने वाले थे लेकिन कल सेबी ने एक सर्कुलर जारी कर कहा है कि अब अगली सूचना तक लिस्टेड कंपनियों को लोन डिफॉल्ट की जानकारी स्टॉक एक्सचेंज को देना जरूरी नहीं होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर लिस्टेड कंपनियां लोन चुकाने में चूक गईं, तो उन्हें स्टॉक एक्सचेंज को इसकी जानकारी नहीं देनी होगी
सबसे महत्वपूर्ण ओर ध्यान देने की बात तो यह है कि सेबी ने दिशानिर्देश पर अनुपालन टालने की कोई वजह स्पष्ट नहीं की हैं सेबी के इस यू टर्न पर मार्केट एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं
जानकारों का कहना है कि एक तरफ कहा जा रहा है कि सिस्टम में पारदर्शिता होनी चाहिए। दूसरी ओर सेबी लिस्टेड कंपनियों के बैंक डिफॉल्ट को पर्दे में रखना चाहती है। यह निवेशकों के साथ न्याय नहीं है
दूसरी तरफ यह कहना है कि बैंक डिफॉल्ट की जानकारी होने पर कंपनियों के शेयर गिर सकते हैं बेहद गलत है क्योंकि जब बाद में कंपनियों के डिफॉल्ट होने की बातें सामने आएंगी तो ऐसे में क्या उन कंपनियों के शेयर नहीं गिरेंगे ? बल्कि इससे तो छोटे निवेशकों को भारी नुकसान होगा
इस नियम को बनाने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के बैड लोन की चुनौती से कुछ पार पाया जा सके. देश के 43 बैंकों का एनपीए 8 लाख करोड़ रुपये से ऊपर जा चुका है ओर विभिन्न कंपनियों पर बैंकों का 10 लाख करोड़ बकाया है
देश में सरकारी बैंकों के बढ़ते एनपीए का बड़ा कारण बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा कर्ज का ना चुकाना बड़ा कारण है. माल्या इसका सबसे बड़ा उदाहरण है
आज जेपी समूह यानी जयप्रकाश ग्रुप ने करीब 4,460 करोड़ रुपये के कर्ज और अन्य भुगतान में चूक या डिफॉल्ट किया है. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो जेपी ग्रुप पर इस समय लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है जबकि क्रेडिट सुईस की देश के टॉप 10 डिफॉल्टर लिस्ट में जेपी ग्रुप पर 75,000 करोड़ रुपये के कर्ज की बात कही गई थी.
ओर बात सिर्फ जे पी की नही है सेबी ऐसी कंपनियों पर सख्त कार्रवाई से बचेगी जो जेपी की तरह लोन डिफॉल्ट के मामलों में फंसे हों. इस फैसला से कई और लिस्टेड बिल्डर कम्पनीया को फायदा पुहंचेगा
 यानी कि साफ है कि जब  छोटे उद्योग धंधों की बात आती है तो नियम कायदे को लागू करने में जल्दबाजी से काम लिया जाता है और जब बड़े पूंजीपतियों पर कार्यवाही का मौका आता है तो मोदी सरकार अपने निर्णय से पलटने में जरा देर नही लगाती
शायद इसे ही मोदींनामिक्स कहते हैं

 




गिरीश मालवीय

लेखक इंदौर (मध्यप्रदेश )से हैं , ओर सोशल मीडिया में सम-सामयिक विषयों पर अपनी क़लम चलाते रहते हैं ।

 

 



 

 

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