उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विकासनगर विधानसभा सीट के चुनाव में इस्तेमाल की गई करीब डेढ़ सौ ईवीएम को सील करने का आदेश दिया है। कांग्रेस प्रत्याशी नवप्रभात ने ईवीएम छेड़छाड़ का अंदेशा जताते हुए हाईकोर्ट में अपील की थी। ज़ाहिर है, चुनाव आयोग हाईकोर्ट के नोटिस का जवाब देगा। आयोग का दावा है कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर के 27 इंजीनियरों और विज्ञानियों ने माँग की है कि उन्हें इसकी जाँच करने की इजाज़त दी जाए।
हालाँकि आम आदमी पार्टी समेत कई पार्टियाँ ईवीएम में गड़बड़ियों का गंभीर आरोप लगाती रही हैं, लेकिन सवाल प्रमाण का है। अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि अगर आयोग मशीनें उपलब्ध करा दे तो वे इसकी गड़बड़ी प्रमाणित कर देंगे। मीडिया में यह बात ज़ोर-शोर से आई थी कि आयोग ने गड़बड़ी साबित करने की चुनौती दी है, लेकिन बाद में पता चला कि सब सूत्रों के हवाले से है। आयोग ने औपचारिक रूप से कोई चुनौती नहीं दी है। बाद में कहा गया कि 1 मई 2017 के बाद ऐसा किया जा सकता है।
लेकिन अब आयोग के सामने एक ऐसी चुनौती आ गई है जिसे अस्वीकार करना उसकी साख पर सवाल खड़े कर सकता है। आईआईटी समेत देश विदेश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों से जुड़े 27 विज्ञानियों ने मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी को पत्र लिखकर कहा है कि उन्हें ईवीएम की जाँच करने का मौक़ा दिया जाए। उन्होंने पत्र में लिखा है कि मानवीय त्रुटियाँ डिज़ायन का हिस्सा होती हैं और ज़रा सी भी चूक नतीजे को प्रभावित कर सकती है। गड़बड़ी वे लोग भी कर सकते हैं जिनकी ईवीएम तक पहुँच है। यह पत्र 24 अप्रैल को भेजा गया था।
गौरतलब है कि आज ईवीएम पर सवाल उठाने वालों का मज़ाक उड़ाने वाली बीजेपी ने कभी इसके ज़रिये फ़र्जीवाड़ा होने की आशंका को लेकर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया था। बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ब़ाकायदा किताब लिखी थी-डेमोक्रेसी एट रिस्क-कैन वी ट्रस्ट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?’ इस किताब की प्रस्तावना में बीजेपी के तब के चेहरे लालकृष्ण आडवानी ने लिखा था– “टेक्नोलॉजी के नजरिए से मैं जर्मनी को सबसे विकसित देश समझता हूं। वहां भी ईवीएम के इस्तेमाल पर बैन लगा चुका है। आज अमेरिका के 50 में से 32 स्टेट में ईवीएम पर बैन है। मुझे लगता है कि अगर हमारा इलेक्शन कमीशन भी ऐसा करता है, तो इससे लोकतंत्र मजबूत होगा।”
बहरहाल अब बीजेपी यूटर्न ले चुकी है। टीवी के पर्दे पर हमेशा नमूदार रहने वाले जीवीएल नरसिम्हा अपनी किताब को रद्दी घोषित कर चुके हैं या नहीं, कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तो तय है कि मोदी राज में उन्हें लोकतंत्र पर कोई ख़तरा नहीं दिखता।
बहरहाल, आयोग के सामने एक मौक़ा है कि वह इन प्रतिष्ठित विज्ञानियो को ईवीएम की जाँच पड़ताल करने का मौक़ा दे ताकि जनता के बीच भरोसा जग सके। लोकतंत्र में भरोसा सबसे बड़ी चीज़ है। संविधान तब तक ही पवित्र है जब तक लोग उस पर भरोसा करते हैं।
आप विज्ञानियों के पत्र को यहाँ पढ़ सकते हैं।