रवीश कुमार
पिछले अक्तूबर में जब से यह रैकिंग आई है तब से भारत में जश्न मन रहा है। जानते हुए कि रैकिंग विवादित हो चुकी है, फिर भी इसका उल्लेख बजट में किया गया। एक स्वाभिमानी मुल्क को ऐसा नहीं करना चाहिए। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस से तुकबंदी करते हुए एक नारा भी गढ़ा गया ईज़ ऑफ लीविंग। ये इतना फ़र्ज़ी नारा है, कि आप ख़ुद समझ सकते हैं लेकिन अब सब कुछ नारा ही है। जीवन के हर सूचकांक पर हम नीचे हैं मगर नारा चलाया जा रहा है जीने की आसानी। किस चीज़ में जीने की आसानी हो गई है ?
जस्टिन सैंडफर और दिव्यांशी वाधवा का इस पर लेख दुनिया भर के अख़बारों में छप रहा है। the print ने भी इसे छापा है। इनका कहना है कि मेथड बदल देने से रैकिंग बदली है न कि स्कोर बदला है। आप इस लेख को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि आपको किस अंधेरे में रखा जाता है और एक फर्ज़ीवाड़े को तथ्य बनाकर जनमानस में ठेल दिया जाता है। हालत यह है कि
उन्नाव से एक ख़बर पूरी दुनिया में सुर्ख़िया बटोर रही है। राजेश यादव नाम के एक झोला छाप डाक्टर ने गांव गांव घूम कर मैजिक दवा के नाम पर इंजेक्शन दिया। इससे 33 लोगों को एड्स हो गया है। डाक्टरों की घोर कमी के कारण हमारे समाज में भांति भांति के वैध अवैध डाक्टर घूम रहे हैं। अब तो नया बिल आ रहा है कि आर्युवेदिक डाक्टर भी अंग्रेज़ी यानी एलोपैथिक दवा लिख सकते हैं। डॉक्टर लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा का लोहा माना जाता है। इसके चेयरमैन मैल्कम ग्रांट मुंबई में थे। उन्होंने कहा कि 50 करोड़ लोगों तक बीमा कवर योजना पहुंचाने में वक्त लगेगा। बेहतर है कि सरकार चमकदार अस्पताल बनाने की जगह प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्रों में निवेश करे। ग्रांट का कहना है कि चमकदार स्मार्ट अस्पताल देखकर हर किसी को अच्छा लगता है लेकिन ज़रूरत है कि हम साधारण परंतु बेहतर जांच केंद्रों की स्थापना करें। यह ब्रिटेन के स्वास्थ्य सेवा के प्रमुख का कहना है। आज भारत का हर अस्पताल इसी मॉडल पर बन रहा है। देखने में अच्छा होना चाहिए, डॉक्टर हो या न हो।
आनंद महिंद्रा ने कहा है कि अगर इसी रफ़्तार से कारें बिकती रहीं तो हमारे शहर नरक हो जाएंगे। आप इस नरक का रोज़ अनुभव करते भी हैं। पचीस साल से पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर बहस सुन रहा हूं मगर हुआ कुछ नहीं। आर्थिक सर्वे में एक डेटा है। भारत में राजमार्गों की लंबाई 2001 में 13 लाख किमी से बढ़कर 2016 तक करीब 56 लाख किलोमीटर से भी ज़्यादा हो गई है। लेकिन इसी दौरान निजी कारों, बाइक, स्कूटर की संख्या भी खूब बढ़ी है। राजमार्ग पर इन्हीं का दबदबा है न कि बसों और ट्रकों का।
कई बार प्री पेड बैलेंस बचा रहा जाता है। उपभोक्ता इस्तमाल नहीं कर पाते। टेलिकॉम नियामक संस्था TRAI ने बंद हो चुकी RCOM से कहा है कि उसके पास ऐसे उपभोक्ताओं के 150 करोड़ हैं, वापस कर दे। कंपनी पैसा लौटाने में आना कानी कर रही है,सोचिए आपके आपके खाते में बचा दस रुपया आपके लिए तो कुछ नहीं होगा मगर जुड़ते जुड़ते किसी के खाते में 150 करोड़ हो जाता है।
भारत सरकार ने बताया है कि पिछले तीन साल में 2017 में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं काफी बढ़ीं हैं। 2015 में 715 सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं दर्ज हुई थीं। 2017 में इनकी संख्या 822 हो गई ।
रवीश कुमार मशहूर टीवी पत्रकार हैं।