‘कालिदास’ हैं आशुतोष के थप्पड़-कांड से ‘आनंदित’ पत्रकार !

कई पत्रकार इन दिनों पूर्व पत्रकार और आम आदमी पार्टी नेता आशुतोष के साथ हुए ‘थप्पड़ कांड’ की याद दिला रहे हैं। 1996 में आशुतोष को बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने थप्पड़ मारा था, जब वह आज तक के रिपोर्टर बतौर उनसे बाइट लेने गये थे। इसके ख़िलाफ़ तब पत्रकारों ने ज़ोरदार प्रतिवाद दर्ज कराया था। हिंदी टीवी पत्रकारिता के मसीहा साबित कर दिए गये एस.पी.सिंह ने भी सड़क पर उतर कर पत्रकारिता की आज़ादी के पक्ष में नारा लगाया था।

लेकिन जो थप्पड़कांड पत्रकार एकता का आधार बना था, उसे अब कुछ पत्रकार ही जायज़ ठहराने में जुटे हैं ताकि आशुतोष से हिसाब बराबर किया जाए। दरअसल, दिल्ली सरकार के मंत्री संदीप कुमार की आपत्तिजनक सीडी की खबर को चटख़ारे लेकर प्रकाशित-प्रसारित किये जाने पर आशुतोष ने कड़ी आपत्ति जताई थी। उन्होंने एनडीटीवी के अपने कॉलम में संदीप कुमार को पार्टी से बाहर करने को तो जायज़ ठहराया था लेकिन सवाल उठाया था कि अगर दो लोग किसी निजी स्थान पर दैहिक संबंध बनाते हैं तो यह उनका निजी मसला है। उन्होंने इस संबंध में देश के कुछ बड़े नेताओ के निजी जीवन का हवाला देते हुए लिखा है कि शुक्र है कि तब टीवी चैनल नहीं थे। यह भी कि अपने शिष्यों की हरक़त से एस.पी.सिंह को बहुत तक़लीफ़ हुई होगी।

आशुतोष के इस लेख पर राजनीतिक दलों ने बड़ा हंगामा मचाया। सोशल मीडिया पर थप्पड़ कांड की याद दिलाई गई लेकिन इस काम में कभी आशुतोष के सहयोगी और एस.पी.सिंह की टीम के सदस्य रहे मिलिंद खांडेकर का शामिल होना आश्चर्य पैदा करता है। वे आजकल एबीपी चैनल की कमान संभाल रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने एबीपी के सीनियर प्रोड्यूसर प्रकाश नारायण सिंह का एक ब्लॉग फ़ेसबुक पर शेयर किया जिसमें याद दिलाया गया है कि आशुतोष वे दिन भूल गये जब कांशीराम की ‘निजता’ का उल्लंघन करने पर उन्हें थप्पड़ पड़ा था। क्या वह निजता का उल्लंघन नहीं था। आप यह ब्लॉग यहाँ पढ़ सकते हैं।

मिलिंद ने यह लेख शेयर करके बता दिया कि वे इससे पूरी तरह सहमत हैं। यही नहीं, एस.पी.सिंह के साथ काम कर चुके कुछ पूर्व पत्रकारों के ज़रिये एबीपी चैनल पर आशुतोष की लानत-मलामत भी कराई गई।

हाँलाकि, एबीपी चैनल के एंकर अभिसार शर्मा ने भी सीडी कांड पर चैनलों के रुख पर सवाल उठाये थे। लिखा था कि चैनलों ने यह भी नहीं देखा कि यह सीडी कई साल पुरानी नज़र आ रही है। संदीप आज की तुलना में दुबला लग रहा है और 2010 का कैलेंडर उस कमरे में टँगा दिख रहा है जहाँ यह सीडी बनी थी।  (ज़ाहिर है कठघरे पर एबीपी भी खड़ा हुआ) लेकिन चैनल ऐसे सवालों को गोल करते हुए सीडी से टीआरपी पेरता रहा।

बहरहाल, थप्पड़ कांड के चश्मदीद और इस घटना कीएफआईआर कराने वाले, पूर्व टीवी पत्रकार इसरार अहमद शेख़ ने फ़ेसबुक पर साफ़-साफ़ लिखा कि एबीपी झूठ बोल रहा है। पढ़िये–

Israr Ahmed Sheikh

September 4 at 12:22pm ·

Dear #ABPNEWS,
जिस घटना का हवाला देकर आपने आशुतोष पर हमला बोला है, उस घटना में आशुतोष ने किसी निजता का उल्लंघन नहीं किया था।

मैं उस घटना (मेरी शिकायत पर ही FIR दर्ज की गई थी) का पीड़ित भी हूँ और चश्मदीद गवाह भी। जिस वक़्त की ये घटना है तब टीवी पत्रकारिता में ABP का जन्म भी नहीं हुआ था और शायद लेखक का भी नहीं।

मुझे अच्छी तरह से याद है कि घटना के वक़्त आशुतोष मेरे साथ थे। हम कांशीराम के घर से क़रीब पचास मीटर की दूरी पर थे। एनडीटीवी/स्टार न्यूज़ की माया मीरचंदानी भी हमारे साथ थीं। हम एनडीटीवी की टाटा सूमो के बोनट का सहारा लेकर लंच कर रहे थे। तभी कांशीराम और उनके गार्ड्स ने बाहर आकर मारपीट शुरु कर दी। सबसे ज़्यादा चोट मुझे आई और मैं रातभर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती रहा।

आशुतोष से मेरे निजी मतभेद हैं। हम दोनों के बीच अब बातचीत नहीं होती। तब भी नहीं जब मैं AAP का समर्थन कर रहा था। शायद कभी होगी भी नहीं मगर निजता के इस मुद्दे पर मैं आशुतोष के साथ हूँ। ABP को लिखने से पहले तथ्यों की जाँच कर लेनी चाहिए थी। अदालत ने भी इसे निजता का उल्लंघन नहीं माना था।’

 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आशुतोष से ‘हिसाब बराबर’ करने के फ़ेर में’ कुछ पत्रकार ही पत्रकारों की पिटाई के पक्ष में खड़े हो रहे हैं। बेहतर होता कि वे लिखकर आशुतोष के लेख का जवाब देते, उनके तथ्यो की धज्जियाँ उड़ाते, लेकिन ऐसा करने की जगह वे ‘आशुतोष को बलात्कारी को बचाने वाला’ (हाँलाकि आशुतोष के लिखते वक्त तक कोई मुक़दमा दर्ज नहीं हुआ था) साबित करने में जुट गये और थप्पड़-काँड की याद दिलाते रहे। वे भूल गये कि इसका ख़ामियाज़ा नए पत्रकारों को थप्पड़ खाकर भुगतना पड़ सकता है।

ये पत्रकार हैं या डाल पर बैठे कालिदास। जिस डाल पर बैठे हैं, उसे काट तो रहे ही हैं !

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