UP: क्‍या RSS की बैठक में OBC मंत्रियों का नाम लिस्‍ट से काटा गया?

New Ministers of Uttar Pradesh Cabinet after oath ceremoney in presence of Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath and Governer Anandiben Patel at Governer house in Lucknow on wednesday.Express photo by Vishal Srivastav 21082019

क्या बीजेपी वोट लेने के बाद अपने मूल चरित्र की ओर लौटने लगी है? शायद यह सच है. वो निखर कर सवर्णवाद पर आती दिख रही है. उस लाइन पर जिसके लिए वो जानी पहचानी जाती है. जिसे सींचने का काम नागपुर से होता है. सबके साथ और विकास का दावा करने वाली बीजेपी और संघ को जरूर बताना चाहिए कि यूपी की योगी सरकार के कैबिनेट विस्‍तार में कितने ओबीसी और एससी को जगह मिली है?

चर्चा है कि 20 अगस्त को लखनऊ में हुई संघ की एक बैठक में ओबीसी विधायकों का नाम मंत्रियों की सूची से हटा दिया गया था. यह कोई नई बात नहीं है. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पिछड़े वर्ग के चेहरे को प्रमोट कर दलितों और पिछड़ों का वोट तो ले लिया लेकिन मुख्यमंत्री बनाया सवर्ण को.

यूपी की सबसे बड़ी आबादी ओबीसी और एससी की है लेकिन सरकार में ये हाशिये पर हैं.

यादवों ने ‘हिन्दू’ बनकर बीजेपी को वोट दिया. अगर वह सिर्फ यादव बनकर वोट देता तो उनका वोट अखिलेश यादव को जाता. यादवों को यह भरोसा था कि बीजेपी उन्हें भी अपनी सरकार में उचित प्रतिनिधित्व देगी लेकिन समाजवादी पार्टी का परंपरागत वोटर रहने के नाते यादवों को सत्ता की हिस्सेदारी से वंचित रखा गया.

कुशवाहा समाज ने बसपा और सपा का साथ छोड़कर कमल खिलाया, लेकिन उसे कितनी हिस्सेदारी मिली? बीते 21 अगस्त को जो मंत्रिपरिषद का विस्तार हुआ, उसमें ओबीसी के सबसे बड़े हिस्से यादव और कुशवाहा को जीरो मिला.

जो संघ और बीजेपी शुरू से ही शोषित-वंचित वर्गों का हक छीनने और मनुवादी ताकतों को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं, वे सामाजिक न्याय के लिए काम क्यों करेंगे?

सामंती विचारधारा को मानने वाला कोई भी संगठन शोषित-वंचित वर्गों को ज्यादा प्रतिनिधित्व देकर खुद की सत्ता को चुनौती क्यों देना चाहेगा?

लेकिन अब यह सवाल जरूर उठेगा कि क्या यही बीजेपी का ‘सबका साथ सबका विकास’ है?  क्या यही आरएसएस का सामाजिक न्याय है?

सपा-बसपा जैसे दलों के परंपरागत वोटर, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया था, उन्हें उम्मीद थी कि मंत्रिमंडल के विस्तार में ‘सबका साथ सबका विकास’ वाले फार्मूले पर काम करते हुए बीजेपी ‘सामाजिक न्याय’ के सिद्धांतों को मजबूत करने के लिए काम करेगी लेकिन योगी की टीम में सवर्णों खासकर ब्राह्मणों का ही बोलबाला नजर आता है.

ऐसा लगता है कि प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और संगठन मंत्री सुनील बंसल की कैबिनेट विस्तार में बिल्कुल भी नहीं चली और मनुवादी व्यवस्था को मजबूत करने के लिए दिन रात काम करने वाले संघ के दबाव में योगी कैबिनेट में ज्यादातर ब्राह्मण भर दिए गए.

यूपी की कुल आबादी में करीब 8 से 9 फीसदी यादव हैं लेकिन योगी सरकार में इनकी हालत देखिए. इतने बड़े मंत्रिपरिषद में गिरीश यादव अकेले यादव हैं. वे जौनपुर सदर से विधायक हैं. इस बार उम्मीद थी कि यादव समाज को प्रतिनिधित्व मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ जबकि बताया जाता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 30 फीसदी यादवों ने बीजेपी को वोट किया.

रही बात कुशवाहा समाज की तो उसे भी विस्तार में कोई हिस्सा नहीं मिला जबकि यह समाज पूरी तरह बीजेपी के साथ है. यही हाल रहा तो ओबीसी वर्गों का बीजेपी से खिसकना तय है क्योंकि अब तो यह साफ दिख रहा है कि बीजेपी सवर्णों की पार्टी है जिसे संचालित करने का काम पर्दे के पीछे से संघ करता है.

विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सहयोगी रहे ओमप्रकाश राजभर नें जब पिछड़े वर्गों के हक में आवाज बुलंद की तो उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया. अपना दल के आशीष पटेल के भी मंत्री बनने की चर्चाएं थीं लेकिन उन्हें भी योगी सरकार में जगह नहीं मिल सकी.

विधानसभा चुनाव में लोगों ने जातीय समीकरणों को तोड़ते हुए बीजेपी को वोट दिया. बीजेपी ने जाति के जरिये जीत का जायका भी चख लिया लेकिन जीत के बाद सवर्णों को छोड़ बीजेपी ने अन्य जातियों के अरमानों पर पानी फेर दिया.

दरअसल भाजपा के दो समर्थक वर्ग हैं- एक वर्ग बहुत ही मासूम है और दूसरा उतना ही चतुर.

जो चतुर वर्ग है वह सारी चीजों को समझता है और अपने निजी हितों के लिए भाजपा का समर्थन कर रहा है. वह जानता है कि उसकी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सत्ता की रक्षा के लिए भाजपा का मजबूत रहना जरूरी है.

दूसरा वर्ग भोले-भाले और मासूम समर्थकों का है जो बड़े-बड़े सपने और देश की तरक्की के झूठे वादे के चक्कर में उलझा हुआ है और तमाम तरह के शोषण और सामाजिक अन्याय को सह कर भी भाजपा को सपोर्ट कर रहा है.

खैर, 2022 आने में अब ज्यादा दिन शेष नहीं हैं. बीजेपी की धोखा देने वाली राजनीति कब तक चलेगी?


लेखक युवा रालोसपा के राष्‍ट्रीय सचिव हैं

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