लेकिन अत्याचार की इन कहानियों को अगर कोई अपना राजनीतिक उल्लू साबित करने के लिए इस्तेमाल करे तो वहीं पहुँच जाता है जहाँ पाकिस्तान के तमाम हुक्मरान खड़े नज़र आते हैं। जिनकी नज़र में ‘सेक्युलर’ भारत के हर मुसलमान को अत्याचार का शिकार होना पड़ता है। यह दुष्प्रचार इस क़दर है कि तमाम पाकिस्तानियों को यह भी लगता है कि भारत में मुसलमानो को नमाज़ पढ़ने की आज़ादी भी नहीं। उधर, भारत में भी व्हाट्सऐप .युनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में यह बात कूट-कूटकर भरी है कि पाकिस्तान में हर हिंदू का धर्मांतरण होता है और वहाँ हिंदुओं की आबादी न के बराबर रह गई है।
हक़ीक़त यह है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी के बढ़ने की रफ्तार भारत में हिंदुओं की आबादी बढ़ने की रफ़्तार से कहीं ज़्यादा है। इस सिलसिले में बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित इस लेख को देखा जा सकता है।
पर इस पर बात आगे। पहले जान लीजिए कि नागरिकता संशोधन बिल पर हुई बहस के दौरान पाकिस्तान की हिंदू आबादी के बारे में किस कदर झूठ बोला जा रहा है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा – “1947 में पाकिस्तान में 23 फीसदी हिंदू थे लेकिन वहीं साल 2011 में ये आकंड़ा 3.4 फीसदी रह गया. पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए भारत मूकदर्शक नहीं बन सकता. वहीं भारत में अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ी है. पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों पर भारत चुप नहीं रहेगा।”
क्या अमित शाह का दावा ठीक है या फिर ये व्हाट्सऐप युनिवनर्सिटी का प्रचार है जो अब संसद की बहसों में भी शामिल हो गई है। अज़ादी के पहले जनगणना 1941 में हुई थी इसलिए 1947 की जनसंख्या उसी जनगणना के आधार पर बतायी जाती है। इसके बाद बड़ी तादाद में आबादी इधर से उधर और उधर से इधर आयी-गयी। इस तथ्य को छिपा लिया जाता है जबकि आबादी का स्थानांतरण स्थिर होने के बाद जो जनगणना 1951 में हुई। इसके नतीजों के आधार पर ही आबादी की कोई सही तस्वीर सामने आ सकती है।
1941 की जनगणना के मताबिक भारत की कुल आबादी में मुस्लिम जनसंख्या लगभग चौथाई (24.3%) थी जो बँटवारे के बाद 1951 की जनगणना के मुताबिक 9.8% रह गई। 1951 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान में 12.9 फ़ीसदी हिंदू थे ( पश्चिमी पाकिस्तान में 1.6 % और पूर्वी पाकिस्तान में 22.05 %) । 2011 की जनगणना के मुताबिक बांग्लादेश की कुल आबादी का 8.5% हिंदू हैं यानी करीब एक करोड़ 40 लाख।
अमित शाह जैसे नेता, बड़ी सफ़ाई से पाकिस्तान के संबंध में 1941 की जनगणना के आँकड़ों का इस्तेमाल करते हैं और आबादी स्थानांतरण के प्रभाव को छिपा जाते हैं। यही नहीं, वे बांग्लादेश निर्माण की वजह से पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी में आई भारी कमी पर भी पर्दा डाल देते हैं जबकि पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी पश्चिमी पाकिस्तान से कई गुना थी जो बांग्लादेश बना। बांग्लादेश निर्माण के दौरान बड़ी तादाद में वहाँ के लोग भारतीय सीमाओं में आए। इसमें हिंदू और मुसलमान दोनों थे। असम का एनआरसी प्रयोग बताता है कि हिंदुओं के आने की तादाद मुसलमानों से कहीं ज़्यादा है। वे बेहतर अवसर की वजह से आये न कि धार्मिक उत्पीड़न की वजह से। वैसे भी ‘दरवाज़ा बांग्लादेश में पिछवाड़ा भारत’ में जैसे अस्वाभाविक बँटवारे का यह स्वाभाविक नतीजा भी है।
पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टैटिक्स के मुताबिक 2017 की जनगणना के हिसाब से पाकिस्तान की आबादी 207 मिलियन (20 करोड़ 70 लाख) है। इससे पहले 1998 में जनगणना हुई थी जब पाकिस्तान में हिंदुओं की तादाद 2.1 मिलियन (20 लाख दस हजार) थी यानी कुल आबादी का 1.6 फीसदी जो 2017 की जनगणना के मुताबिक 3.3 फीसदी हो गई है।
हालाँकि ‘हिंदू काउंसिल ऑफ पाकिस्तान’ के मुताबिक हिंदुओं की आबादी पाकिस्तान में 4 फ़ीसदी है। 1981 की जनगणना की तुलना में पाकिस्तान में हिंदू आबादी 93 फ़ीसदी बढ़ी है। हिंदू काउंसिल के मुताबिक पाकिस्तान में 80 लाख हिंदू रहते हैं। सिंध में सबसे ज़्यादा हिंदू आबादी है। अल्पसंख्यकों में आबादी के बढ़ने की रफ़्तार बहुसंख्यों की तुलना में ज़्यादा होती ही है। जैसे कि भारत में आबादी की रफ्तार घटने के बावजूद मुस्लिम आबादी बढ़ने का प्रतिशत हिंदुओं की तुलना में ज्यादा रहा।
व्हाट्सऐप युनिवर्सिटी के जरिये भारत में मुस्लिम आबादी के बारे में अनाप-शनाप फैलाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान में 24 फीसदी हिंदू थे जो दो फीसदी रह गये जबकि भारत में मुस्लिम 24 फीसदी हो गए।
हक़ीक़त ये है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में मुस्लिम आबादी 14.2% है।
जैसा कि इस लेख की शुरुआत में ही कहा गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार होते हैं लेकिन इस आधार पर वहाँ हिंदुओं की आबादी घटने के बारे में झूठ बोलने को जायज़ नहीं ठहरा या जा सकता। जैसे कि हिंदुस्तान को लिंचिस्तान बनाने की तमाम कोशिशों के बावजूद द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को खारिज करने वाले भारत की तुलना इसी सिद्धांत की बुनियाद पर खड़े पाकिस्तान से नहीं की जा सकती।
लेखक मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक हैं।