6.3% या 4.7% ? आँकड़ों के खेल में छिपा जीडीपी का सच !

अर्थव्यवस्था में भारी सुधार की खबरें फिर चल पड़ी हैं| इसकी सच्चाई को भी सरकारी प्रेस नोट के जरिये जान लेते हैं (नीचे दिया है)|
नीचे वाली सारणी – खर्च के आधार पर जीडीपी वाली – को ध्यान से देखें तो निजी/सरकारी खर्च, आयात-निर्यात, मूल्यवान वस्तुओं के हिस्से में कुछ खास फर्क नहीं है| स्थाई पूंजी में नया निवेश (GFCF) तो ओर भी घटा है| फिर जीडीपी वृद्धि दर कैसे बढ़ी?
2016 की दूसरी तिमाही के मुकाबले कुल जीडीपी 3,46,589 करोड़ बढ़ी है जिसमें से 59284 करोड़ या कुल जीडीपी का 1.4% विसंगति या गड़बड़ी (discrepancy) है जो कुल वृद्धि का 17.10% है| इसे निकाल दिया जाये तो असली नॉमिनल जीडीपी वृद्धि सरकारी आंकड़े 9.4% के बजाय बनती है 7.8%; अब इसमें से 3.1% मुद्रास्फीति या deflator निकालने के बाद वृद्धि 6.3% नहीं बल्कि 4.7% ही रह जाती है|

यह विसंगति आती कहां से है? यह जीडीपी खर्च के आंकड़ों से गणना कर बनाई गई है पर यह आमदनी के आंकड़ों से मेल नहीं खाती| इस फर्क को ही विसंगति कह दिया जाता है, यह आंकड़ों की बाजीगरी में वक्त जरुरत काम आता है, जैसे कि गुजरात चुनाव के ठीक पहले अब !\

मुकेश असीम



 

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