प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली की एक चुनावी जनसभा में शाहीन बाग आंदोलन को लेकर सार्वजनिक तौर पर जो कहा कि यह संयोग नहीं प्रयोग है, तो हमें उसकी क्रॉनोलॉजी को समझने में भूल नहीं करनी चाहिए.
आज के दैनिक जागरण अखबार सहित सभी दिल्ली से निकलने वाले सभी बड़े अखबारों का मुख्य पेज देखिए. सभी अखबारों की पहली खबर अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण है. इसी के साथ-साथ लगभग सभी अखबारों ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के बारे में कर्माटांड फॉउडेशन का पूरे पेज का विज्ञापन दिया है. यह विज्ञापन उन सभी अखबारों में है जो लगभग सभी घरों में पहुंचते हैं, अपवादों को छोड़कर इंडियन एक्सप्रेस या फिर इकोनोमिक टाइम्स में यह विज्ञापन नहीं है.
अब खबर को डीकोड करके समझने की कोशिश करें. इस फैसले के बाद अयोध्या का कोई भी जिलाधिकारी गैर-हिन्दू नहीं हो सकता अर्थात अब मुसलमान अयोध्या के जिलाधिकारी नहीं होंगे और न ही राज्य सरकार के मनोनीत सदस्य मुसलमान होगे. कहने का मतलब यह कि यह सवर्ण राष्ट्र की दिशा में पहला ठोस कदम मोदी-अमित शाह ने उठाया है. यह स्वतंत्रता के इतिहास में शायद पहली बार हो रहा है जब नौकरशाही को हिन्दू और गैर-हिन्दू में विभाजित किया गया है.
बीजेपी लगभग छह वर्षों से केन्द्र की सत्ता में रही है और देश के अनेक राज्यों में उसकी सरकार रही है. इस लिहाज से बीजेपी को दिल्ली में अपने काम के आधार पर वोट मांगना चाहिए था लेकिन मोदी-शाह के तूफानी दौरे में एक बार भी विकास के किसी मॉडल का जिक्र तक नहीं हुआ. ठीक उलट शाहीनबाग में एनआरसी के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को देश के प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मुद्दा बनाया.
बीजेपी का प्रयोग तब पूरी तरह असरकारी होता है जब वह पूरे देश या समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने में सफल होती है. इससे उसकी सत्ता अक्षुण्ण रहती है या फिर मिल जाती है. अगर बीजेपी के इस फॉर्मेट को देखें तो हम पाते हैं कि जहां समाज का सांप्रदायीकरण हुआ है, वहां वह बिना कुछ किए चुनाव जीत गई है और जहां भाजपा समाज का पूरी तरह सांप्रदायीकरण नहीं करवा पाई है, वहां चुनाव हार गई है.
फिर भी, जहां कहीं भी थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर पाई है वहां अनिवार्यतः धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण ही हुआ है. आज तक बीजेपी के पास कोई ऐसा मॉडल नहीं रहा है जिसमें वह साबित कर पायी हो कि उसने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम किया हो, जहां के आम लोगों की जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन आया हो. अब दिल्ली में होने वाले 8 फरवरी के चुनाव में किस रूप में वह धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की योजना बना रही है इसे देखने की जरूरत है.
दिल्ली में इसीलिए जानबूझकर सांप्रदायिकता को हवा देने के लिए इस मोर्चे पर सांसद परवेश वर्मा को लगाया जो दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा का बेटा है, जिनकी समाज में सौम्य छवि रही है. परवेश वर्मा पिछले काफी दिनों से मुसलमानों के खिलाफ अनाप-शनाप बोलकर सुर्खिया बटोर रहा है. आज का लिबरल चुनाव आयोग भी परवेश वर्मा पर दो बार चुनाव प्रचार करने से प्रतिबंध लगा चुका है.
कुछ महीने पहले तक बीजेपी देश के 74 फीसदी भूभाग पर काबिज थी. आज के दिन उसके हाथों से कई महत्वपूर्ण राज्य निकल गए हैं जिसमें झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश शामिल हैं. मोदी के सत्ता में आने के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी कामयाबी हाथ लगी थी जिसे गुजरात के बाद बीजेपी अपनी ‘सुंदर प्रयोगशाला’ बनाने में लगी है. कहा जाता है कि गुजरात आरएसएस की सबसे सफल प्रयोगशाला है लेकिन उत्तर प्रदेश को मोदी-शाह ने योगी आदित्यनाथ के साथ मिलकर मिलकर बीजेपी की सफल प्रयोगशाला बनायी है.
अब यही प्रयोग दिल्ली में किया जा रहा है, जहां चुनाव प्रचार के आखिरी दिन बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री संसद के भीतर एक घंटा चालीस मिनट तक बोलते रहे लेकिन अपने भाषण में एक शब्द भी उन्होंने विकास या बजट पर ज़ाया नहीं किया, बल्कि अनुच्छेद 370 से लेकर राम मंदिर तक केवल ध्रुवीकरण पैदा करने वाली बातें करते रहे. यह संयोग नहीं है, वास्तव में एक प्रयोग है जिसकी पृष्ठभूमि शाहीन बाग है और जिसकी मंजिल दिल्ली का चुनाव है.
हां, एक महत्वपूर्ण बात- जिस कर्माटांड फॉउंडेशन ने दिल्ली के सभी बड़े और अधिक प्रसार वाले हिन्दी-अंग्रेजी अखबारों में विज्ञापन दिया है उसके कर्ताधर्ता बीजेपी के माउथपीस कमल संदेश के संपादक शिवशक्ति बक्शी हैं जो बीजेपी के प्रकाशन विभाग के प्रमुख भी हैं. उन्हीं के पिता के नाम पर यह फॉउंडेशन है. चुनाव आयोग को इस पर कोई आपत्ति नहीं है.
इस ट्रस्ट का एक ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल भी होगा जिसने बीजेपी के मंदिर निर्माण आंदोलन के दौर में अयोध्या में शिलापूजन किया था. वह कामेश्वर चौपाल राम मंदिर का दलित प्रतीक है जिसके सहारे दलितों में यह मैसेज दिया जाएगा कि हिन्दू राष्ट्र में दलितों को भी ‘इसी तरह’ तवज्जो दी जाएगी.
देश के पिछड़े व दलित नेतृत्व को बीजेपी ने या तो खरीद लिया है फिर गुलाम बना लिया है. इन दलित-पिछड़े नेताओं को सिर्फ अपने व अपने परिवार के आर्थिक हित की चिंता है. अपवादों को छोड़कर वह आर्थिक और मानसिक रूप से इतना भ्रष्ट हो गया है कि अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए बीजेपी के लिए अपने ही समाज से दलाली भी करता है और उससे विश्वासघात भी.