‘हिंदुत्व’ ने बनाया राम को ‘क्रुद्ध’, मोरारी बापू के राम यानी शांति और अभय !

मोरारी बापू सही मायने में हिन्दू धर्म के प्रतीक हैं क्योंकि वे हिन्दू धर्म के समावेशी चरित्र को मजबूत कर रहे हैं

संदीप पाण्डेय

एक संत की पहचान होती है कि उसकी वाणी से इंसान को आंतरिक शांति मिले। ऐसा तभी होगा जब वह प्रेम व सद्भावना की बात करेगा। मोरारी बापू ऐसे संत हैं जो समाज में शांति, प्रेम, भाई-बहन-चारा व सद्भावना का संदेश देते रहे हैं। आज के समय में जब हिन्दुत्व की राजनीति ने ऐसे भगवाधारियों को आगे कर दिया है जिनके तेवर आक्रामक हैं, जिनकी वाणी जहर उगलती है और जो नफरत की राजनीति को हवा दे रहे हैं तो मोरारी बापू जैसे संत को देखकर बड़ा सुकून मिलता है।

 मोरारी बापू महुवा, जिला भावनगर, गुजरात के निवासी हैं। उन्होंने अपने पैतृक गांव के मंदिर में राम दरबार की नई मूर्तियां लगवाई हैं जिनमें राम, लक्ष्मण व हनुमान अस्त्र-शस्त्र-विहीन हैं। मोरारी बापू का कहना है कि भविष्य के भगवान की कल्पना में भगवान को अस्त्र-शस्त्र की जरूरत नहीं होगी। जैसे जैसे मानव जाति ने प्रगति की है मानव समाज के आदर्श गौतम बुद्ध व महात्मा गांधी जैसे लोग बने हैं जिन्होंने अहिंसा, सत्य, प्रेम जैसे मूल्यों की न सिर्फ वकालत की बल्कि अपने जीवन में जी कर दिखाया।

राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। राम जन्म भूमि आंदोलन से पहले राम दारबार का चित्र लोकप्रिय हुआ करता था जिसमें राम के साथ सीता, लक्ष्मण व हनुमान हमेशा साथ रहे हैं। राम का अकेला चित्र या मूर्ति नहीं होती थी। आम अभिवादन भी ’जय सियाराम’ हुआ करता था, यानी राम के साथ सीता का नाम लिया जाता था। किंतु जब से लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा निकली तब से राम की उग्र तेवर वाली तस्वीर जिसमें उनके धनुष पर बाण चढ़ा हुआ है और बाल पीछे हवा में लहरा रहे हैं को जनता के सामने बार-बार परोसा जा रहा है। जय सियाराम का अभिवादन ’जय श्रीराम’ के नारे में बदल गया। जय सियाराम की आत्मीयता की जगह जय श्रीराम की आक्रामकता ने ले ली। किंतु आम हिन्दू तो मानता है कि उसका धर्म शांति का संदेश देता है। तो फिर उसे तय करना पड़ेगा कि उसके धर्म के प्रतीक राम दरबार के सौम्य राम और जय सियाराम का अभिवादन हैं अथवा धनुष पर तीर चढ़ाए आक्रमण करने के लिए तैयार खड़े राम और जय श्रीराम का नारा।

असल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से प्रेरित हिन्दुत्ववादी संगठन हिन्दू धर्म की छवि बदल कर उसे नुकसान पहुंचा रहे हैं। यदि आज तक हिन्दू धर्म बचा हुआ है तो उसकी वजह उसका सहिष्णु चरित्र है जो किसी बाहर से आने वाले या अन्य विचार को मानने वाले के साथ समन्वय बना लेता है। भारत में तमाम विविधताओं के संगम से एक मिली जुली संस्कृति विकसित हुई है। लोग अपने विचारों को मानते हुए अपने से भिन्न विचार मानने वाले का सम्मान करते हुए जीते हैं। आम इंसान शांतिपसंद है और मिलजुल कर रहना चाहता है। हिन्दुत्ववादी संगठन इतिहास में काफी बाद में आए अन्य धर्मों की तरह हिन्दू धर्म को एक कट्टरपंथी छवि देना चाहते हैं। यह तो समझने वाली बात है कि हिन्दू धर्म को इससे फायदा होगा या नुकसान। बाहर से आए आक्रांताओं ने हिन्दू धर्म का इतना नुकसान नहीं किया होगा जितना हिन्दुत्व की राजनीति कर रही है।

ऐसे समय में जब हिन्दू धर्म को हिन्दुत्ववादियों से ही खतरा पैदा हो गया है तो मोरारी बापू हिन्दू धर्म के सहिष्णु चरित्र को उबारने का काम कर रहे हैं। महुवा में मोरारी बापू के आश्रम में हरेक वर्ष एक दो दिवसीय सद्भावना पर्व आयोजित होता है जिसमें साम्प्रदायिक सद्भावना के विचार का उत्सव मनाया जाता है। गुजरात के समाज में जहां साम्प्रदायिकता का जहर बुरी तरह घुल गया है वहीं मोरारी बापू ने इस वर्ष दिल्ली निवासी फैसल खान, जिन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान के संगठन ’खुदाई खिदमतगार’ को पुनर्जीवित किया है, और डॉ. मेहरुन्निसा देसाई, जो अहमदाबाद में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं, को सम्मानित कर साम्प्रादयिक सद्भावना का मजबूत संदेश दिया है।

अयोध्या में राम कथा सुनने के लिए मुम्बई से यौन कर्मियों को बुलाकर मोरारी बापू ने न सिर्फ बहादुरी दिखाई है बल्कि स्पष्ट संदेश दिया है कि हिन्दू धर्म में समाज के हाशिए पर रहने वालों के लिए भी सम्मान है। जिन यौन कर्मियों का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज शोषण करता है उनको मुख्य धारा में बराबरी का स्थान दिला मोरारी बापू ने हिन्दू धर्म की छवि को, जिसे हिन्दुत्ववादियों ने पिछले कुछ सालों में  बिगाड़ा है, सुधारने की कोशिश की है। मोरारी बापू ने यह भी साबित कर दिया है कि वे कोई व्यवसायिक कथावाचक नहीं हैं बल्कि एक सुधारवादी संत हैं। गणिकाओं को ग्यारह लाख रुपए देकर उन्होंने समाज को रास्ता दिखाने का काम किया है।

जो लोग यह कह रहे हैं कि यौन कर्मियों के आने से अयोध्या अपवित्र हो गई है उन्हें सोचना चाहिए कि जब बड़े से बड़ा पापी भी गंगा में स्नान कर अपने पाप धो सकता है तो क्या गणिकाओं को धर्म की शरण नहीं मिल सकती जबकि उनका तो कोई दोष नहीं है। वे तो जो कर रही हैं उन्हें उस काम में धकेला गया है और अब उनकी मजबूरी बन गया है। किस गणिका ने यौन कर्म को खुशी से अपनाया होगा? उसे यौन कर्मी बनाने का अपराधी तो समाज है। हमें तो उनसे माफी मांगनी चाहिए कि किस नर्क की जिन्दगी में हम उन्हें जीने को मजबूर कर रहे हैं।

हिन्दू धर्म की सहिष्णुता यही सिखाती है कि सभी इंसानों को बराबरी का सम्मान मिलना चाहिए। गांधी जी ने इसे अपने जीवन में जिया और अब मोरारी बापू ने भी यही कर दिखाया है। कितने लोगों की हिम्मत होगी कि किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में गणिकाओं को सम्मानपूर्वक स्थान दे सकते हैं? मोरारी बापू सही मायने में हिन्दू धर्म के प्रतीक हैं क्योंकि वे हिन्दू धर्म के समावेशी चरित्र को मजबूत कर रहे हैं। यह बात बाबरी मस्जिद गिराने का समर्थन करने वाले और विवादित जगह पर राम मंदिर बनाने की जिद्द करने वाले कभी नहीं समझ पाएंगे।

सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय एशिया का नोबेल कहे जाने वाले मैग्सेसे सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं। 


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