अभिषेक श्रीवास्तव । पंजाब से
दो दिन तक लगातार हुई बेमौसम बारिश के बीच शुक्रवार को जब आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल का काफि़ला पटियाला की ऊबड़-खाबड़ गलियों में पहुंचा, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि उनका स्वागत करने के लिए आदमी, औरत और बच्चे घरों से बाहर निकल आएंगे। मुख्य बाजार के चांदनी चौक पर जमा पानी के बीच एक महिला लाउडस्पीकर पर तेज़-तेज़ चिल्ला रही थी, ”क्रांति आ गई”। पीछे केजरीवाल अपने स्थानीय प्रत्याशी डॉ. बलबीर सिंह और भगवंत मान के साथ खुली जीप में खड़े होकर जनता का अभिवादन कर रहे थे और काफि़ले की सुरक्षा के लिए पुलिस को लाठियों का बाड़ा बनाकर चलना पड़ रहा था। यह नज़ारा दो साल पहले की दिल्ली का एक दुहराव था, जहां काले झंडे लेकर पहुंचे दर्जन भर कांग्रेसी कार्यकर्ता जनता की हंसी का पात्र बने हुए थे।
पंजाब का विधानसभा चुनाव क्या एकतरफ़ा है? आम आदमी पार्टी का आंतरिक सर्वे बहुमत आने की बात कर रहा है। उसके समर्थक सौ से ज्यादा सीटों की बात कर रहे हैं। जनता में अकालियों के खिलाफ़ गुस्सा ज़ाहिर है। स्थानीय पत्रकार इस गुस्से की पुष्टि कर रहे हैं। पूरे पंजाब से अगर कोई एक न्यूनतम स्वर निकल रहा है तो वो यह है कि चुनावी जंग इस बार ‘आप’ और कांग्रेस के बीच है जबकि अकाली तीसरे नंबर पर है। इस विश्लेषण में केवल एक परिदृश्य निर्विवाद है कि चुनाव नतीजों में अधिकतम यह होगा कि ‘आप’ का बहुमत आएगा या फिर विधानसभा त्रिशंकु होगी। इसलिए सवाल पहले नंबर पर नहीं है। सवाल दूसरे और तीसरे का है।
शुक्रवार 27 जनवरी को इस सवाल को थोड़ा राहत मिलती दिखी जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। पटियाला और लाम्बी की सीट से एक साथ खड़े अमरिंदर के लिए यह घोषणा खतरे की घंटी है। पंजाब चुनाव पर करीबी निगाह रख रहे हरियाणा कांग्रेस के एक नेता कहते हैं, ”अमरिंदर का हारना तय है। पिछली बार भी यही गलती हुई थी।” अगर कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का दावेदार और राज्य में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा अपनी दोनों सीटों से चुनाव हार गया, तो यह चुनाव किसके लिए वाटरलू साबित होगा? ज़ाहिर है, अकाली के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए।
इसीलिए पंजाब की लड़ाई को अकाली की हार के तौर पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए कांग्रेसमुक्त भारत के नारे की दिशा में एक अहम पड़ाव के तौर पर देखा जाना चाहिए। ऐसे में सबसे प्रबल संभावना यह है कि अकाली अपनी कुछ मज़बूत सीटें भले निकाल ले जाए, लेकिन राज्य से कांग्रेस का बचा-खुचा हिस्सा भी साफ़ हो जाएगा। आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार को इसी रणनीति के इर्द-गिर्द संयोजित भी किया गया है। जिन सीटों पर कांग्रेस के बड़े नेता खड़े हैं, वहां चुनिंदा तरीके से पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में राज्य से केवल एक ख़बर आ रही है तो वो यह है कि ‘बादलों’ ने साजि़श कर के आखिरी मौके पर बारिश करवा दी है और राजा अपनी ज़मीन हार रहा है।
इस मोटे आकलन का दूसरा आयाम यह है कि विधानसभा त्रिशंकु होगी क्योंकि ‘आप’ को स्पष्ट बहुमत नहीं आएगा। ऐसे में क्या कांग्रेस के साथ चुनाव के बाद किसी गठबंधन की गुंजाइश बन सकती है? ‘आप’ के नेता इससे इनकार करते हैं। चंडीगढ़ में ‘आप’ के वॉर रूम के प्रभारी बिपिन राय कहते हैं, ”अबकी हम ऐसा करेंगे तो हमारी राजनीति खत्म हो जाएगी। छह महीना राष्ट्रपति शासन रहने दीजिए, दोबारा चुनाव होगा तो हम स्वीप करेंगे।”
पंजाब की राजनीति में डेरों का बड़ा असर रहा है। कहा जा रहा है कि इनमें सबसे प्रभावी डेरा सच्चा सौदा और डेरा ब्यास अकाली-भाजपा के समर्थन में है। इसी के आधार पर एक स्थानीय पत्रकार अमनदीप सिंह संधू कहते हैं, ”बदतर हालत में भी अकाली को 12-15 सीटें तो आ ही जाएंगी।” यह बात एक बार फिर इस आकलन को सही साबित करती है कि आम आदमी पार्टी के पक्ष में एकतरफ़ा माहौल होने के परिदृश्य में सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को होगा, अकाली को नहीं।
इस चुनाव में दो बातें दिलचस्प हैं जो साफ़ दिखती हैं। पहली, चुनाव से मुद्दा गायब है। दूसरी, जिस हवा की बात की जा रही है वह दिख नहीं रही। कुछ लोग इसे अंडरकरेंट कह रहे हैं। शहरों के बीच गांवों-कस्बों की छतों पर अकाली के झंडों का पर्याप्त मात्रा में दिखना भी इस बात की ताकीद करता है कि ‘आप’ की हवा जैसी कोई बात नहीं है। अमनदीप कहते हैं, ”पंजाब इस बार तनकर बैठा है। अकालियों के डर से कोई मुंह नहीं खोल रहा है। वे लोग जबरन अपना झंडा लगाकर चले जा रहे हैं।”
पंजाब के वामपंथी किसान नेता डॉ. दर्शनपाल भी ज़मीन पर हो रहे बदलाव को साफ देख पा रहे हैं, लेकिन उनका आकलन थोड़ा अलग है। वे कहते हैं, ”दस साल में असंतोष जमा हो गया है। एक ही जैसे चेहरे देख-देख कर लोग ऊब गए हैं। लोगों को कुछ नया चाहिए। सवाल मुद्दे का नहीं है, सवाल नए का है। नया माल सबको पसंद आता है।”
पटियाला में शुक्रवार को पहली बार अरविंद केजरीवाल को सामने देखकर उनका घनघोर समर्थक रिक्शाचालक रिंकू थोड़ा भ्रमित है। वह कहता है, ”जैसा टीवी पर या फोटो में दिखते हैं, केजरीवालजी वैसे तो नहीं है। सामने से तो बिलकुल अलग दिख रहे हैं।” लुधियाना में प्रवासी मजदूरों पर काम कर रहे शोधार्थी अंकुर इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि बैनर-पोस्टर और होर्डिगों में केजरीवाल की जो तस्वीर लगाई गई है, वह 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की है। लोग जिसे नया माल मान रहे हैं, वो भी छह साल पुराना हो चुका है।